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________________ २७६ : जैन पुराणकोश सुमुख के जीव आर्य के साथ हुआ था। इस आर्य विद्याधर को हरि क्षेत्र में इसके साथ क्रीड़ा करते हुए देखकर इसके पूर्वभव का पति देव पूर्व वैरवश इसके इस भव के पति आर्य विद्याधर की विद्याएँ हरकर इसे और इसके पति को चम्पापुरी लाया था । उसने इसके पति को चम्पापुरी का राजा बनाकर वहीं छोड़ दिया । हरि इसका पुत्र था। इसी हरि के नाम से जगत् में "हरिवंश" नाम की प्रसिद्धि हुई । पु० १५ २५-२७, ३३, ४८-५८ (२) चक्रवर्ती अभयघोष की पुत्री । इसका विवाह अभयघोष के भानजे सुविधि के साथ हुआ था । केशव इसका पुत्र था । मपु० १०.१४३-१४५ (३) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में किणी नगरी के राजा धनरथ की दूसरी मपु० ६३.१४४, पापु० ५.५३-५५ (४) धनरथ के पुत्र मेषरथ की रानी । मपु० ६३.१४७, पापु० ५.५६ पुष्कलावती देश की पुण्डरीरानी और दृढ़रथ की जननी । (५) विजयार्धं पर स्थित अलका नगरी के राजकुमार विद्याधर सिंहरथ की स्त्री । इसके पति के विमान की गति रुक जाने पर मेघरथ को इसका कारण जानकर इसके पति ने शिला सहित मेघरथ को उठाकर फेंकना चाहा था किन्तु मेघरथ ने अंगूठे से शिला दबा दी थी जिससे इसका पति रोने लगा था । रुदन सुनकर इसने मेघरथ से पति- भिक्षा मांगी और अपने पति को शिला के नीचे दबाये जाने से बचाया । मपु० ६३.२४१ - २४४, पापु० ५.६१-६८ (६) धातकीखण्ड द्वीप की पूर्व दिशा संबंधी विदेहक्षेत्र के पूर्वभाग में स्थित पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र की रानी और प्रियमित्र की जननी । मपु० ७४.२३५-२३७ (७) लक्ष्मण की पटरानी । यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजयार्ध की दक्षिण दिशा में स्थित रत्नपुर नगर के राजा रत्नरथ और रानी चन्द्रानना की पुत्री थी। इसके विवाह के सम्बन्ध में अवद्वार नारद के द्वारा लक्ष्मण का नाम प्रस्तावित किये जाने पर इसके तीनों भाई हरिवेग, मनोवेग और वायुवेग कुपित हो गये थे । नारद द्वारा यह समाचार लक्ष्मण से कहे जाने पर लक्ष्मण भी कुपित हुआ । उसने युद्ध में इसके भाइयों और पिता का पीछा किया। यह कन्या इसी बीच लक्ष्मण के समीप आयी । रत्नरथ ने अन्त में इसका विवाह लक्ष्मण से कर दिया। यह लक्ष्मण की प्रमुख आठ रानियों में आठवीं रानी थी। सुपार्श्वकीर्ति इसका पुत्र था । पपु० १.९४, ८३.९५, ९३.१-५६, ९४.२०-२३ (८) विद्याधर अमितगति की दूसरी ली। इन दोनों के सिंप और बाराहपीव दो पुत्र थे। पु० २१.११८-१२१ मनोरम्य - राक्षसवंशी एक राजा राजा महाबाहु के पश्चात् लंका का स्वामित्व इसे ही प्राप्त हुआ था । पपु० ५.३९७ मनोरोध - मन का निरोध । इन्द्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनन्त सुख मिलता है । मपु० २०.१७९-१८० Jain Education International मनोरम्य मनोवेगा मनोलुला - नागनगर के राजा हरिपति की रानी यह चन्द्रोदय के जीव कुलंकर की जननी थी । पपु० ८५.४९-५० मनोवती - रावण की रानी । पपु० ७७.१५ मनोवाहिनी - सुग्रीव की तेरह पुत्रियों में आठवीं पुत्री । यह राम के गुणों को सुनकर अनुरागपूर्वक स्वयंवरण की इच्छा से राम के पास आयी थी। राम ने इसे स्वीकार नहीं किया था । पपु० ४७.१३९ मनोवेग - ( १ ) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के स्वर्णाभ नगर का विद्याधर राजा । मनोवेगा इसकी रीनी थी । इसने रूपिणी विद्या से दूसरा रूप बनाकर अशोक वन में स्थित चन्दना का अपहरण किया। इसकी पत्नी ने इसकी माया जानकर रूपिणी विद्या देवता को बायें पद - प्रहार से जैसे हो ठुकराया कि विद्या अट्टहास करती हुई इसके पास से चली गयी थी। इसकी पत्नी ने आलोकिनी विद्या से इसकी इन चेष्टाओं को जानकर इसे बहुत डाँटा था । पत्नी से भयभीत होकर इसे पलध्वी विद्या से चन्दना को भूतरमण वन में ऐरावती नदी के तट पर छोड़ देना पड़ा था। हरिवंशपुराण के अनुसार इसका नाम चित्तवेग और इसकी रानी का नाम अंगारवती था । इन दोनों के एक पुत्र और एक पुत्री हुई थी । पुत्र का नाम मानसवेग और पुत्री का नाम वेगवती था । यह पुत्र को राज्य देकर दीक्षित हो गया और तपस्या करने लगा था । पाँचवें पूर्वभव में यह सौधर्म स्वर्गं से चयकर शिवंकर नगर के राजा विद्याधर पवनवेग और रानी सुवेगा का पुत्र मनोवेग हुआ था। चौथे पूर्वभव में मगध देश की वत्सा नगरी के ब्राह्मण अग्निमित्र का पुत्र शिवभूति हुआ। तीसरे पूर्वभव में बंग देश के कान्तपुर नगर में राजा सुवर्णवर्मा का पुत्र महाबल हुआ। दूसरे पूर्वभव में भरतक्षेत्र के अवन्ति देश की उज्जयिनी नगरी के सेठ धनदेव का नागदत्त पुत्र हुआ और प्रथम पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। म० ७५.३६०४४, ७०-७२ ८१, ९५-९६ १६२-१६५, हपु० २४.६९-७१ (२) शूकर वन में कीलित एक विद्याधर । प्रद्युम्न ने इसके बैरी वसन्त विद्याधर से इसकी मित्रता कराके इसे मुक्त करा दिया था । इसने भी प्रद्य ुम्न को हार और इन्द्रजाल ये दो वस्तुएँ दी थीं । हपु० ४७.३९-४० (३) भरतेश का एक अस्त्र । मपु० ३७.१६६ (४) राक्षस वंश के संस्थापक राजा राक्षस का पिता । पपु० ५.३७८ (५) विजयार्ध पर्वत पर रत्नपुर नगर के राजा रत्नरथ और उसकी रानी चन्द्रनना का दूसरा पुत्र यह हरिवेग का अनुज और वायुवेग का अग्रज तथा मनोरमा का भाई था । पपु० ९३.१-५७ मनोवेगा (१) मा पर्वत की दक्षिणी में मुवर्गान नगर के स्वामी मनोवेग की रानी पति द्वारा चन्दना का अपहरण किये जाने पर इसने पति को भयभीत कर उससे चन्दना को छुड़ाया था । मपु० ७५.३६-४४ दे० मनोवेग (२) अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज को प्राप्त एक विद्या । मपु० ६२.३९७ For Private & Personal Use Only די www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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