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________________ भुवनेश्वर-भूमितिलक भुवनेश्वर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. भुवनेकपितामह-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४३ भुशुण्डी-एक शस्त्र । इसका व्यवहार रावण के काल में हुआ है । पपु० १२.२५८ भूतदेव-हरिवंशी राजा । यह राजा संभूत का पुत्र था । पपु० २१.९। भूतनाद-विद्याधरों का राजा । यह राम का सेनापति था। यह विद्या धर सेना के आगे-आगे चलता था । पपु० ५४.३४-३५, ६० भूतनार्थ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११८ भूतभव्यभवद्भर्ता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२१ भूतभावन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. ११७ भूतभृत-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५,११७ भूतमुखखेट-चक्रवर्ती भरतेश तथा तीर्थकर अरनाथ का अस्त्र (ढाल)। यह भूतों की मुखाकृतियों से चिह्नित होता था। मपु० ३७.१६८, पापु० ७.२१ भूतरमण-(१) भद्रशाल वन के पांच उपवनों में पाँचवाँ उपवन । हपु० ५.३०७ (२) ऐरावती नदी के किनारे स्थित एक अटवी। अपनी पत्नी के क्रोध से भयभीत होकर विद्याधर मनोवेग ने अपने द्वारा अपहृता चन्दना को इसी अटवी में छोड़ा था । मपु० ७५.४२-४४, हपु० २७.. ११९ भूतरव-एक देश । लवण और अंकुश ने इसे जीता था। पपु० १०१. जैन पुराणकोश : २६३ भूतानन्द-एक निग्रन्थ मुनि । चित्रचूल के चित्रांगद आदि सात पुत्रों __ के ये दीक्षा-गुरु थे। मपु० ७१.२५८, हपु० ३३.१३९ भूतारण्यक-सीता और सीतोदा नदियों के तटों पर पूर्व-पश्चिम विदेह पर्यन्त लम्बे तथा लवण समुद्रतट से मिले हए चार देवारण्यों में इस नाम के दो वन । हपु० ५.२८१ भूति-(१) वृषभदेव के चौरासो गणधरों में चौबीसवें गणधर । हपु० १२.५९ (२) भरतक्षेत्र की गान्धारी नगरी का राजा। यह मांस-भोजी था । पूर्व पुण्य के प्रभाव से मरकर यह राजा जनक हुआ। पपु० ३१. ४१,५७ भूतिलक-(१) वलयाकार पर्वत से आवृत एक नगर । वैश्य प्रीतिकर ने यहाँ के राजा भीमक को मारा था। मपु० ७६.२५२, २८६-२८९ दे० प्रीतिकर (२) विजया पर्वत की अलका नगरी के तीन स्वामियों में तीसरा स्वामी । मपु० ७६.२६३, २६७ भूतिशर्मा-मलय देश के भद्रिलपुर नगर का निवासी एक ब्राह्मण । यह तीर्थकर शीतलनाथ के तीर्थकाल में उत्पन्न हुआ था । मुण्डशालायन इसका पुत्र था। मपु० ५६.७९, ७१.३०४ भूतेश-भवनवासी देवों के बीस इन्द्रों में तीसरा इन्द्र । वीवच० १४. ५४-५८ भघर-(१) राम का एक योद्धा । पपु० ७४.६५-६६ (२) धरणेन्द्र । पार्श्वनाथ के उपसर्ग काल में इसने और इसकी - पत्नी पद्मावती ने उनकी रक्षा की थी। मपु० ७३.१-२ भूपाल-(१) सुभौम चक्रवर्ती के तोसरे पूर्वभव का जीव, भरतक्षेत्र का एक नृप । युद्ध में पराजित होने के कारण हुए मानभंग से संसार से विरक्त होकर इसने संभूत गुरू से दीक्षा ले ली थी तथा तपश्चरण करते हुए चक्रवर्ती पद का निदान किया था। आयु के अन्त में संन्यास-मरण करके यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर अयोध्या में राजा सहस्रबाहु का पुत्र कृतवीराधिप हुआ। मपु० ६५.५१-५८ (२) राजा का एक भेद । यह साधारण नृप की अपेक्षा अधिक शक्ति सम्पन्न होता है। इसके पास चतुरंगिणी सेना होती है। यह दिग्विजय करता है । यपु० ४.७० भूमि-(१) जीवों की निवास-भूमियाँ । मपु० ३.८२, १६.१४६, दे० कर्मभूमि एवं भोगभूमि (२) अधोलोक में विद्यमान नरकों की सात भूमियाँ । इनके नाम है-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा । हपु० ४.४३-४५ भूमिकुण्डलकूट-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के पचास नगरों में उनचासा नगर । हपु० २२.१०० भूमितिलक-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का चौंतीसवां नगर । मपु० १९.८३, ८७ भूतवन-विजया पर्वत की पूर्व दिशा और नीलगिरि की पश्चिम की और विद्यमान सुसीमा देश का एक वन । श्रीपाल ने यहाँ सात शिलाखण्डों को एक के ऊपर एक रखकर स्वयं चक्रवर्ती होने की सूचना दी थो । मपु० ४७.६५-६७ भूतवर-जम्बूद्वीप के अन्तिम सोलह द्वीपों में बारहवाँ द्वीप एवं सागर । हपु० ५.६२५ भूतवाद-पृथिवी, जल, वायु और अग्नि के संयोग से चैतन्य की उत्पत्ति तथा वियोग से उसके विनाश की मान्यता । इस वाद को माननेवाले आत्मा, पुण्य-पाप और परलोक नहीं मानते। इसकी मान्यता है कि जो प्रत्यक्ष सुख को त्याग कर पारलौकिक सुख की कामना करता है वह दोनों लोकों के सुखों से वंचित हो जाता है । मपु० ५.२९-३५ भूतस्वन–एक वानरवंशी राजा। राम-लक्ष्मण युद्ध में इसने रावण की सेना को पराजित किया था । पपु० ७४.६१-६२ ।। भूतहित-निर्ग्रन्थ एक मुनि । इन्होंने पुण्डरीकिणो नगरी के राजा महीपदम को धर्मोपदेश दिया था । मपु० ५५.१३-१४ भूतात्मा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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