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________________ २४२ : जैन पुराणकोश प्राशन-प्रियमित्र प्राशन-गर्भान्वय क्रिया का एक भेद । इस क्रिया में आठ मास की अवस्था में भगवत्पूजा के पश्चात् बालक को अन्न दिया जाता है। मपु० ३८.५५, ९५ प्रास-भाला । यह एक अस्त्र होता है । इसे फेंककर प्रहार किया जाता है । मपु० ४४.८१, १८० प्रासुक-जीव रहित शुद्ध द्रव्य । मपु० ३४.१९२, हपु० १८.१४२ प्रासुकाहार–सचित्त पदार्थों से रहित आहार । राजा श्रेयांस ने ऐसा ही आहार वृषभदेव को देकर उनकी पारणा करायी थी। मपु० २०.८८ प्रास्थाल–भरतक्षेत्र की उत्तर दिशा में स्थित एक देश । यह भरतेश के छोटे भाई के पास था। उसने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की और पिता के पास दीक्षा ले ली। तब यह देश भरत-साम्राज्य में मिल गया । हपु० ११.६८-८७ प्रियंकर-(१) लवणांकुश के पूर्वभव का जीव । काकन्दी नगरी के राजा रतिवर्धन और उसकी रानी सुदर्शना का पुत्र और हितंकर का अग्रज । इस पर्याय के पश्चात् इसने वेयक में जन्म लिया और वहाँ से च्युत होकर लवणांकुश हुआ। पपु० १०८.७, ३९.४६ (२) धरणिभूषण गिरि का इस नाम का उद्यान । यहाँ सगरसेन मुनि से जयसेन आदि राजाओं ने धर्मोपदेश पाया था। मपु०.७६. २२० (३) प्रीतिकर तथा उसकी रानी वसुन्धरा से उत्पन्न पुत्र । यह तीर्थकर महावीर के समय में हुआ था । मपु० ७६.३८५ (४) पृथ्वीतिलक नगर का राजा । इसकी रानी का नाम अतिवेगा और पुत्री का नाम रत्नमाला था । हपु० २७.९१ प्रियंगु-(१) सहेतुक वन का एक वृक्ष । यह तीर्थकर सुमतिनाथ और पद्मप्रभ का चैत्यवृक्ष था । मपु० ५१.७४-७५, पपु० २०.४१-४२ (२) शामली नगर के दामदेव ब्राह्मण के पुत्र सुदेव की भार्या। पपु० १०८.३९-४४ प्रियंगुखण्ड-वाराणसी नगरी का इस नाम का एक वन । यहाँ क्षत्रपुर नगर के व्याध दारुण के पुत्र अतिदारुण ने प्रतिमायोग में स्थित वजा- युध मुनि को मार दिया था जिससे वह सातवें नरक में गया था । मपु० ५९.२७४, ७०.१९१, हपु० २७.१०८ प्रियंगुलक्ष्मी-मृगांक नगर के राजा हरिश्चन्द्र की रानी। इसका पुत्र सिंहचन्द्र था जो अगली पर्याय में सिंहवाहन राजा हुआ था। पपु० १७.१५०-१५५ प्रियंगुश्री-विध्यपुरी के राजा विध्यकेतु की रानी । यह विंध्यश्री की जननी थी । मपु० ४५.१५३-१५४ प्रियंगसुन्दरी-(१) विजायचं पर्वत पर स्थित किलकिल नगर के स्वामी विद्याधर बलीन्द्र की रानी । यह बाली और सुग्रीव की जननी थी। मपु० ६८.२७१-२७३ (२) श्रावस्ती नगरी के राजा एणीपुत्र की पुत्री। इसका वसुदेव के साथ गान्धर्व विवाह हुआ था । हपु० २८.६, २९.६७ प्रियकारिणी-(१) वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सात पुत्रियों में सबसे बड़ी पुत्री। यह भरतक्षेत्र में विदेह देश के कुण्डपुर नगर के राजा सिद्धार्थ की रानी थी । गर्भ धारण करते समय इसने सोलह स्वप्न देखे और मास पूर्ण होने पर चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन अर्यमा योग में चौबीसवें तीर्थङ्कर महावीर को जन्म दिया था । मपु० ७४.२५१-२७६, ७५.३-७, पपु० २०.३६, ६०, हपु० २. १५-२१, पापु० १.७८-८५, वीवच० ७.५९-६९, ८.५९-६० (२) पृथिवीतिलकपुर के राजा अतिवेग की रानो। इसको पुत्री वधायुध की रानी रत्नमाला थी। मपु० ५९.२४१-२४२ प्रियवत्ता-(१) राजा विभीषण की रानी और वरदत्त की जननो । मपु० १०.१४९ (२) सेठ समुद्रदत्त और उसकी प्रिया कुवेरमित्रा की ज्येष्ठ पुत्री। इसकी इकतीस छोटी बहिनें थीं। मपु० ४६.४१-४२ प्रियदर्शन-(१) धातकीखण्ड द्वीप का रक्षक देव । हपु० ५.६३८ (२) सुमेरु पर्वत का अपर नाम । हपु० ५.३७३-३७६ प्रियदर्शना-(१) हस्तिनापुर के राजा अजितसेन की रानी। यह तीर्थ ङ्कर शान्तिनाथ की माता ऐरा के पति विश्वसेन को जननी थी। मपु० ६३.३८२-४०६ (२) धनदत्त और उसकी पुत्री नन्दयशा की पुत्री । यह अगले भव में पाण्डवों की माता कुन्ती हुई थी। मपु० ७०.१८६, १९८ (३) इस नाम की एक आर्यिका । इसने अयोध्या के राजा अरविन्द की पुत्री सुप्रबुद्धा को दीक्षा दी थी। मपु० ७२.३४-३५ (४) ब्रह्मस्वर्ग के विद्युन्माली नामक इन्द्र की प्रधान देवी। मपु० ७६.३२ प्रियधर्म-एक राजा । वह भरत के साथ दीक्षित हो गया था। पपु० ८८.१-६ प्रियनन्दी-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित मन्दरनगर का निवासी एक गृहस्थ । इसकी भार्या का नाम जाया और पुत्र का नाम दमयन्त था। पपु० १७.१४१-१४२ प्रियमित्र-(१) छठे नारायण पुण्डरीक के पूर्वभव का नाम । पपु० २०. २०७, २१० (२) अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी तीसरे चक्रवर्ती मघवा का पुत्र । इसने पिता से साम्राज्य प्राप्त किया था। मपु० ६१.८८, ९९ (३) धनदत्त और उसकी पत्नी नन्दयशा के नौ पुत्रों में आठवाँ पुत्र । आयु के अन्त में मरकर यह अन्धकवृष्णि और उसकी पत्नी सुभद्रा का पूरण नाम का पुत्र हुआ। मपु० ७०.१८६-१९८, हपु० १८.१३-१४, ११५-१२४ (४) एक अवधिज्ञानी मुनि । इनसे तीर्थङ्कर महावीर के पूर्वभव के जीव विद्याधर राजा कनकोज्ज्वल ने दीक्षा ली थी। मपु० ७४.२२३, ७६.५४१ (५) पुण्डरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र और उसकी सुव्रता नामा रानी का चक्रवर्ती पुत्र । युवा अवस्था में पिता का पद प्राप्त करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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