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________________ ३२ पुण्यास्रवकथाकोशम् सर्वमान्यमिति राजपुरुषाणां जलमपि पातुं न दीयते यात' युवामिति । ततो जठराग्नेर्भगवतो मठं गतौ । तेन भोजनं कारितौ । श्रेणिकः स्वधर्म ग्राहितः । ततो द्वितीयदिने मार्गे गच्छता श्रेणिकेनोक्तम्-हे माम, जिह्वारथं चटित्वा याव इति । इतरो पहिलोऽयमिति मत्वा न किमपि वदति । ततोऽग्रे जलं विलोक्य प्राणहिते परिहितवान् , वृक्षतले छत्रं धृतवान् , भृतं ग्राममवेक्ष्य मामायं ग्रामो भृत उद्वस इति पृष्टवान् , कमपि पुरुषं स्वस्त्रीमाताडयन्तं विलोक्य बद्धा मुक्तां चेमामयं ताडयतीति पृष्टवान् , कमपि नरं मृतं वीक्ष्यायं मृत इदानीं पूर्व वेति पृष्टवान् , पकं शालिक्षेत्रं दृष्ट्वास्य फलमस्य स्वामी भुक्तवान् भोक्ष्यतीति पृष्टवान् , क्षेत्रे हलं क्षेटयन्तं नरं विलोक्य हलस्य कियन्ति डालानीति पृष्टवान् , बदरीवृक्षमवेक्ष्यास्य कियन्तः कण्टका इति पृष्टवान् । तथा चोक्तम् जिह्वारथं प्राणहितातपत्रकुंग्रामनार्यों मृतकं च शालीन् । डालं च कोलद्रुमकण्टकाश्च पृष्टः कुमारेण पथीन्द्रदत्तः ॥१॥ इति । एतेषु प्रश्नेषु इन्द्रदत्तो वेणातडागं नाम स्वपुरं प्राप्तवान् । बहिस्तडागतटे वृक्षतले तं धृत्वा स्वं गृहं गतः । स्वतनुजया नन्दश्रिया प्रणम्य पृष्टः-हे तात, किमेकाकी आगतोऽसि केनचित्सार्धं वा । तेनोक्तं-मया स हैकोऽतिरूपवान् युवा च अहिलः समायातः । कीदृशं पानी भी नहीं दिया जाता है, अतएव तुम दोनों यहाँ से चले जाओ। तत्पश्चात् वे भगवान् जठराग्नि (बुद्धगुरु ) के मठमें गये। उसने उन्हें भोजन कराया और फिर श्रेणिकको अपना धर्म ग्रहण कराया । तत्पश्चात् दूसरे दिन आगे जाते हुए श्रेणिकने कहा कि हे मामा ! हम दोनों जिह्वा-रथपर चढ़कर चलें । इसपर इन्द्रदत्तने उसे पागल समझकर कुछ नहीं कहा । इसके आगे जानेपर श्रेणिकने जलको देखकर जूतोंको पहिन लिया, वृक्षके नीचे पहुँचकर छत्रीको धारणकर लिया, परिपूर्ण ग्रामको देखकर उसने पूछा कि हे मामा ! यह ग्राम परिपूर्ण है अथवा उजड़ा हुआ है, किसी पुरुषको अपनी स्त्रीको ताड़ित करते हुए देखकर उसने यह पूछा कि वह बँधी हुई स्त्रीको ताड़ित कर रहा है या छूटी हुई को, किसी मरे हुए मनुष्यको देखकर उसने पूछा कि वह अभी मरा है या पूर्वमें मरा है, पके हुए धानके खेतको देखकर उसने पूछा कि इस खेतके स्वामीने इसके फलको खा लिया है या उसे भविष्यमें खावेगा, खेतमें हलको चलाते हुए मनुष्यको देखकर उसने पूछा कि हलके कितने डाल हैं, तथा बेरीके वृक्ष को देखकर उसने पूछा कि इसके कितने काँटे हैं। वैसा ही कहा भी है ___ जिह्वारथ, जूता, छत्री, कुग्राम, स्त्री, मृत मनुष्य, धान, हलका फाल और बेरी वृक्ष के काँटे; इनके सम्बन्धमें श्रेणिक कुमारने मार्गमें इन्द्रदत्तसे प्रश्न किये ॥१॥ इन प्रश्नोंके चलते हुए इन्द्रदत्त वेणातडाग नामक अपने गाँवमें पहुँच गया। वह उसे गाँवके बाहिर तालाबके किनारे वृक्षके नीचे बैठाकर अपने घर चला गया। वहाँ अपनी पुत्री नन्दश्रीने प्रणाम करके उससे पूछा कि हे तात ! क्या आप अकेले आये हैं अथवा किसीके साथमें । उत्तरमें उसने कहा कि मेरे साथ एक अतिशय सुन्दर पागल युवक आया है। जब पुत्रीने उससे १. प श यावां श यावो । २. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श दिनमग्रे गच्छता । ३. श ताडयंतीति । ४.फ पूर्व मृत इदानीं चेति । ५. ब स्वामीदं भुक्तवान् । ६. ब खेटयंतं । ७. ब -प्रतिपाठोऽयम् । श पत्रं । ८. ब -प्रतिपाठोऽयम् । शथिलः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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