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________________ पृथिवोपुर-प्रकाम २३२ : जैन पुराणकोश पृथिवीपुर–भरतक्षेत्र का नगर । द्वितीय चक्रवर्ती सगर के पूर्वभव के जीव विजय, चतुर्थ प्रतिनारायण मधुकैटभ और राजा पृथिवीधर की निवासभूमि । पपु० ५.१३८, २०.१२७-१३०, २४२-२४४, ८०. १११ पृथिवीमती-(१) हस्तिनापुर के राजा पुरन्दर को रानी और कीर्तिधर की जननी । पपु० २१.१४० (२) अयोध्या के राजा अनरण्य की महोदवी । यह अनन्तरथ और दशरथ की जननी थी । इसका अपरनाम सुमंगला था। पपु० २२. १६०-१६२,२८.१५८ (३) आर्यिका । सीता ने इससे ही दीक्षा ली थी । पपु० १०५.७८ पृथिवीमूर्ति--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १०६ पृथिवीषेणा--काशी नरेश सुप्रतिष्ठ की रानी । यह तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की जननी थी। मपु० ५३. १९, २४ पृथिवीसुन्दरी--(१) वाराणसी के चक्रवर्ती पद्म की प्रथम पुत्री। यह सुकेतु विद्याधर के पुत्र से विवाहित हुई थी। मपु०६६.७६-७७, ८० (२) विदेह देश के विदेहनगर के राजा गोपेन्द्र की रानी रत्नवती की जननी । मपु० ७५,६४३-६४४ (३) राजा शिशुपाल की रानी। यह कल्कि नाम से प्रसिद्ध चतुर्मुख की जननी थी । मपु० ७६.३९७-३९९ ।। (४) लक्ष्मण की भार्या । मपु० ६८.६६६ (५) सेठ कुवेरदत्त और उसकी भार्या धनमित्रा के पुत्र प्रीतिकर की स्त्री । मपु० ७६.३४७ पृथु--पृथिवीनगर का राजा । इसकी रानी अमृतवती से कनकमाला पुत्री हुई थी। यह कन्या मदनांकुश को देने के लिए कहे जाने पर इसने मदनांकुश को अकुलीन समझ कर कन्या देना स्वीकार नहीं किया था किन्तु लवणांकुश और मदनांकुश दोनों भाइयों के द्वारा परास्त कर दिये जाने पर इसने मदनांकुश से अपनी कन्या का विवाह कर दिया था। इसके पश्चात् तो इसने राम और लक्ष्मण के साथ हुए युद्ध में मदनांकुश के सारथी का कार्य भी किया था। पपु० १०१.१-६७, १०३.२ (२) इक्ष्वाकुवंशी राजा शतरथ का पुत्र, अज का पिता । पपु० २२.१५४-१५९ (३) कुरुवंशी एक राजा । यह सुतेज के पश्चात् और इभवाहन से पूर्व हुआ था । हपु० ४५.१४ (४) रावण का सिंहरथारूढ़ सामन्त । पपु० ५७.४५-४८ (५) कृष्ण के भाई बलदेव का १५वाँ पुत्र । हपु० ४८.६६-६८ (६) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. २०३ पृथुधी-पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वसुपाल का साला । यह उत्पलमाला गणिका का प्रेमी था। इसने उत्पलमाला के आभूषण अपनी बहिन सत्यवती को दे दिये थे तथा मांगने पर यह मुकर गया था। राजा ने सत्यवती से पूछा तो उसने सारे आभूषण राजा के सामने रख दिये । इस पर राजा ने क्रुद्ध होकर उसे मारने की आज्ञा दे दी थी किंतु नगर के कुबेरप्रिय सेठ ने दयाद्रं होकर उसे बचाया । इसने अपने अपमान का कारण सेठ को ही समझा । इसलिए इसने किसी विद्याधर से इच्छानुसार रूप बनानेवाली अंगूठी प्राप्त की और उसके प्रभाव से छलपूर्वक अपने रक्षक सेठ को भी मारने का प्रयास किया था किन्तु सफल नहीं हो सका । मपु० ४६.२८९, ३०४ ३२५ पृथुधी-कौतुकमंगल नगर के राजा शुभमति की रानी। यह द्रोणमेष और केकया की जननी थी । पप० २४.२-४.८९-९० पेय-आहार योग्य पदार्थों के पाँच भेदों में (भक्ष्य, भोज्य, पेय, लेह्य और चूष्य) एक भेद। शीतल, जल, मिश्रित जल और मद्य के भेद __ से यह तीन प्रकार का होता है । पपु० २४.५३-५४ पैशुन्यभाषण-पीठ पीछे निन्दा करना । दुष्ट लोग पैशुन्यभावी होते है । हपु० १०.९३ पोवनपुर-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी सुरम्य देश का. एक सुन्दर नगर । यह प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ की जन्मभूमि था। बाहुबली को भगवान् वृषभदेव ने यहाँ का राज्य दिया था। यह उनके राज्य की राजधानी था। मपु० ५४.६८, ५९.२०९, ७०.१३८-१३९, ७३.६, पपु० २०.२१८-२२१, हपु० ११.७८, पापु० २.२२५, ४.४१, ११. ४३, वीवच० ३.६१-६३ पौंड-(१) भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में स्थित देश। यह भरतेश के एक भाई के अधीन था। उसने भरतेश की अधीनता स्वीकार नहीं की और वह दीक्षित हो गया । इसलिए यह देश भरतेश के साम्राज्य में मिल गया था। यहाँ के राजा ने राम-लक्ष्मण और वज्रजंघ के बीच हुए युद्ध में वनजंघ का साथ दिया था। पपु० १०२.१५४-१५७ (२) वसुदेव की पौण्ड्रा रानी से उत्पन्न पुत्र । हपु० ४८.५९ (३) वसुदेव की रानी चारुहासिनी से उत्पन्न पुत्र । हपु० २४. ३१-३३ (४) भद्रिलपुर नगर का राजा । इसकी पुत्री चारुहासिनी वसुदेव को विवाही गयी थी। इसने तीर्थकर नेमि के समवसरण में जाकर उसकी वन्दना की थी। हपु० २४.३१-३२, ३१.२८, ३२.३९, ५९. पौण्डा-वसुदेव की एक रानी । पौण्ड इसका पुत्र था। हपु० ४८.५९ पौरवी--संगीत के धैवत की एक मूर्च्छना । हपु० १९.१६३ पौलोम-हरिवंशी राजा पुलोम का पुत्र । यह चरम का भाई था । पिता के दीक्षित होने पर इसे उसका राज्य मिला था। हपु० १७. २४-२५ पृच्छना-स्वाध्याय तप का एक भेद । दे० स्वाध्याय प्रकांडक-एक हार । इस हार में क्रम से बढ़ते हुए पाँच मोता लगते है। मपु० १६.४७, ५३ प्रकाम-भविष्यत् कालीन रुद्र । हपु०६०.५७१-५७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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