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________________ बलभद्र-बलीन्द्र ७४, ६५.२६-५६, पापु० २२.९९ इनके रत्नमाला, गदा, हल और मूसल ये चार महारत्न थे। इनकी आठ हजार रानियाँ थीं और इनके निषध, प्रकृतिद्यति, चारुदत्त आदि अनेक पुत्र थे । मपु० ७१. १२५-१२८ हपु० ४८. ६४-६८, ५३. ४१-५६ बलभद्र -- (१) सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के इन्द्र का विमान । मपु० ७६.१९९, हपु० ६.४८ (२) नारायण के भ्राता । नियम से तद्भव मोक्षगामी पुरुष | ये नौ होते हैं - दे० बल । इनमें विजय आदि पाँच बलभद्र श्रेयांसनाथ से धर्मनाथ तीर्थंकर के अन्तराल में हुए हैं। आरम्भिक आठ बलभद्र मोक्ष गये और नवें बलभद्र ब्रह्म स्वर्ग | नियम से ये सभी ऊर्ध्वगामी (स्वर्ग अथवा मोदागामी) होते हैं, नवान्तर में कोई निदान नहीं बाँधते । पु० ६०.२९३ ३०३ इन बलभद्रों में सुधर्म को धर्म तथा नान्दी को नन्दिषेण नाम से भी सम्बोधित किया गया है । मपु० ५९.२७१, ६५.१७४ नामों में अन्तर के साथ क्रम में भी अन्तर प्राप्त होता है । पद्मपुराण में वे निम्न क्रम में मिलते हैं - अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दिमित्र, नन्दिषेण पद्म और बल पपु०५. २२५, २२६, २०.२४२ टिप्पणी । पूर्व जन्म सम्बन्धी इनके नगर क्रमशः ये थे – पुण्डरीकिणी, पृथिवी सुन्दरी, आनन्दपुरी, नन्दपुरी, वीतशोका, विजयपुर, सुसीमा क्षेमा और हस्तिनापुर । पूर्वजन्म के नाम क्रमशः-बल, मारुतवेग, नन्दिमित्र, महाबल, पुरुषर्षभ, सुदर्शन, वसुन्धर, श्रीचन्द्र और शंख । गुरु जिनसे पूर्वजन्म में ये दीक्षित हुए-अमृतार, महासुव्रत, सुव्रत, वृषभ, प्रजापाल, दमवर, धर्म, अर्णव और विद्रुम । स्वर्गों के नाम जहाँ से अवतरित हुएतीन सहस्रार स्वर्ग से तीन अनुत्तर विमान से दो ब्रह्म स्वर्ग से और एक महाशुक्र स्वर्ग से । पूर्वजन्म की माताएँ - भद्राम्भोजा, सुभद्रा, सुधा सुदर्शना सुप्रभा विजया, वैजयन्ती, अपराजिता और रोहिणी । पपु० २०.२२९-२३९ उत्सर्पिणीकाल में निम्न बलभद्र होंगे - चन्द्र, महाचन्द्र, चन्द्रधर सिंहचन्द्र, हरिश्चन्द्र, श्रीचन्द्र, पूर्णचन्द्र, सुचन्द्र और बालचन्द्र । हपु० ५०.५६६-५६९ इन बलभद्रों के नाम एवं क्रम परिवर्तित रूप में भी मिलते हैं जैसे—चन्द्र, महाचन्द्र चक्रपर, हरिचन्द्र सिंहचन्द्र वरचन्द्र पूर्णचन्द्र सुचन्द्र और श्रीचन्द्र । मपु० ७६.४८५-४८६ बलभद्रों को राम भी कहते हैं । मपु० ७६. ४९५, पपु० २०.२३१, १२३.१५१ , J (३) अनागत सातवां नारायण । हपु० ६०.५६६ बलभद्रककूट — मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में नन्दनवन का कूट । पु० ५.३२८ बलभद्रकबेव — नन्दनवन के बलभद्रककूट पर रहनेवाला देव । हपु० ५.३२८ बलरिपु -- इन्द्र । हपु० ५५.१३ बर्ला - परीषहों के सहने में बलप्रदायिनी ऋद्धि । बाहुबली ने यह ऋद्धि अपने तपोबल से प्राप्त की थी । मपु० ११.