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________________ कैटभारि-कोण जैन पुराणकोश : ९९ शाम्ब नाम का पुत्र हुआ। पपु० १०९.१३०-१३२, १६८, हपु० रावण का हन्ता हुआ । मपु० ६८.६४३-६४५, पपु० ४८.१८५-१८६, ४३.१५९ २१३-२१४ कैटभारि-अवसर्पिणी काल के नौ प्रतिनारायणों में पांचवाँ प्रतिनारायण। कोदण्ड-ऊँचाई मापने का एक प्रमाण-धनुष, अपरनाम दण्ड । यह चार अपर नाम मधु कैटनभ । हपु० ६०.२९१, वीवच० १८.११४-११५ ___ हाथ प्रमाण होता है । हपु० ४.३२४-३२५, ३३३-३३६, ७.४५-४६ कैन्नरगीत-पवनंजय का साथी एक नृप । पपु० १६.२२४ कोद्रव-कोदों। यह धान वृषभदेव के समय से होता आया है। चन्दना कैलास-(१) अष्टापद नाम से विख्यात-वर्तमान हिमालय से आगे का ने इसी का आहार महावीर को दिया था। मपु० ३.१८६ एक पर्वत । यह तीर्थंकर वृषभदेव की निर्वाणभूमि है । चक्रवर्ती भरत कोल–दशानन (रावण) का अनुयायी एक नृप । इसने इन्द्र को जीतने ने यहाँ महारत्नों से जटित चौबीस अर्हत् मन्दिर बनवाये थे । पाँच के लिए जाते हुए रावण का साथ दिया था । पपु० १०.२८, ३७ सौ धनुष ऊँची वृषभ जिनेश की प्रतिमा भी उन्होंने यहीं स्थापित कोलाहल-(१) एक पर्वत । भरतेश की सेना ऋष्यमूक पर्वत से चलकर करायी थी। मपु० १.१४९, ४.११०, ३३.११, ५६, ४८.१०७, इस पर्वत पर आयी थी। इस पर्वत को पार करके वह माल्य पर्वत पपु० ४.१३० ९८.६३-६५, हपु० १३.६ ___ की ओर बढ़ी थी। मपु० २९.५६ (२) एक वन । हिमालय प्रदेश के वन इसी वन के अन्तर्गत हैं। (२) राम का एक योद्धा । पपु० ५८.२१ मपु० ४७.२५८ कोशल कोसल-कर्मभूमि के आरम्भ में इन्द्र द्वारा निर्मित एक देश । कैलासवारुणी-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरों में ___ यह भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में विन्ध्याचल के उत्तर में मध्यप्रदेश में एक नगर । मपु० १९.७८ स्थित है । वृषभदेव और महावीर को विहारभूमि । इस देश के राजा कैवल्य-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय रूप चतुर्विध को पहले भरतेश ने बाद में राम के पुत्र लवणांकुश ने पराजित किया घातिया कर्मों के विनाश से उत्पन्न, समस्त पदार्थों को एक साथ था । अयोध्या इसी देश की नगरी थी। मपु० १०.१५४, १६.१४१जाननेवाला, अविनाशी ज्योतिःस्वरूप ज्ञान-केवलज्ञान । मपु० ५. १५४, २५-२८७, २९.४०, ४८.७१, पपु० १०१.८३-८६, ११७.१, १४९, २०.२६४, २१.१७५, १८६ हपु० ३.३, ११-६५, ७४, ४६.१७, ६०.८६, पापु० २.१५७-१५८, कैवल्यनवक-नौ केवल-लब्धियाँ । ये नौ लब्धियाँ है-दान, लाभ, भोग, वीवच० २.५०, ४.१२१ । परिभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चारित्र । मपु० ७२. कोशातको–एक फल-कड़वी तूंबी । अमृतरसायन नामक रसोइया ने द्वेष १९१ .. वश इसो फल को खिलाकर सुधर्म मुनिराज को मार डाला था। कैवल्यपूजा-केवलज्ञान की पूजा । तीर्थकरों को केवलज्ञान होने पर इन्द्र मपु० ७१.