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________________ केवलज्ञानवीक्षण-कैटभ ९८ : जैन पुराणकोश कोसिन लोकपूरण, प्रतर, कपाट तथा दण्ड अवस्था को प्राप्त स्वशरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं । हपु० २१.१७५, १८४-१९२ केवलज्ञानवीक्षण-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२१५ केवलावरण-केवलज्ञान का आवरक कर्म । इसी के क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न होता है । हपु० १०.१५४ केवलो-(१) केवलज्ञान धारी मुनि-अर्हन्तदेव । पंचमकाल में भगवान् महावीर के बाद ऐसे तीन केवली मुनि हुए हैं-इन्द्रभूति (गौतम), सुधर्माचार्य और जम्बू । ये त्रिकाल संबंधी समस्त पदार्थों के ज्ञाता और द्रष्टा होते हैं। सिद्धों के दर्शन ज्ञान और सुख को सम्पूर्ण रूप से ये ही जानते हैं। मपु० २.६१, पपु० १०५.१९७-१९९, हपु० १.५८-६० (२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११२ केशरी-(१) विजय के छः पुत्रों में पांचवां पुत्र, निष्कम्प, अकम्पन, बलि और युगन्त का अनुज तथा अलम्बुष का अग्रज । हपु० ४८.४८ (२) इन्द्र विद्याधर का एक योद्धा । पपु० १२.२१७ केशलोंच-साधु के अट्ठाईस मूलगुणों में एक मूलगुण-अपने हाथ से सिर के बालों का लोच करना । यह सर्वदा आवश्यक नहीं रहा है-वृषभदेव छः मास कार्यात्सर्ग से निश्चल खड़े रहे थे, केश राशि इतनी बढ़ गई थी कि वह हवा में उड़ने लगी थी । बाहुबलि की भी केशराशि कन्धों पर लटकने लगी थी। मपु० १.९, १८.७१-७६, ३६.१०९, १३३, पपु० ३.२८७-२८८, ४.५ इसकी अनुपालना छुरा आदि साधनों से की जा सकती थी किन्तु उनके अर्जन, संग्रह और रक्षण तथा उनकी अप्राप्ति पर उत्पन्न चिन्ता से मुक्त रहना संभव नही है ऐसा विचार कर यह क्रिया ही श्रेयस्कर मानी गयी है । पहले यह क्रिया केवल पंचमुष्टि से सम्पन्न होती थी। मपु० १७.२००-२०१, २०.९६ केशव-(१) कृष्ण का एक नाम । मपु० ७१.७६, हपु० १.१९, ४७.९४ (२) जम्बूद्वीप संबंधी पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित महावत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सुविधि और उसकी रानी मनोरमा का पुत्र । जीवन के अन्त में इसने बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह को त्याग दिया और निर्ग्रन्थ-दीक्षा धारण कर ली। मरकर यह अच्युत स्वर्ग में 'प्रतीन्द्र हुआ । मपु० १०.१२१-१२२, १४५, १७१ (३) केशव नारायण नौ हैं। इनके नाम हैं-त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक, दत्त, लक्ष्मण और कृष्ण । ये भरत देश के तीन खण्डों के स्वामी होते हैं और अजेय होते है । मपु० २.११७, हपु० ६६.२८८-२८९ केशवती-वाराणसी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा अग्निशिख की दूसरी रानी। यह तीर्थकर मल्लिनाथ के तीर्थ में हुए सातवें नारायण दत्त की जननी थी। मपु० ६६.१०२-१०७ अपरनाम केशिनी । पपु० २०.२२१-२२८ । केशवाप-गृहस्थ की वेपन गर्भान्वय क्रियाओं में बारहवीं क्रिया-किसी शुभ दिन देव और गुरु की पूजा करके शिशु का क्षौरकर्म कराना । इसमें पूजन के पश्चात् शिशु के बाल गंधोदक से गीले करके उन पर पूजा के शेष अक्षत रखे जाते हैं । इसके बाद चोटी सहित (अपने कुल को पद्धति के अनुसार) मुण्डन कराया जाता है । मुण्डन के बाद शिशु का स्नपन होता है। फिर उसका अलंकरण किया जाता है। शिशु द्वारा मुनियों अथवा साधुओं को नमन कराया जाता है । इसके पश्चात् बन्धु जन शिशु को आशीर्वाद देते हैं । इस मांगलिक कार्य में सम्बन्धी जन हर्ष पूर्वक भाग लेते हैं । मपु० ३८.५६, ९८-१०१ केशसंस्कारीधूप-कालागुरु से निर्मित धूप । इससे स्त्रियाँ अपने बालों को स्निग्ध और सुगन्धित करती थीं। मपु० ९.२१ केशाकेशि-परस्पर बाल पकड़कर लड़ना । छठे मनु सीमन्धर के समय में कल्पवृक्षों तथा खाद्य-वस्तुओं की कमी के कारण ऐसे कलह होने लगे थे। मपु० ३.११४ केशिनी-सातवें नारायण दत्त की जननी । पपु० २०.२२१-२२६ केशोत्पाटन-मुनियों के अट्ठाईस मूलगुणों में एक मूलगुण-केशलोंच । मपु० २०.९६ केसरिविक्रम-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित सुरकान्तार नगर का स्वामी एक विद्याधर । यह सातवें नारायण दत्त की जननी केशिका का बड़ा भाई था। इसने दत्त को सिंहवाहिनी तथा गरुड वाहिनी महाविद्याएँ दी थीं। मपु० ६६.११४-११६ केसरी-(१) नन्द्यावर्तपुर के राजा अतिवीर्य के अधीन अंग देश का एक नृप । पपु० ३७.१४ (२) हिमवान् आदि सात कुलाचलों में स्थित सोहल हृदों में चतुर्थ ह्रद। यह कीर्ति देवी की निवासभूमि है। इस हद से सीता और नरकान्ता नदियाँ निकलती है। मपु ६३.१९७, २००, हपु० ५. १२०-१२१, १३४ कैकय-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक उत्तरीय देश । इसे भरतेश के एक भाई ने उनकी अधीनता स्वीकार न करके छोड़ दिया था। हपु० कैकयो-कमलसंकुल नगर के राजा सुबन्धुतिलक और उसकी रानी मित्रा की गुणवती पुत्री । रूपवती होने तथा मित्रा नाम की माता से उत्पन्न होने के कारण यह सुमित्रा कहलाती थी। यह राजा दशरथ की दूसरी रानी थी। यह लक्ष्मण की जननी थी। आयु के अन्त में भरकर यह आनत स्वर्ग में देव हुई । पपु० २२.१७३-१७५, २५.२३-२६, १२३. ८०-८१ महापुराण में इसे कैकेयी कहा गया है । मपु० ६७.१४८-१५२ कैकेय-इस नाम का समुद्रतटवर्ती एक देश, महावीर की विहारभूमि । हपु० ३.५ कैकेयी-वाराणसी नगरी के राजा दशरथ की दूसरी रानी, नारायण लक्ष्मण की जननी। इसके दूसरे नाम कैकयी और सुमित्रा थे । मपु० ६७.१५०-१५२ दे० कैकयी कैटभ-अयोध्या नगरी के राजा हेमनाभ और उसकी रानी अमरावती का द्वितीय पुत्र और मधु का अनुज । ऐश्वर्य को चंचल जानकर यह मुनि हो गया था। आयु के अन्त में भरकर अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत होकर द्वारिका में कृष्ण की रानी धरावती से Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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