८७, ३६.१५४ Jain Education International जैन पुराणकोश २४७ बलसिंह वैजयन्ती नगरी का न्यायप्रिय नृप कुमार वसुदेव हमारी स्त्री सोमश्री के साथ रूप बदलकर रहता है' ऐसी मानसवेग द्वारा शिकायत किये जाने पर इसने छानबीन की थी तथा मानसवेग को असत्यभाषी पाया था । हपु० ३०.३३-३४ बलांक- आदित्य (सूर्य) वंश का एक नृप । यह अर्ककीर्ति का पौत्र, सितयश का पुत्र और राजा सुबल का जनक था । यह स्वभाव से निःस्पृह और चरित्र से निर्धन्तधारी था। प० ५.४-१० बलाहक - (१) कामग विमान का निर्माता देव । मपु० २२.१५, वीवच ० १४.१३-१४ a (२) कृष्ण के सेनापति अनावृष्टि का शंख । हपु० ५१.२० (३) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का ग्यारहवाँ नगर । हरिवंश अठानवें क्रमांक पर दिया है, तथा इस उल्लेख है । मपु० १९.७९-८७, हपु० पुराण में इस नगर का नाम क्रमांक पर धनंजय नगर का २२.९३ १०१ (१) भरतेश के पुत्र अर्ककीति का समकालीन भूगोचरी एक नृप । पापु० ३.३४-३६ (२) राम का एक योद्धा । पपु० ५८.१३ - १७ (३) छठा प्रतिनारायण । यह मेघनाद का छठा वंशज था । इसे तीन खण्ड का स्वामित्व तथा विद्याबल प्राप्त था । यह बलशाली बलभद्र नन्द और नारायण पुण्डरीक द्वारा युद्ध में मारा गया था । ० २५.३४-३५ ० निशुम्भ (४) उज्जयिनी के राजा श्रीधर्मा का मंत्री । एक समय सात सौ मुनियों के संघ सहित अकम्पनाचार्य उज्जयिनी में आये थे । राजा भी अपने मन्त्रियों के साथ इनके दर्शनार्थ आया था। लौटते समय श्रुतसागर मुनि से मन्त्रियों का विवाद हो गया, जिसमें मन्त्री पराजित हुए । राजा ने इन मन्त्रियों को अपने राज्य से निकाल दिया । इसकी प्रमुखता में ये हस्तिनापुर आये यहां इन्होंने राजा पमरण को उसके शत्रु सिंहरथ को जीतने में सहायता की। राजा ने प्रसन्न होकर इन्हें सात दिन का राज्याधिकार दिया । दैवयोग से अकम्पनाचार्य ससंघ यहाँ भी आये । इन्होंने उन पर घोर उपसर्ग किया। इस उपसर्ग को विष्णुकुमार मुनि ने विक्रियाद्धि से दूर किया। सात दिन की अवधि समाप्त होने पर राजा ने इसे इस नगर से निष्कासित कर दिया । यह विष्णुकुमार मुनि की शरण में आया और उनसे श्रावक धर्म को ग्रहण कर लिया । मपु० ७०.२७४ - २९९ हपु० २०. ३-६० (५) कुरुवंश के राजा विजय का पुत्र । वसुदेव की कथा के प्रसंग में छः भाइयों के साथ इसका नाम आया है । हपु० ४८.४८ (६) तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के प्रथम गणधर । इनका अपर नाम बल था । मपु० ५३.४६, पु० ६०.३४७ बीन्द्र - (१) विजयार्ध पर्वत पर स्थित मन्दरपुर का स्वामी । यह विद्याधरों का राजा था। इसने बलभद्र नन्दिमित्र और नारायणदत्त से गन्धगज की प्राप्ति के लिए युद्ध किया था। इस युद्ध में इसका पुत्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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