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________________ मंजुस्वनी - मडम्ब मंजुस्वनी — रथनूपुर नगर के राजा सहस्रार की एक नर्तकी । यह इन्द्र की अप्सरा के समान थी । पपु० ७.३१ मंजूषा - विदेह क्षेत्र की एक नगरी। यह विदेह क्षेत्र के लांगला देश की राजधानी थी। मपु० ६३.२०८, २१३, हपु० ५.२५७ मंजोवरी - कौशाम्बी की एक कलारिन । इसने कंस का पालन किया था । इसका अपर नाम मण्डोदरी था। मपु० ७०.३४७, हपु० ३३. १३-१७ मंडव - एक तापस | अयोध्या के राजा मधु का सामन्त वीरसेन अपनो प्रिया के हरी जाने पर इसका शिष्य हो गया था और इसके पास पंचाग्नितप करने लगा था। पपु० १०९.१३५, १४७-१४८ मंडित - विजया की दक्षिणश्रेणी में स्थित पाँचवाँ नगर । हपु० २२.९३ मंडुकरण के लिए प्रस्थान करते समय बजाया जानेवाला एक वाद्य । यह वाद्य राम की सेना के लंका की ओर प्रस्थान करते समय बजाया गया था । पपु० ५८.२७ मंडूक — राजगृह का समीपवर्ती एक ग्राम । रुक्मिणी अपने पूर्वभव में इसी ग्राम के विपद भीवर की पूतिगन्धिका नाम की पुत्री थी। हपु० ६०.३३ मंडूकी - मण्डूक ग्राम के निवासी त्रिपद धोवर की स्त्री । मपु० ७१. ३२६, हपु० ६०.३३ मकर - रावण का एक सामन्त । यह राम की सेना से लड़ने के लिए सिंहरथ पर आरूढ़ होकर निकला था । १० ५७. ४६-४८ मकरध्वज - ( १ ) एक विद्याधर । यह लोकपाल सोम का पिता था । पपु० ७.१०८ (२) एक वानर कुमार । यह राम के रोकने पर भी बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण को कुपित करने की भावना से लंका गया था । पपु० ७०.१५-१६ (३) रावण का सहायक योद्धा । पपु० ७४.६३-६४ ( ४ ) लक्ष्मण का पुत्र । पपु० ९४.२७-२८ (५) प्रयुक्त पु० ५५.३१ ० प्रस्न । मकरव्यूह -- युद्ध में आयोजित विशिष्ट सैन्य-रचना । जयकुमार ने अर्क - कीर्ति के साथ युद्ध करते समय इसी ब्यूह की रचना की थी । कौरव-पाव युद्ध में भी अठारहवें दिन अर्जुन ने कर्ण के विरुद्ध इसी व्यूह की रचना की थी। मपु० ४४.१०९, पापु० ३.९६, २०. २४३-२४४ मकरी - अयोध्या के निवासी करोड़पति सेठ वस्त्रांक की प्रिया । इसके अशोक और तिलक नाम के दो विनीत पुत्र थे । पपु० १२३. ८६, ८९-९१ म - पूजाविधि का पर्यायवाची शब्द । मपु० ६७.१९३ मखज्येष्ठ —— भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २४.४१ मांग - भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.४१ मगध --- जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में विद्यमान एक देश । Jain Education International जैन पुराणकोश : २६७ राजगृह इमी देश का एक नगर है । कर्मभूमि के आरम्भ में वृषभदेव की इच्छा से इस देश की रचना स्वयं इन्द्र ने की थी । केवलज्ञान होने पर तीर्थंकर वृषभदेव और नेमिनाथ ने यहाँ विहार किया था । यहाँ का भू-भाग ईख, मूंग, मौठ, धान्य आदि धान्यों से सम्पन्न रहा है। यहाँ सभी वर्गों के लोग धर्म, अर्थ और काम इस त्रिवर्ग के साधक थे । यहाँ चैत्यालय थे। भरतेश ने इस पर विजय की थी । मपु० २.४-७, १६.१५३, २५.२८७-२८८, २९.४७, ५७.७० पपु० १०९.३५-३६, हपु० ११.६८-६९, ४३.९९, ५९.११०, पापु० १. १०१-१०२ मगधराज - राजा श्रेणिक । पपु० २.१४३ मगधा-सारनलका — विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी में स्थित बियालीसवीं नगरी । हपु० २२.९९ मघा (१) जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र से सम्बन्धित वत्स देश की कौशाम्बी नगरी का नृप। इसकी वीतशोका महादेवी तथा रघु पुत्र था । मपु० ७०.६३-६४ (२) तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का मुख्य प्रश्नकर्ता । मपु० ७६.५३० (३) अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा- सुषमा काल में उत्पन्न शलाका पुरुष एवं तीसरे चक्रवर्ती। ये तीर्थंकर धर्मनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुए थे । कोशलदेव की अयोध्या नगरी के राजा सुमित्र इनके पिता तथा रानी भद्रा इनकी माता थी। इनकी आयु पाँच लाख वर्ष थी। शरीर स्वर्ण के समान कान्तिधारी साढ़े चालीस धनुष ऊँचा था। इनके पास चौदह महारत्न नौ निधियाँ थीं। इनकी छियानवें हज़ार रानियाँ थीं । इन्होंने मुनि अभयघोष से तत्त्वोपदेश सुनकर प्रिय मित्र पुत्र को राज्य सौंप करके तथा संयम धारण करके कर्मों का नाश किया और ये संसार से मुक्त हुए। दूसरे पूर्वभव में ये पुण्डरीकिणी नगरी के शशिप्रभ राजा और प्रथम पूर्वभव में स्वर्ग में देव थे । मपु० ६१.८८-१०२, पपु० २०.१३१-१३३, हपु० ६०. २८६, वीवच० १८.१०१, १०९-११० मघवी - छठी तमः प्रभा पृथिवी का रूढ़ नाम । हपु० ४.४५-४६, दे० तमः प्रभा मघा - एक नक्षत्र । तीर्थङ्कर सुमतिनाथ इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे । पपु० २०.४१ मघोनी मेपुर नगर के राजा मेरु विद्याधर की रानी और मृगारिदमन की जननी । पपु० ६.५२५ मटम्ब – पाँच सौ ग्रामों का समूह। अपर नाम मडम्ब । मपु० १६.१७२, हपु० २.३, पापु० २.१५९ मठ-तापसियों का आश्रम । ये विशाल पत्तों से आच्छादित होते थे । इनमें पालतू पशु-पक्षी भी रहते थे । यहाँ धान्य न्यूनतम श्रम से उत्पन्न होता था । अनेक फलोंवाले वृक्ष भी होते थे । मपु० ६५. ११५-११७० ३३.२०६ मडम्ब - पाँच सौ ग्रामों से आवृत नगर । इसका अपर नाम मटम्ब था । मपु० १६.१७२ दे० मटम्ब For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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