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________________ २५४ : मैनपुराणकोश (२) एक मुनि जम्बूद्वीप के भरतयक्षेत्र में सिहपुर नगर के राजा सिहसेन की रानी रामदत्ता के पिता ने इन्हीं से दीक्षा ली थी । मपु० ५९.१४६, २११ (३) एक आचार्य । ये विशालकीर्ति के धारी तथा प्रथम अंग के पारगामी थे । ये यशोभद्र के शिष्य तथा लोहाचार्य के गुरु थे। इनका अपर नाम यशोबाहु था । मपु० २.१४९, ७६.५२५-५२६ भद्रमित्र - सिंहपुर के राजकुमार सिंहचन्द्र का जीव । यह पद्मखण्डपुर नगर के सेठ सुदत्त और उसकी स्त्री सुमित्रा का पुत्र था। यह एक बार सिहपुर के राजा सिहसेन के मंत्री श्रीभूति के पास कुछ रत्न धरोहर के रूप में रखकर अपने नगर लौट गया था। अपने नगर से आकर इसने श्रीभूति से अपने रत्न मांगे थे किन्तु वह रत्न देने से मुकर गया था। यह अपने रत्नों के लिए रोने-चिल्लाने लगा । राजा सिंहसेन की रानी रामदत्ता ने इसके रुदन का कारण जानकर राजा की आज्ञा ली और श्रीभूति के साथ जुआ खेला । जुए में रानी ने श्रीभूति को पराजित किया और श्रीमृति के घर से इसके रत्न मंगना लिये । राजा ने अन्य रत्नों में इसके रत्न मिलाकर इसे अपने रत्न लेने के लिए कहा । इसने रत्नों के ढेर से अपने रत्न चुनकर ले लिये । इसकी सत्य दृढ़ता और निर्लोभवृत्ति से प्रसन्न होकर राजा ने इसे मंत्री पद देकर इसका 'सत्यघोष' नाम रखा। एक बार इसने मुनि वरधर्म से धर्म का स्वरूप सुनकर बहुत घन दान में दिया, जिससे इसकी माँ सुमित्रा अत्यन्त क्रुद्ध हुई । वह क्रोधपूर्वक मरकर व्याघ्री हुई। पूर्व वैर के कारण इस व्याघ्री ने इसे मार डाला । यह मरकर रानी रामदत्ता का सिंहचन्द्र नामक पुत्र हुआ । मपु० ५९.१४८-१९२ भन्नमुख - भरतेश का स्थपति रत्न । यह वास्तुकला का ज्ञाता था । मपु० ३७.१७७ भद्रावती - श्रावस्ती नगरी के राजा सुमित्र की रानी और तीसरे चक्रवर्ती मघवा की जननी । पपु० २०.१३२ भगवान तीर्थकुर महावीर के निर्वाणोपरान्त हुए कतिपय शासकों में एक शासक । हपु० ६०.४९१ भद्रशाल - मेरु पर्वत का एक वन मेरु पर्वत के चारों ओर स्थित यह वन तीन कोट और ध्वजाओं से भूषित चार चैत्यालयों से शोभायमान है । यह मेरु की पूर्व-पश्चिम दिशा में नाना प्रकार के वृक्षों और लताओं से व्याप्त है । इसकी पूर्व पश्चिम भाग की लम्बाई बाईस हजार योजन और दक्षिण-उत्तर भाग की चौड़ाई ढ़ाई सौ योजन है । पूर्व-पश्चिम भाग में एक वैदिका है जो एक योजन ऊँची एक कोस गहरी और दो कीस चौड़ी है । मपु० ५.१८२, पपु० ६.१३५, हपु० ५.२०९, २३६-२३८, वीवच० ८.१०९ भद्रा - ( १ ) विद्याधर विनमि की पुत्री । यह भरत चक्रवर्ती की रानी सुभद्रा की बड़ी बहिन थी ह० २२.१०६ (२) समवसरण की चार वापियों में दूसरी वापी । इसका जल समस्त रोगों को हरनेवाला है । इसमें देखनेवाले जीवों को अपने आगेपीछे के सात भव दीखते हैं । हृपु० ५७.७३-७४ Jain Education International भद्रमित्र-भर (३) राजा अन्धकवृष्टि की महारानी। इसके समुद्रविजय आदि दस पुत्र थे । पापु० ७.१३२-१३४ (४) रावण की एक रानी । पपु० ७७.१३ (५) दशरथ की पुत्रवधू । पपु० ८३.९४ (६) साकेत नगरी के राजा सुमित्र की रानी। यह चक्रवर्ती मघवा की जननी थी । मपु० ६१.९१-९३ (७) वत्स देश में कौशाम्बी नगर के सेठ वृषभसेन की स्त्री । इसने चन्दना को अनेक प्रकार से सताया था । मपु० ७५.५२ ५८, ६६ (८) पोदनपुर के राजा प्रजापति को दूसरी रानी । यह बलभद्र विजय की जननी थी । मपु० ६२.९१-९२ भद्राचार्य — शोभपुर नगर के एक प्रभावक दिगम्बर मुनि । एक स्त्री ने इनसे अणुव्रत धारण किये थे तथा मरकर वह देवी हुई थी । पपु० ८०. १८९ भवाम्भोजा - प्रथम बलभद्र अचल की जननी । पपु० २०.२३८ भद्रावणि तीर्थकर वृषभदेव के तिर गणधर ० १२.६८ भद्राश्व - विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का चवालीसवाँ नगर । मपु० १९.८४, ८७ भद्रासन - एक दिव्य आसन । सिन्धु देवो ने यह आसन भरतेश को दिया था । मपु० ३२.८३ भद्रिका - रुचकवरगिरि के भद्रकूट पर रहने वाली एक देवी । ह्पु० ५. ७१४ भद्रिलपुर -- मलय देश का एक नगर । वसुदेव ने इस नगर के राजा पौण्ड़ की पुत्री चारुहासिनी को विवाह या तीर्थकर शीतलनाथ की यह जन्मभूमि और तीर मिना को बिहार भूमि को मपु० ५६.२४, ६४, ७१.३०३, हपु० २४.३१-३२, ५९.११२-११४ भन्जिलसा भरतक्षेत्र की एक नगरी वा रेवती इसी नगरी के सुदृष्टि सेठ की स्त्री थी । हपु० ३३.१६७ भम्भा - राम के समय का एक मंगल वाद्य । पपु० ५८.२७, ८२.२९ भयंकर - एक पल्ली । यहाँ भील निवास करते हैं । भोल कालक ने चन्दना को इसी पल्ली के राजा सिंह को सौंपा था । मपु० ७५.४८ भय - ( १ ) भीति । यह सात प्रकार का होता है - इहलोक भय, परलोक भय, अरक्षा भय, अगुप्ति-भय, मरण-भय, वेदना भय और आकस्मिक भय । मपु० ३४.१७६ (२) आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं में एक संज्ञा । मपु० ३६.१३१ भयत्याग - सत्यव्रत की पाँच भावनाओं में एक भावना-भोतित्याग | मपु० २०.१६२, दे० सत्य महाव्रत भयसंभूति - राजा दशानन को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३३० भयानक —- रावण का एक योद्धा । पपु० ५७.५७-५८ भर - एक विद्याधर । यह राम का शार्दूलरथवाही एक योद्धा था । पपु० ५८.५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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