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________________ २६२ : जैन पुराणकोश 1 चरित्र धारण कर लिया था । महातपश्चरण में लीन रहते हुए इसने कुर्यधर द्वारा किया गया उपसर्ग सहा कुचर ने गर्म लोहवस्व भी इसे पहनाये। फिर भी यह ध्यान में ही लीन रहा। इस उपसर्ग को जीतकर एवं कर्मों का क्षय करके यह केवली हुआ और इसे मुक्ति प्राप्त हुई। इसका अपर नाम भीमसेन था । मपु० ७२.२०८, २६६२७०, ० ४५.१-७, ३७-३८, ११-११८, ४६.२७-४१, पापु० ८. १६७-१६८, २०८-२२०, १०.५२-६५, ७३-७६, ९२-११७, १२. १६६-१६८, ३५६-३६१, १४.५५-६५, ७५ ७८, १३१-१३४,१६८१६९, १८८, २०३ - २०६, १७.२४५-२४६, २८९-२९५, २०.२६६२६७, २९४ २९६, २५.१२-१४, ६२-७४, १३१-१३३ भीमक - (१) अपर नाम भीम । हपु० ४३.१६२-१६३, दे० भीम-२ (२) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा हरिबल और उसकी रानी धारिणी का पुत्र । इसके पिता ने इसे अलकापुरी का राज्य दिया था इसने अपने सौतेले भाई हिरण्यवर्मा को विधाएँ हर ली थीं । अतः त्रस्त होकर वह अपने चाचा महासेन के पास चला गया था। इस घटना से क्षुब्ध होकर इसने अपने चाचा महासेन को भी मार डाला था । अन्त में यह कुमार प्रीतिकर द्वारा मारा गया था । मपु० ७६.२६३-२८९ भीमकूट - एक पर्वत । भीलों का राजा सिंह इसी पर्वत के पास रहता था । कालक भीम ने इसी पर्वत में इसे चंदना सौंपी थी । मपु० ७५. ४५-४८ भीमनाव — रावण का सामन्त । यह गजरथ पर आरूढ़ होकर समरभूमि में आया था । पपु० ५७.५७-५८ भीमप्रभ - राजा आदित्यगति और उसकी रानी सदनपद्मा का पुत्र । इसकी एक हजार स्त्रियाँ तथा एक सौ आठ पुत्र थे। आयु के अन्त में इसने बड़े पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली थी तथा तपाचरणपूर्वक परम पद पाया था । पपु० ५.३८२-३८४ भीमबल - राजा धृतराष्ट्र और उसकी रानी गान्धारी का बयालीसवाँ पुत्र । पापु० ८. १९८ भीमा-राजा पुतराष्ट्र और उसकी रानी गान्धारी का इकतालीसवाँ पुत्र । पापु० ८. १९८ भीमरथ - (१) नागेन्द्र की क्रोधाग्नि से भस्म होने से बचे सगर के पुत्रों में एक पुत्र । इसने दीक्षा धारण कर ली थी । पपु० ५.२५१२५४, २८३ (२) राम का योद्धा । यह अपने महासैनिकों के साथ युद्ध में रावण के विरुद्ध लड़ा था । पपु० ५८.१४, १७ (३) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का अठहत्तरवाँ पुत्र । पापु० ८.२०२ भीमरथी भरतयक्षेत्र के आखण्ड की पश्चिम समुद्र की ओर बहनेवाली एक नदी । भरतेश की सेना ने इसे पार किया था। मपु० ३०.३५ Jain Education International भीमक-भुवनायिका भीमवर्मा - राजा सुवसु का पुत्र । यह कलिंग देश का रक्षक था । हपु० ६६.४ भीमसेन – (१) राजा पाण्डु और कुन्ती का दूसरा पुत्र । यह युधिष्ठिर का अनुज तथा पार्थ का अग्रज था। मपु० ७०.११४-११६, हपु० ४५.२, ३७ दे० भीम- १३ (२) आचार्य अभयसेन के शिष्य और जिनसेन के गुरु एक आचार्य । पु० ६६.२९ भीमारण्य - विदेहक्षेत्र के मनोहर नगर का समीपवर्ती एक भयंकर वन । संजयन्त मुनि ने यहाँ प्रतिमायोग धारण किया था । मपु० ५९.११६ भीमावलि - वर्तमान भरतक्षत्र का प्रथम रुद्र । यह भगवान् वृषभदेव के तीर्थ में हुआ था। इसके शरीर की ऊँचाई पाँच सौ धनुष और आयु तेरासी लाख पूर्व थी। यह मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । हपु० ६०.५३४-५४७ भीमासुर - एक असुर । पाण्डव भीम ने इसे मल्लयुद्ध में पराजित किया था । पापु० १४.७२, ७५ दे० भीम-१३ भोरस - भयानक रस । युद्धस्थल में जर्जरित अंगों को तथा जहाँ-तहाँ पड़े हुए योद्धाओं को देखकर द्रष्टा के मन में उत्पन्न भयकारो भाव । मपु० ६८.६०७-६०८ भर-भरक्षेत्र का एक देश तीर्थंकर महावीर की बिहार भूमि । पपु० १०१.८१, हपु० ३.५ भो हाथी यह भोग-स्वभावी होता है मपु० २९.१२७ भीषण - राम का एक योद्धा । यह राम की ५८.१५, १७ भीष्म - (१) कौरववंशी राजा शान्तनु के वंश में हुए धृतराज के भाई रुक्मण तथा राजपुत्रो गंगा का पुत्र । यह कुण्डिनपुर नगर का राजा था । कृष्ण और जरासन्ध के बीच हुए युद्ध में इसने जरासन्ध की ओर से युद्ध किया था। मपु० ७१.७६-७७, हपुं० ४२.३३-३४, ४५.३५, ६०.३९ सेना से लड़ा था। पपु० (२) राक्षसवंशी एक विद्याधर नृप इसने लंका का स्वामित्व प्राप्त किया था। पपु०५. ३९६-४०० भुजगवरद्वीप - जम्बूद्वीप के प्रथम सोलह द्वीपों में चौदहवाँ द्वीप । हपु० ५.६१९ भुजगवरोवधि – जम्बूद्वीप के प्रथम सोलह सागरों में चौदहवाँ सागर । यह भुजगवर-द्वीप को घेरे हुए है। पु० ५.६१९ भुजंगशैल—भरतेश का एक नगर । कीचक यहीं मारा गया था । मपु० ७२.२१५ भुजंगिनी - रावण को प्राप्त अनेक विद्याओं में एक विद्या । पपु० ७. ३२९ - । भुजवली सोमवंशी नृप सुबल का पुत्र इसने हेमांगद पर आक्रमण किया था । पपु० ५.१२, हपु० १३.१७, पापु० ३.११४ भुवना - रावण को प्राप्त अनेक विद्याओं में एक विद्या । पपु० ७.३२४ भुवनाम्बिका - मरुदेवी। वृषभदेव की जननी होने से इसे इस नाम से सम्बोधित किया गया था । मपु० १२.२२४, २६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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