२७०-२७५ का आसन कम्पित होता है। वह अवधिज्ञान से तीर्थकरों के कैवल्य __कोशावत्स-कौशाम्बी का राजा। इसके पुत्र का नाम इन्द्रदत्त था और को जानकर उनके पास सपरिवार आता है और उनकी पूजा करता पुत्री का नाम इन्द्रदत्ता। मथुरा के राजा चन्द्रभद्र के पुत्र अचल ने है। इसी समय कुबेर समवसरण (प्रवचन-सभा) की रचना करता इन्द्रदत्त के गुरु विशिखाचार्य को शस्त्रविद्या में पराजित कर दिया है । मपु० ७.९९, २२.१३-१४, ३१५, ५७.५२-५३ था । उसकी बाण-विद्या से प्रभावित होकर कोशावत्स ने अपनी कन्या कैशिकी-संगीत की दस जातियों में मध्यम ग्राम के आश्रित अन्तिम का विवाह उसके साथ कर दिया था । पपु० ९१.३०-३२ जाति । पपु० २४.१४-१५, हपु० १९.१७७ कोष्ठबुद्धि-(१) एक ऋद्धि । गौतम इस ऋद्धि के धारक थे। इस कोकण-वृषभदेव के समय में इन्द्र द्वारा निर्मित एक देश । (पुणे का ऋद्धि से इनको अनेक पदार्थों का ज्ञान था। मपु० २.६७, ११.८० पाश्र्ववर्ती प्रदेश)। मपु० १६.१४१-१५६, पापु० १.१३२ कोटिकशिला-निर्वाणशिला। अनेक कोटि मुनियों के इस शिला पर (२) एक बोध-विद्या । यह मतिज्ञान की वृद्धि होने से उत्पन्न ध्यान करते हुए सिद्ध अवस्था को प्राप्त होने से यह इस नाम से होती है । मपु० १४.१८२, ३६.१४६ विख्यात हो गयी। एक योजन ऊँची इतनी ही लम्बी और चौड़ो कोष्ठागार-भण्डार-वस्तु-संग्रह का स्थान-कक्ष । यह कोषाध्यक्ष के देवों द्वारा सुरक्षित इस शिला को नौ नारायणों ने अपनी शक्ति के अधीन होता है । मपु० ८.२२५ । अनुसार ऊँचा उठाया था । प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ ने जहाँ तक भुजाएँ कोहर-पद्म (राम) के समय का एक देश । पुण्डरीकपुर के राजा ऊपर पहुँचती है वहाँ तक दूसरे नारायण द्विपृष्ट ने मस्तक तक, तीसरे वज्रजंघ ने इस देश के राजा को हराया था ।पपु० १०१.८४-८६ स्वयंभू ने कण्ठ तक, चौथे पुरुषोत्तम ने वक्षःस्थल तक, पाँचवें नृसिंह कौडिन्य-इन्द्र की प्रेरणा से महावीर के समवसरण में आगत एक ने हृदय तक, छठे पुण्डरीक ने कमर तक, सातवें दत्तक ने जाँघों तक, विद्वान् । इसके पाँच सौ शिष्य थे । समवसरण में आकर वस्त्र आदि आठवें लक्ष्मण ने घुटनों तक और नवें श्रीकृष्ण ने इसे चार अंगुल त्याग कर अपने शिष्यों के साथ यह संयमी हो गया था। हप० २. ऊपर उठाया था। हपु० ५३.३२-३८ इसी शिला के सम्बन्ध में ६८-६९ योगीन्द्र अनन्तवीर्य ने भविष्यवाणी की थी कि जो इसे उठावेगा वही __कौक्षयेक खङ्ग । एक सैन्य शस्त्र । मपु० ३६.११ रावण की मृत्यु का निमित्त होगा। लक्ष्मण ने इसे उठाया और वही कोण-एक सैन्य शस्त्र । पपु० १२.२५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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