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________________ पुण्यात्रवकथाकोशम् [१-८ : तत्रैको वृषभो भद्रो जनस्तस्य ग्रासं ददाति । सोमशर्मणी गृहद्वारे उपविष्टः । सोमशर्मया स बालः तस्य शृङ्गे प्रोतो मृतः । तत्प्रभृति सर्वैर्वृषभोऽवज्ञातः । स च चिन्तया क्षीणो बभूव । एकदा जिनदत्तश्रेष्ठिभार्यायाः परपुरुषदोषो जनेन धृतः। सा आत्मशुद्धयर्थ दिव्यगृहे तप्तफालधारणार्थ स्थिता। तेन वृषभेन स फालः दन्तैराकृष्टः, शुद्धोऽभूदिति । निर्दोषस्य जनेन किमवज्ञातुमुचितम् । जिनदत्तोऽवदत् 'न"।६। श्रेष्ठी कथयति-पद्मरथनगराधिपवसुपालेन अयोध्याधिपजितशत्रोनिकट कश्चिद्विप्रो राजकार्यार्थ प्रेषितः । स महाटव्यां तृषितो मूच्छितो वृक्षतले पतितः। तस्य वानरेण जलं दर्शितम् । स च जलमपिबत्। तदने जलं स्यान्न स्यादिति विचिन्त्य तं मर्कट मारितवान् । तच्चमणः खल्लिका जलेनापूर्यानैषीदिति । किं तस्य तन्मारणमुचितम् । मुनिरवदत् 'न'।७। तिः कथयति-कौशाम्ब्यां द्विजः सोमशर्मा भार्या कपिला अपुत्रा। द्विजेन वने नकलपिल्लको" दृष्टः, प्रानीय कपिलायाः समर्पितः । तया च शिक्षितो भणितं करोति । कतिपयदिनैः तस्याः पुत्र आसीत्तं हिन्दोलके शयानं तस्य समर्प्य बहिस् खिलाया करते थे। वह एक दिन सोमशर्माके घरके द्वारपर बैठा था। सोमशर्मा ( सोमिल्लाकी सौत ) ने ईर्ष्यावश उस पुत्रको इस बैलके सींगमें पो दिया। इससे वह मर गया। तबसे समस्त जन उस बैलका तिरस्कार करने लगे। वह चिन्तासे कृश हो गया । एक समय जिनदत्त सेठकी पत्नीके विषयमें लोगोंने पर-पुरुषसे सम्बन्ध रखनेका दोषारोपण किया। तब वह आत्मशुद्धिके निमित्त तपे हुए फाल ( हलके नीचे स्थित पैना लोहा ) को धारण करनेके लिए दिव्य गृहमें स्थित हुई । उस तपे हुए फालको उक्त बैलने दाँतोंसे खींच लिया। इस प्रकारसे उसने आत्मशुद्धि प्रगट कर दी। इस तरह जो बैल सर्वथा निर्दोष था उसका जनोंके द्वारा तिरस्कार करना क्या उचित था ? जिनदत्तने कहा कि उन्हें वैसा करना उचित नहीं था ॥६॥ सेठ बोला-पद्मरथ नगरमें वसुपाल नामका राजा था। उसने राजकार्यके लिए किसी ब्राह्मणको अयोध्याके राजा जितशत्रुके पास भेजा। वह किसी महावन में जाकर प्याससे व्याकुल होता हुआ मूच्छित होकर एक वृक्षके नीचे पड़ गया । वहाँ उसे एक बन्दरने जलको दिखलाया । तब उसने जलको पी लिया । फिर उसने विचार किया कि क्या जाने आगे जल मिलेगा अथवा नहीं। बस, इसी विचारसे उसने उस बन्दरको मारकर उसके चमड़ेकी मशक बना ली और उसे जलसे भरकर साथमें ले गया। उक्त ब्राह्मणको क्या उस बन्दरका मारना उचित था ? मुनिने उत्तरमें कहा कि नहीं ॥७॥ ___ मुनि बोले- कौशाम्बी पुरीमें एक सोमशर्मा नामका ब्राह्मण रहता था । उसके कपिला नामकी स्त्री थी जो पुत्रसे रहित थी। किसी दिन ब्राह्मणको वनमें एक नेवलेका बच्चा दिखा । उसने उसको लाकर कपिलाको दे दिया । उसने उसको शिक्षित किया। वह उसके संकेतके अनुसार कार्य किया करता था। कुछ दिनोंके बाद कपिलाके पुत्र उत्पन्न हुआ । एक दिन कपिलाने पुत्रको पालने में सुलाकर नेवलेके संरक्षणमें किया और स्वयं वह बाहर जाकर चावलोंको कूटने १. फ जनास्तस्य। २. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श भार्यायाः पुरुष । ३. स्थितास्तेन । ४. प फ ब स्थिता। स फालस्तेन दंत । ५. फ जिनदत्ताऽवदत् ॥६॥ ब जिनदत्तोवदत् ॥६॥ ६. प फ ब अहं कथयामि । ७. ब-प्रतिपाठोऽयम् । पश स्यादिति विधि वियिन्त्य, फ स्यादिति चिन्त्य । ८. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श खल्लिकायां । ९. फनेषादिति । १०. फ अपुत्रद्विजेन । ११. फ नकूलापिल्लको। १२. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श शयनं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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