SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ : जैन पुराणको गन्धदेवी-गन्धवान् अनेक ध्वजाओं से सुसज्जित किया जाता है। मपु० २३.१०-२६, ३३.११२, १५० हपु० ५७.७, वीवच० १४.१७७-१८३ गन्धवेवी–शिखरी फुलाचल के ग्यारह कूटों में नवां कूट ।हपु० ५.१०७ गन्धमादन-(१) विजयाध-पर्वत की उत्तरश्रेणी के साठ नगरों में पचासवां नगर । हपु० २२.९० (२) राजा जरासन्ध का एक पुत्र । हपृ० ५२.३१ (३) राजा हिमवान् का सबसे छोटा पुत्र । हपु० ४८.४७ (४) मेरु पर्वत की पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित एक स्वर्णमय गजदन्त पर्वत । यह नोल और निषध पर्वत के समीप चार सौ तथा मेरु पर्वत के समीप पाँच सौ योजन ऊँचा है, गहराई ऊँचाई से चौथाई है, देवकुरु और उत्तरकुरु के समीप इसकी चौड़ाई पाँच सौ योजन है । इस पर्वत से गन्धवती नदी निकली है। मप० ६३.२०४ ७१ ३०९, हपु० ५.२१०-२१८ मुनि विमलवाहन और विदेहक्षेत्रस्थ सुपमा देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हद्दास यहीं से मोक्ष गये थे। यह सुप्रतिष्ठ मुनिराज की कैवल्यभूमि थी। मपु० ७०.१८-१९, १२४, हपु० १८.२९-३१, ३४.१० (५) शौर्यपुर के उद्यान में स्थित पर्वत । हपु० १८.२९ (६) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३१ गन्धमादनकूट-गन्धमादन पर्वत का एक कूट । हपु०५.२१७ गन्धमादिनी-उत्तर विदेह क्षेत्र की एक विभंगा-नदी। यह नीलाचल से निकलकर सीतोदा नदी में मिली है । हपु० ५.२४२-२४३ गन्धमालिनी-(१) पश्चिम विदेह क्षेत्र के बत्तीस देशों में अन्तिम देश । यह नील पर्वत और सीतोदा नदी के मध्य स्थित है। वीतशोका नगरी, विजया पर्वत तथा इस देश की राजधानी अवघ्या की स्थिति इसी देश में है । मपु० ५९.१०९, ६३. २१२, २१७, हपु० ५. २५१-२५२, २७.५ (२) जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र का एक नगर । हपु० २७.११५ (३) विदेहक्षेत्र की बारह विभंगा नदियों में दसवीं नदी । मप्० ६३.२०७ नान्धमालिनिक-गन्धमादन पर्वत के सात कूटों में चौथा कूट। हपु० ५.२१७ गन्धमित्र-साकेत का मांसाहारी राजा । मपु० ५९.२६६, हपु० २७. १००-१०२ गन्धर्व-(१) गन्धर्वनगर के निवासी इन्द्र के गायक देव । ये देवसेना के आगे बाध बजाते हुए चलते हैं । मपु० १३.५०, १४.९६, पपु. ३.३०९-३१०, ७.११८, वीवच०८.९९ (२) संगीत-विद्या । हपु० ८.४३ (३) रात्रि का तीसरा प्रहर । मपु० ७४.२५५ (४) सुमेरु पर्वत के नन्दन वन की पश्चिम दिशा में स्थित एक भवन । इसकी चौड़ाई तीस योजन, ऊँचाई पचास योजन और परिधि नब्बे योजन है। यहाँ लोकपाल वरुण अपने परिवार की साढ़े तीन करोड़ स्त्रियों के साथ मनोरंजन करता है। हप० ५. ३१५-३१८ (५) विद्याओं के आठ निकायों में पांचवां निकाय। यह अदिति देवी ने नमि और विनमि को दिया था। हपु० २२.५७-५८ (६) एक विवाह । इसमें पुरुष और स्त्री स्वयं एक दूसरे को वर लेते हैं । कोई वैवाहिक विधि नहीं होती । पपु० ८.१०८ (७) दधिमुख नगर का राजा । इसकी रानी अमरा से उत्पन्न तीन पुत्रियाँ थीं-चन्द्रलेखा, विद्युत्प्रभा और तरंगमाला। इसने राम के साथ इनका विवाह कर दिया था । पपु० ५१.२५-२६, ४७-४८ (८) अर्जुन का एक मित्र । इसने वनवास के सहाय वन में दुर्योधन ___ को युद्ध में बाँधा था । पापु० १७.६५-६७, १०१-१०४ गन्धर्वगीत–एक नगर । यहाँ का राजा सुरसन्निभ था । पपु० ५.३६७ गन्धर्वदत्ता-(१) वसुदेव की रानी। वसुदेव की वीणा बजाने में कुशलता से प्रसन्न होकर इसने उसका वरण किया था। मपु० ७०. ३०२-३०४ (२) जीवन्धर कुमार की पत्नी। यह रमणीय नगर के निवासी विद्याधर गरुड़वेग और उसकी रानी धारिणी की पुत्री थी। मपु० ७५.३०२-३०४, ३२४-३३६, पापु० ११.२५-२९ गन्धर्वद्वीप-ऐरावत क्षेत्र की उत्तरदिशा में स्थित उत्तमोत्तम चैत्यालयों से विभूषित एक द्वीप । पपु० ३.४५ गन्धर्वनगर-मेघों से निर्मित काल्पनिक नगर । यह देखते ही देखते __नष्ट हो जाता है। सम्पत्ति की स्थिति इसी प्रकार को होती है। मपु० ५०.५० गन्धर्वपुर-विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी के साठ नगरों में पैंतीसा नगर । ललितांगदेव स्वर्ग से च्युत होकर इसी नगर के राजा वासव और उसकी महादेवी प्रभावती का महीधर नाम का पुत्र हुआ । मपु० ७.२८-२९, १९.८३ गन्धर्वशास्त्र-सौ से अधिक अध्यायों से युक्त गीत-वाद्य सम्बन्धी तथ्यों का प्रतिपादक शास्त्र । वृषभदेव ने अपने पुत्र वृषभसेन को इसका उपदेश किया था। मपु० १६.१२० गन्धर्वसेना-(१) अमितगति विद्याधर की विजयसेना से उत्पन्न पुत्री । गन्धवसेना-(१) इसका विवाह वसुदेव के साथ हुआ था। हपु० १.८१, २१.११८१२२ (२) चारुदत्त की गान्धर्वशास्त्र में निपुण सुन्दरो पुत्री । हपु० १९.१२३ (३) सेना की सात कक्षाओं में एक कक्षा । मपु० १०.१९८-१९९ गन्धर्वा-गन्धर्वगीत नगर के राजा सुसन्निभ और उसकी रानी गान्धारी की पुत्री। यह भानुरक्ष से विवाहित थी। यह दस पुत्र और छ: पुत्रियों की जननी थो । पपु० ५.३६७-३६९ गन्धवती-एक नगरी । सुकेतु और अग्निकेतु यहों के निवासी थे। पपु० ४१.११५ गन्धवान्-हैमवत क्षेत्र के मध्य में स्थित चार गोलाकार विजया पर्वतों में एक पर्वत । रोह्या और रोहितास्या नदियाँ इसके पास बहती है। प्रभात यहाँ का व्यन्तर देव है । हपु० ५.१६१-१६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy