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________________ जिनकुंजर-जिनदेव जैन पुराणकोश : १४५ (२) इस नाम का एक सामायिक चारित्र । मपु० ३४.१३० जिनकुजर-भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३८ जिनगुणद्धि-एक व्रत । इसका दूसरा नाम है जिनगुणसम्पत्ति। मपु० ७.५३ जिनगुणसम्पत्ति-एक व्रत । इसमें कल्याणकों के पांच, अतिशयों के चौंतीस, प्रातिहार्यों के आठ और सोलह कारण भावनाओं के सोलह, कुल वेसठ उपवास किये जाते हैं तथा एक-एक उपवास के बाद एकएक पारणा की जाती है । इनमें सोलह कारण भावनाओं के निमित्त सोलह प्रतिपदा, पंच कल्याणकों के निमित्त पाँच पंचमी, अष्ट प्रातिहार्यों के निमित्त आठ अष्टमी, और चौंतीस अतिशयों के लिए बीस दशमी तथा चौदह चतुर्दशी तिथियों में उपवास किये जाते हैं। यह तीर्थकर-प्रकृति के बन्ध में सहायक होता है। मपु० ६.१४१-१४५, हपु० ३४.१२२ अपरनाम जिनगुणख्याति । मपु० ६३.२४७ जिनजननसपर्या-जिनेन्द्र की जन्मकालीन पूजा । मपु० १२.२१२ जिनदत्त-(१) जम्बूद्वीप के मंगलादेश में भविलपुर नगर के धनदत्त सेठ और नन्दयशा सेठानी का सातवां पुत्र । धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अहद्दत्त, अर्हद्दास प्रियमित्र ओर धर्मरुचि इसके भाई थे। प्रियदर्शना और ज्येष्ठा इसकी बहिनें थीं। इसने अपने पिता और भाइयों के साथ दीक्षा ले ली थी। इसकी मां और बहिनें भी सुदर्शना आर्यिका के पास दीक्षित हो गयी थीं। संन्यास-मरणकरके ये सब आनत-स्वर्ग के शातंकर-विमान में देव हुए। मपु० ७०.१८२-१९६, हपु०१८.११२-१२४ (२) गोवर्द्धन ग्राम का एक गृहस्थ । श्रावकाचार का पालन करते हुए संन्यास-मरण करके इसने देवगति प्राप्त की थी। पपु० २०.१३७, १४१-१४३ (३) अंग देश की चम्पा नगरी के निवासी धनदत्त सेठ और सेठानी अशोकदत्ता का छोटा पुत्र । जिनदेव इसका बड़ा भाई था। बन्धुजनों की प्रेरणा से इसे दुर्गन्धा सुकुमारी के साथ विवाह करना पड़ा। विवाह हो जाने पर भी वह उसके पास कभी नहीं गयी। मपु० ७२. २२७, २४१-२४८ (४) राजपुर नगर के सेठ वृषभदत्त और सेठानी पद्मावती का पुत्र । मित्र गरुड़वेग के निवेदन पर इसने अपने मित्र की पुत्री गन्धर्वदत्ता का अपने नगर में स्वयंवर कराया था। इसमें जीवन्धर कुमार ने वीणा बजाकर गन्धर्वदत्ता को पराजित किया था। हारने पर गन्धर्वदत्ता ने जीवन्धर कुमार के साथ विवाह किया था। मपु० ७५. ३१४-३३६ जिनदत्ता-(१) एक आर्यिका । मथुरा के सेठ भानुदत्त की स्त्री यमुना दत्ता को इसी ने दीक्षा दी थी। मपु० ७१.२०१-२०६, हपु० ३३. ९६-१०० (२) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सुगन्धिल देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हद्दास की पत्नी, अपराजित की जननी । मपु० ७०. ४-५, १०, हपु० ३४.३-५ (३) मृणालवती नगरी के सेठ अशोकदेव की स्त्री। यह सुकान्त की जननी थी । मपु० ४६.१०३, १०६ (४) जिनदेव की पुत्री। पुष्कलावती देश में विजयपुर नगर के सेठ मधुषेण की पुत्री बन्धुयशा की यह सखी थी। मपु० ७१.३६३३६५ (५) पुष्कलावती देश में वीतशोका नगरी के राजा अशोक और उसकी रानी श्रीमती की पुत्री श्रीकान्ता ने इसी के पास दीक्षा ली थी । हपु० ६०.६९-७० (६) वाराणसी नगरी के धनदेव वैश्य की स्त्री। यह चोरी के लिए कुख्यात शान्तव और रमण की जननी थी। मपु० ७६.३१९ (७) विदेह क्षेत्र की अयोध्या नगरी के राजा अहद्दास की दूसरी रानी, विभीषण की जननी । मपु० ५९.२७६-२७९, हपु० २७.१११ ११२ जिनवास-(१) भद्रिलपुर नगर का निवासी एक सेठ । यह धनदत्त और उसकी पत्नी नन्दयशा का पाँचवाँ पुत्र था। यह अपने सभी भाई तथा पिता के साथ गुरु सुमन्दर के पास दीक्षित हो गया था। ये सभी मरकर अच्युत स्वर्ग गये और आगे वसुदेव के भाई हुए । हपु० १८. १११-१२४ (२) मथुरा का निवासी एक सेठ । हपु० ३३.४९ (३) एक विद्वान् । इसने सिंहपुरवासी सोम नामक दुष्ट परिव्राजक को वाद-विवाद में पराजित किया था। पोदनपुर के राजा श्रीविजय के सातवें दिन मरने की भविष्यवाणी के प्रसंग में इस विद्वान् का 'नाम आया है । पापु० ४.११७ जिनवासी-सेठ अर्हदास की पत्नी । यह अन्तिम केवली जम्बस्वामी की जननी थी। मपु० ७६.३४-३७ जिनदेव-(१) जिनधर्मोपदेशक एक जैन । इसने कृष्ण की तीसरी पट रानी जाम्बवती को उसकी पूर्व पर्याय में जब वह एक गृहपत्यान्वय के श्रावक की पुत्री थी, सम्यक्त्व का उपदेश दिया था परन्तु मोह के उदय से वह सम्यग्दर्शन प्राप्त न कर सकी थी। हपु० ६०.४३-४५ (२) चम्पापुर के निवासी वैश्य धनदेव और उसकी पत्नी अशोकदत्ता का ज्येष्ठ पुत्र । यह जिनदत्त का अग्रज था। इसके कुटुम्बी इसका विवाह सुबन्धु सेठ को दुर्गन्धित शरीरवाली सुकुमारी नाम की पुत्री से करना चाहते थे किन्तु सुकुमारी की दुर्गन्ध का बोध होते ही इसने सुव्रत नामक मुनिराज से दीक्षा धारण कर ली। छोटे भाई जिनदत्त को कुटुम्बियों की प्रेरणावश सुकुमारी से विवाह करना पड़ा था। मपु० ७२.२४१-२४८ दे० जिनदत्त (३) भद्रिलपुर नगर के निवासी सेठ धनदत्त तथा उसकी स्त्री नन्दयशा का तोसरा पुत्र । मपु० ७०.१८२-१८६, ७१.३६२ दे० जिनदत्त (४) पुष्कलावती देश में विजयपुर नगर के मधुषेण वैश्य की पुत्री बन्धुयशा की सखी जिनदत्ता का पिता । मपु० ७१.३६३-३६५ (५) एक सेठ । इसने अपनी धरोहर धनदेव सेठ को दी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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