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________________ ११२ : मेन पुराणकोश अपने पुत्रों के राज्य न लेने पर ज्येष्ठ पुत्र अमिततेज के पुत्र पुण्डरीक को राज्य दे दिया और वह साठ हजार रानियों, बीस हजार राजाओं और एक हजार पुत्रों के साथ इन्हीं से दीक्षित हो गया। मपु० ८. ७९.८५ (२) राजा उग्रसेन का द्वितीय पुत्र । ये छः भाई थे । हपु० ४८.३९ गुणनायक-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३५ गुणनिधि-एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । इन्होंने दुर्गागिरि के शिखर पर आहार-परित्याग कर चार मास का वर्षायोग धारण किया था। वर्षायोग के पश्चात् ये आकाश मार्ग से अन्यत्र विहार कर गये थे। पपु० ८५.१३९-१४० गुणपाल-(१) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणो नगरी का नृप । यह वसुपाल का पिता था । अपने प्रिय सेठ कुबेरप्रिय की पुत्री वारिषणा के साथ इसने अपने पुत्र वसुपाल का विवाह किया था। संसार से विरक्त होकर इसने वसुपाल को राज्य दे दिया और श्रीपाल को युवराज बनाया। इसके पश्चात् यह सेठ कुबेरप्रिय तथा अन्य अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गया । कठोर तपस्या करके यह सुरगिरि पर्वत पर केवली हुआ। मपु० ४६.२८९, २९८, ३३२-३४१, ४७. (२) पुण्डरीकिणी नगरी के चक्रवर्ती श्रीपाल और उसकी रानी जयावती का पुत्र । इस पुत्र के उत्पन्न होते ही श्रीपाल की आयुधशाला में चक्ररत्न भी प्रकट हुआ था। मपु० ४७.१७6-१७२ (३) राजपुर नगर के सेठ वृषभदत्त का दीक्षागुरु । मपु० ७५.३१४ (४) विदेशक्षेत्र के एक तीर्थकर । श्रीपाल उनके समवसरण में गया था। मपु० ४७.१६०.१६३ (५.) राजा लोकपाल का पुत्र और प्रियदत्ता की पुत्री कुबेरश्री का पति । मपु० ४६.२४३-२४६ गुणप्रभ-एक मुनि । भरतक्षेत्र स्थित अलका देश में अयोध्या नगर के राजा अजितंजय का पुत्र । अजितसेन इन्हीं मुनि से दीक्षित हुआ था। मपु० ५४.८६-८७, ९२.१२२-१२६ । गुणप्रभा-त्रिशृंग महानगर के राजा प्रचण्डवाहन की ज्येष्ठा पुत्री। नौ बहिनों के साथ इसका विवाह युधिष्टिर के साथ करना निश्चित हुआ था किन्तु युधिष्ठिर के अन्यथा समाचार मिलने से यह विवाह नहीं हो सका और ये दसों लड़कियाँ अणुव्रत धारण करके श्राविकाएँ बन गयीं । हपु० ४५.९५-९९ गुणभद्र-(१) वीरभद्र मुनि के सहगामी चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने तापस वशिष्ठ का अज्ञान दूर किया था जिससे वह जिनदीक्षा लेकर आतापन योग में स्थिर हो गया था। मपु० ७०.३२२३२८ (२) महापुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन के शिष्य । इन्होंने उत्तरपुराण की रचना की थी। लोकसेन इनके शिष्य थे। इनके उत्तरपुराण से प्रेरित होकर आचार्य शुभचन्द्र ने पाण्डवपुराण की रचना की थी। मपु० ५७-६७, पापु० १.१८-२० गुणनायक-गुणवती गुणमंजरी कनकपुर नगर के नरेश सुषेण की लोकप्रिय नर्तकी। यह ___नृत्य, गीत और वाद्य में निपुण थी । मपु० ५८.६१.६२ गुणमाला-(१) राजपुर नगर के कुमारदत्त वैश्य और विमला की पुत्री। इसका विवाह जीवन्धर से हुआ था। मपु० ७५.३५१-३५२, ५८८, ६०१-६२८, ६३४-६३५ (२) लक्ष्मण की रानी । यह वेलन्धर नगर के स्वामी समुद्र की तीसरी पुत्री थी । सत्यश्री और कमला की यह अनुजा थी और रल चूला इसकी बड़ी बहिन थी । पपु० ५४.६५-६९ गुणमित्र-(१) सुजन देश के हेमाभ नगर के राजा दृढ़मित्र का पुत्र । यह हेमाभा का भाई और जीवन्धरकुमार का साला था। मपु० ७५. ४२०-४३० (२) राजपुर नगर के एक जौहरी का पुत्र । इसी नगर के रत्नतेज सेठ की पुत्री अनुपमा से इसका विवाह हुआ था । जलयात्रा करते समय यह भंवर में फंसकर मर गया। पति-वियोग में अनुपमा भी उसी जल में डूब कर मर गयी । मपु० ७५.४५०-४५७ गुणवती-(१) प्रभावती आर्यिका की सहवर्तिनी एक गणिनी। यह राजा प्रजापाल की पुत्री थी और इसने अमितमति आर्यिका के सान्निध्य में संयम धारण कर लिया था। मपु० ४६.२२३, पपु० ३.२२७ इसने श्रीधरा और यशोधरा को तथा धनश्री को दीक्षा दी थी। मपु० ५९.२३२, ७२.२३५, हपु० २७.८२, ६४.१२-१३ (२) वानरवंशी राजा अमरप्रभ की भार्या । पपु० ६.१६२ (३) सुग्रीव की ग्यारहीं पुत्री । पपु० ४७.१४१ (४) भरतक्षेत्र के एकक्षेत्र नगर के निवासी सागरदत्त वणिक् तथा उसकी स्त्री रत्नप्रभा की पुत्री । इसके भाई का नाम गुणवान् था । उसी नगर के सेठ नयदत्त के पुत्र धनदत्त को वह अपना पति बनाना चाहती थी। जब वह नहीं मिला तो यह आर्तध्यान से दुखी होकर मर गयी और मृगी की पर्याय में इसने जन्म लिया । इसके बाद हथिनी की पर्याय में होती हुई यह श्रीभूति पुरोहित की पुत्री वेदवती हुई। आगे चलकर यही राजा जनक की पुत्री सीता हुई । पपु० १०६.१०२६, १३६-१४१, १७८ (५) रत्नपुर नगर के राजा रत्नांगद तथा उसको रानी रत्नवती की पुत्री । इसे रलांगद के किसी शत्रु ने हरण करके यमुना के तट पर छोड़ दिया था । एक धीवर को यह प्राप्त हुई। उसके पुत्र-पुत्री न होने से वह उसी धीवर के द्वारा पाली गयी तथा धीवर द्वारा हो इसका यह नाम रखा गया। यह योजनगन्धा थी। इसके शरीर की सुगन्ध एक योजन तक फैल जाती थी। राजा पाराशर इसे देख कर इस पर मुग्ध हो गया। इसको पाने की कामना से धीवर के पास जाकर उसने अपनी इच्छा प्रकट की। धोवर को पता था कि पाराशर का पुत्र गांगेय बड़ा पराक्रमी है और राज्याधिकारी है। उसने पाराशर की बात नहीं मानीं। जब गांगेय को यह पता चला कि उसका पिता धीवर-कन्या को चाहता है तो उसने धीवर को विश्वास दिलाया कि राज्य का अधिकारी गुणबती का पुत्र ही होगा। वह Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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