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________________ १२० : मैन पुराणकोश चण्डवेगा-चन्दन संयोग से वह इसके कंधे पर गिरा । इसने उसे अनेक विद्याशस्त्र दिये चतुर्दश महारल-चक्रवर्ती के चौदह महारल-सुदर्शन चक्र, छत्र, खड्ग, थे । वसुदेव ने त्रिशिखर विद्याधर के साथ जिसने इसके पिता को दण्ड, काकिणी, चर्म, मणि, पुरोहित, सेनापति, स्थपति, गृहपति, बाँधकर कारागृह में डाल दिया था, युद्ध करके माहेन्द्रास्त्र के द्वारा स्त्री, गज और अश्व । मपु० ६१.९५, ३७.८४, हपु० ११.१०८-१०९ उसका सिर काट डाला था और इसके पिता को बन्धन मुक्त कराया चतुर्दश महाविद्या-उत्पादपूर्व आदि चौदह पूर्व । मपु० २.४८, ३४.१४७ था तथा मदनवेगा प्राप्त की थी। हपु० २५.३८-७१ चतुर्भेदज्ञान-चार ज्ञान । मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ये चार चण्डवेगा-(१) वरुण पर्वत के समीप पांच नदियों के संगम की एक ___ ज्ञान है । मपु० ३६.१४५ नदी। मपु० ५९.११८-११९, हपु० २७.१३-१४ चतुर्मासा-चार मास परिमित काल, वर्षाकाल । हपु० १८.९९ (२) इस नाम की एक विद्या। अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने ___चतुर्मख-(१) नौ नारदों में सातवाँ नारद । इनकी आयु नागयणों के यह विद्या सिद्ध की थी। मपु० ६२.३९७ बराबर होती है तथा नारायणों के समय में ही ये होते हैं। महाभव्य चण्डशासन-मलय देश का राजा । यह पोदनपुर-नरेश वसुषेण का मित्र और जिनेन्द्र के अनुगामी होते हुए भी ये कलहप्रेमी, कदाचित् धर्म था । एक बार यह वसुषेण के पास आया और इसने उसकी पत्नी स्नेही और हिंसा-प्रेमी होते हैं । हपु० ६०.५४८-५५० नन्दा का अपहरण किया था। यह मरकर अनेक भवों में भ्रमण करने (२) एक मुनिराज, जिन्हें सिद्धिवन में केवलज्ञान हुआ था । मपु० के बाद काशी देश की वाराणसी नगरी में मधुसूदन नाम का राजा ४८.७९ हुआ था। मपु० ६०.५०-५३, ७०.७१ (३) राजा शिशुपाल और रानी पृथिवीसुन्दरी का पुत्र । दुःषमा चतुरंग-सेना के चार अंग-अश्व, गज, रथ और पैदल सैनिक । मपु० काल के एक हजार वर्ष बाद पाटलिपुत्र नामक नगर में इसका जन्म ३०.२-३, हपु० २.७१ हुआ था । यह महादुर्जन था । कल्किराज नाम से विख्यात था । इसकी चतुरन-ताल की द्विविध योनियों में एक योनि । पपु० २४.९ आयु सत्तर वर्ष और शासनकाल चालीस वर्ष रहा। निर्ग्रन्थ मुनियों चतुरस्त्रानुयोग-श्रुत के चार अनुयोग-(१) प्रथमानुयोग (२) करणानु से कर वसूली के प्रसंग में किसी सम्यग्दृष्टि असुर द्वारा यह मारा योग (३) चरणानुयोग और (४) द्रव्यानुयोग । हपु० ५८.४ , गया और मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ। मपु० ७६.३९७-४१५ चतुरानन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७४ (४) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७४ चतुर्मुखमह-अर्हन्त की चतुर्विध पूजा का एक भेद । यह एक महायज्ञ चतुरास्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७४ चतुर्गति–चार गतियाँ । नरक, तिर्यंच, मनुष्य औ देव । ये चार गतियाँ है और महामुकुटबद्ध राजाओं के द्वारा सम्पन्न होता है। अपरनाम सर्वतोभद्र । मपु० ३७.२६-३०, ७३.५८ होती है । मपु० ४२.९३ चतर्मुखी-विजयाधं की दक्षिणश्रेणी की पचास नगरियों में एक नगरी। चतुर्णिकाय-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक इन चार इसके ऊँचे-ऊँचे चार गोपुर है। मपु० १९.४४, ५३ निकायों के देव । हपु० २.२८ चतुर्वस्त्र-(१) इक्ष्वाकुवंशी राजा ब्रह्मरथ का पुत्र । यह हेमरथ का चतुर्थक-एक व्रत । इस व्रत में एक दिन का उपवास किया जाता है । पिता था । पपु० २२.१५३-१५९ हपु० ३४.१२५ (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७४ चतुर्थकाल-अवसर्पिणी काल के छः भेदों में दुःषमा-सुषमा नामक चौथा चविष बन्ध-चार प्रकार का कर्मबन्ध-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और भेद । मपु० ३.१७-१८, हपु० १.२६ प्रदेश । मपु० ५८.३१ चतुर्थज्ञान-सम्यग्ज्ञान के पांच भेदों में चौथा ज्ञान-मनः पर्ययज्ञान । मपु० चतुर्विधामर-चार प्रकार के देव-(भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क ४८.४० और वैमानिक) । मपु० ५५.५१ चतुर्थवतभावना-ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाएं-स्त्री-कथा, स्त्र्या चतुर्विशतिस्तव-अंगबाह्य श्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में एक प्रकीर्णक । लोक, स्त्री-संसर्ग, प्राग्रतस्मरण और गरिष्ठ तथा उत्तेजक आहार का हपु० २.१०२ दे० अंगबाह्यश्रुत त्याग । मपु० २०.१६४ चतःशाल-राम-लक्ष्मण के भवन नन्द्यावर्त का एक कोट । मपु० ८३. चतुर्थ शुक्लध्यान-शुक्लध्यान के चार भेदों में चौथा भेद-व्यपरतक्रिया-निवति । योग केवली गुणस्थान में योगों का पूर्ण निरोध हो चतुष्टयी वृत्ति-अर्थ को चार वृत्तियाँ-अर्जन, रक्षण, वर्धन और व्यय । जाना-मुक्त अवस्था को पा लेना । मपु० ६३.४९८ मपु० ५१.७ चतुर्थीविद्या-आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति इन चार विद्याओं , त्रयी, वार्ता और दण्डनीति इन चार विद्याओं चतुस्त्रिंशत् महाद्भुत-अर्हन्त के चौंतीस अतिशय-जन्म सम्बन्धी दस, में चौथी विद्या-दण्डनीति । मपु० ५१.५ केवलज्ञान सम्बन्धी दस और देवकृत चौदह । हपु० २.६७ चतुर्थवशपूर्वी-महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए उत्पादपूर्व आदि चौदह चन्दन-(१) एक वन, एक वृक्ष । मपु० ६२.४०९। पूर्वो के ज्ञाता पाँच मुनि । इनके नाम है-विष्णु, नन्दिमित्र, अपरा- (२) सुसीमा नगर के राजा पद्मगुल्म का पुत्र । यह नगर के तीसरे जित, गोवर्धन और भद्रबाहु । हपु० १.५८ पुष्करपुर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में स्थित मेरु पर्वत के पूर्व विदेह क्षेत्र में Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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