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________________ : १-६ ] १. पूजाफलम् ६ २५ ऽन्वेषणार्थं मुक्तस्तेन च करकण्डुरभिषिच्य स्वशिरसि व्यवस्थापितः । ततः परिजनेन राजा कृतो बालदेवस्य विद्यासिद्धिरभूत् । स तं नत्वा तस्य तन्मातरं समर्प्य विजयार्धं गतः । करकण्डुः प्रतिकूलानुन्मूल्य राज्यं कुर्वन् स्थितः । तत्प्रतापं श्रुत्वा दन्तिवाहनेन तदन्तिकं दूतः प्रेषितः । स गत्वा तं विज्ञप्तवान् - त्वया मत्स्वामिनो दन्तिवाहनस्य भृतिभावेन राज्यं कर्तव्यमिति । कुपित्वा करकण्डुनोक्तम् - रणे यद्भवति तद् भवतु, याहीति विसर्जितः । स स्वयं प्रयाणं दत्त्वा चम्पावाहये स्थितः । दन्तिवाहनोऽप्यतिकौतुकेन सर्वबलान्वितो निर्गतः । उभयबले संनद्धे व्यूहप्रतिव्यूहक्रमेण स्थिते तदवसरे पद्मावती गत्वा स्वभर्तुः स्वरूपं निरूपितवती । ततो जादुत्तीर्य संमुखमागतः पिता, पुत्रोऽपि । उभयोर्दर्शनं नमस्काराशीर्वाददानं च जातम् । मातापितृभ्यां जगदाश्चर्यविभूत्या [सः ] पुरं प्रविष्टः । पित्राष्टसहस्रकन्याभिर्विवाहं स्थापितः । तस्मै राज्यं समर्प्य पद्मावत्या भोगाननुभवन् स्थितो दन्तिवाहनः । राज्यं कुर्वतस्तस्य मन्त्रिभिरुक्तम् - हे देव, त्वया चेरमपाण्डयचोलाः साधनीया इति । ततस्तेषां उपरि गच्छन् तेरपुरे स्थित्वा तदन्तिकं दूतं प्रेषितवान् । तेन गत्वागतेन तदौडत्ये विज्ञप्ते' रोषात्तत्र गत्वा युद्धावनौ स्थितः । तेऽपि मिलित्वागत्य महायुद्धं चक्रुर्दिनावसाने * परिवारने राजाके अन्वेषणार्थं विधिपूर्वक हाथीको छोड़ा। उसने करकण्डुका अभिषेक करके उसे अपने सिरपर स्थापित किया । तब परिवारने उसे राजा बनाया । उस समय बालदेवकी वे नष्ट विद्याएँ सिद्ध हो गई । अब बालदेवने उसको नमस्कार करके उसकी माताको समर्पित कर दिया और वह विजयार्धपर चला गया। करकण्डु शत्रुओं को नष्ट करके निष्कण्टक राज्य करने लगा। उसके प्रताप को सुनकर दन्तिवाहनने उसके पास अपने दूतको भेजा। उसने जाकर करकण्डुसे निवेदन किया कि आप हमारे स्वामी दन्तिवाहनके सेवक होकर राज्य करें। इसे सुनकर करकण्डुने क्रोधित होकर दूतसे कहा कि जाओ, युद्ध में जो कुछ होना होगा सो होगा; ऐसा कहकर उसने उस दूतको वापिस कर दिया । साथ ही वह स्वयं प्रस्थान करके चम्पापुरके बाहर पड़ाव डालकर ठहर गया। इधर दन्तिवाहन राजा भी अतिशय कौतूहलके साथ समस्त सेनासे सुसज्जित होकर नगरके बाहर निकल पड़ा। दोनों ओर की सेनाएँ तैयार होकर व्यूह और प्रतिव्यूह के क्रमसे स्थित हो गई । इसी समय पद्मावतीने जाकर अपने पतिसे वस्तुस्थितिका निरूपण किया । तब पिता ( दन्तिवाहन ) हाथीसे नीचे उतरकर पुत्र ( करकण्डु ) के सामने आया और उधर पुत्र भी पिता के सामने आया । दोनोंमें एक दूसरे को देखकर पुत्रने पिताको प्रणाम किया और पिताने उसको आशीर्वाद दिया । फिर करकण्डु विश्वको आश्चर्यचकित करनेवाली विभूतिसे संयुक्त होकर माता-पिता के साथ पुरमें प्रविष्ट हुआ । पश्चात् पिताने उसका आठ हज़ार कन्याओं के साथ विवाह कराया । फिर दन्तिवाहन उसे राज्य देकर पद्मावती के साथ भोगोंका अनुभव करने लगा । इधर करकण्डु जब राज्य करने लगा तब मन्त्रियोंने उससे कहा कि हे देव ! आपको चेरम, पाण्ड्य और चोल देशों को अपने अधीन करना चाहिए । तब वह उनके ऊपर आक्रमण करनेके विचारसे गया और तेरपुरमें ठहर गया । वहाँसे उसने उपर्युक्त राजाओं के पास दूतको भेजा । उस दूतने जाकर वापिस आनेपर जब उक्त राजाओं की उद्धतताका निरूपण किया तब करकण्डुको बहुत क्रोध आया । इसीलिए वह वहाँ जाकर युद्धभूमिमें स्थित हो गया । वे राजा भी मिल करके १. प श बाह्ये मुत्का स्थितः ब बाह्ये मुक्ता स्थितः । २. फ उभयोर्दर्शननम । ३. प श गत्वा दूतेन गतेन । ४. फ विज्ञप्तैः । ५ प चक्रतुः दि श चक्रतुर्दि । 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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