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________________ कुशव-कृतचित्रा ९४ : जैन पुराणकोश कुशद्य-यदुवंशी नरपति के पुत्र शूर का देश । शूर ने इस देश में शौर्य- पुर नगर बसाया था । हपु० १८.९ कुशध्वज-एक ब्राह्मण । इसकी भार्या सावित्री से उत्पन्न प्रभासकुन्द नाम का एक पुत्र हुआ जो पूर्वभव में राजा शम्भु था। पपु० १०६. १५७-१५९ कुशलमति-मिथिलेश जनक का कुशल एवं हितैषी सेनापति । मपु० ६७.१६६-१७० कुशवर-(१) सोलह द्वीपों में पन्द्रहवां द्वीप। हपु० ५.६२० (२) सोलह सागरों में पन्द्रहवाँ सागर । यह कुशवर द्वीप को घेरे हुए है । हपु० ५.६२० कुशसेन-चक्रवर्ती भरत के पूर्वभव के जीव राजकुमार पीठ के गुरु। पीठ मरकर सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर भरत हुआ । पपु० २०.१२४-१२६ कुशस्थलक-एक नगर । पपु० ५९.६ कुशाग्र-भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखण्ड का एक देश, भगवान् नेमिनाथ की विहारभूमि । हपु० ११.६५, ५९.११० कुशाग्रगिरि-महावीर की समवसरण-स्थली-विपुलाचल पर्वत का दूसरा नाम । पपु० १.४६ कुशाग्रनगर-राजा श्रेणिक का शासनाधीन नगर-राजगृह, तीर्थकर मुनिसुव्रत और छठे नारायण पुण्डरीक की जन्मभूमि । अपरनाम कुशाग्र पुर । यहाँ का स्वामी हरिवंशी सुमित्र भी था। पपु० २.२२४, २०. - ५६, २१८-२२२, ३५.५३-५४, हपु० १५.६१ कुशार्थ-एक देश । शौर्यपुर इसी देश का नगर था । मपु० ७०.९२-९३ कुशील-कषाय, विषय, आरम्भ, और जिह्वा । इन्द्रिय संबंधी छः रसों में आसक्त साधु । महामोह का त्याग नहीं होने से ऐसे साधु संसार में भ्रमण करते रहते हैं । मपु० ७६.१९३, १९६, हपु० ६०.५८ कुसन्ध्य-भरतक्षेत्र का एक देश, महावीर की विहारभूमि । हपु० ३.३ । कुसुमकोमला-कौशिक नगरी के राजा वर्ण और उसकी रानी प्रभावती __की पुत्री । हपु० ४५.६१-६२ कुसुमचित्रा-द्वारिका [द्वारावती] सभाभूमि । कृष्ण और नेमि इसमें बैठते थे। मपु० ७१.१४१, हपु० ५५.२ ।। कुसुमपुर-एक नगर । लक्ष्मण ने जाम्बूनद को यहाँ के निवासी प्रभव के परिवार का परिचय दिया था । पपु० ४८.१५८ कुसुमवती-भरतक्षेत्र की वरुण-पर्वतस्थ पाँच नदियों में एक नदी । मपु० ५९.११७-११९, हपु० २७.१२-१३ कुसमश्री-राजपुर नगर के धनी पुष्पदन्त मालाकार की स्त्री, जातिभट नामक पुत्र की जननी । मपु० ७५.५२७-५२८ कुसुमामोद-अयोध्या का समीपवर्ती एक उद्यान । पपु० ८४.१३ कुसुमायुध-लंका का एक उद्यान । यहाँ अनन्तवीर्य मुनि को केवलज्ञान उपलब्ध हुआ था । पपु० ७८.५३-६१ कुसुमावली-विद्याधर सुतार की भार्या । किरातवेष में सुतार का अर्जुन के साथ भयंकर युद्ध हुआ था जिसमें इसने अर्जुन से पति-भिक्षा मांगकर अपने पति को बचाया था । हपु० ४६.७-१३ कुसुम्भ-लाल रंग का सूती और रेशमी वस्त्र । साधारण लोग सूती कुसुम्भ धारण करते थे और धनिक लोग रेशमी। मपु० ३.१८८ कुहर-संगीत के अवरोही पद का एक अलंकार । पपु० २४.१८ कुहा-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । मपु० २९.६२ कूट-(१) भरत चक्रवर्ती के सेनापति द्वारा विजित मध्य आर्यखण्ड का एक देश । मपु० २९.८० (२) काशी निवासी संभ्रमदेव की दासी का ज्येष्ठ पुत्र, कर्पाटक का सहोदर । ये दोनों भाई मरकर जिन-मन्दिर में कार्य करने से उत्पन्न पुण्य के प्रभाव से व्यन्तर देव हुए थे । पपु० ५.१२२-१२३ कूटदोष-मिथ्यादोष । हपु० ४५.१५५ कूटनाटक-कपटपूर्ण नाटक । इन्द्र ने वृषभदेव को राज्य और भोगों से विरक्त करने के लिए ही अल्पायु नीलांजना नर्तकी के नृत्य का आयोजन किया था। मपु० १७.६-१०, ३८ कूटलेखक्रिया-सत्याणुव्रत का एक अतिचार-जो बात दूसरे ने नहीं लिखायी उसे उसके नाम पर स्वयं लिख देना । हपु० ५८.१६७ कूटस्थ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११४ कूटागार-समवसरण में दूसरे कोट के भीतर गोपुर द्वारों के आगे विद्यमान बहुशिखरी भवन । देव, गन्धर्व, विद्याधर, नागकुमार और किन्नर जाति के देवों का क्रीडाभूमि । सामन्तों और राजाओं के निवास भवन । मपु० २२.२३९, २६०-२६१ कूटाद्रि-एक पर्वत । भरतेश की सेना इसे पार करके पारियात्र की ओर बढ़ी थी । इसे कूटाचल भी कहते हैं । मपु० २९.६७ कूर्मों-राजपुर नगर के ब्राह्मण ब्रह्मरुचि की गर्भवती भार्या । मुनि का उपदेश सुनकर इसके पति ने दीक्षा धारण कर ली थी और यह भी दसवें मास में पुत्र को जन्म देने के पश्चात् उसे बन में छोड़कर आलोक नगर में इन्दुमालिनी आर्यिका के पास आर्यिका हो गयी थी। पपु० ११.११७-१५० कुल-कुलग्राम नगर का राजा। तीर्थकर बर्द्धमान को आहार देकर इतने पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। मपु० ७४.३१८-३२२, वीवच० १३.२-२३ कूवर-एक सुन्दर नगर । वनवास के समय राम, लक्ष्मण और सीता यहाँ आये थे। ये यहाँ बालखिल्य राजा की पुत्री कल्याणमाला से मिले । उसने जब सिंहोदर द्वारा अपने पिता के बन्धन की बात कही तो राम ने उसे आश्वादन दिया और बालखिल्य को बन्धन मुक्त कराया । पपु० ३३.३३२, ३४.१-५७, ९१ कुष्माण्डगणमाता-नमि और विनमि को दिति और अदिति द्वारा प्रदत्त __ एक विद्या । हपु० २२.६४ कुतकावित्रिक-कृत, कारित और अनुमोदना । मपु० ७३.१११ कृतकृत्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३० कृतक्रतु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३० कृतप्रिय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३० कृतचित्रा-रावण और उसकी रानी कनकप्रभा की पुत्री। दर्शकों को अपने रूप से आश्चर्यान्वित करने से इसका यह नाम था। मथुरा Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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