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________________ २१ १. पूजाफलम् ६ अत्रापरं वृत्तान्तम् । तथाहि- श्रावस्तिपुर्या श्रेष्ठी सागरदत्तो भार्या नागदत्ता । द्विजसोमशर्मणोऽनुरक्तां तां ज्ञात्वा श्रेष्ठी दीक्षितो दिवं गतः। तस्मादागत्याङ्गदेशे चम्पायां राजा वसुपालो देवी वसुमती, तयोः पुत्रो दन्तिवाहननामा जातः । एवं स वसुपालो यावत्सुखेनास्ते तावत्कलिङ्गदेशे दन्तिपुरे' राजा बलवाहनस्तेन यः सोमशर्मा जारो मृत्वा भ्रान्त्वा तत्र कलिङ्गदेशे दन्तिपुराटव्यां नर्मदातिलकनामा हस्ती जातः स बलवाहनेन धृत्वा वसुपालाय प्रेषितः । स तत्र तिष्ठति । सा नागदत्ता मृत्वा भ्रमित्वा च ताम्रलिप्तनगर्या वणिग् वसुदत्तस्य भार्या नागदत्ता जाता।सा द्वे सुते लेभे धनवती धनश्रियं च। धनवती नागालन्दपुर वैश्यधनदत्तधनमित्रयोः पुत्रेण धनपालेन परिणीता। धनश्रीवत्सदेशे कौशाम्बीपुरे वसुपालवसुमत्योः पुत्रेण श्रेष्ठिना वसुमित्रेण परिणीता, तत्संसर्गेण जैनी बभूव । नागदत्ता पुत्रीमोहेन धनश्री. पं गता। तया मनिसमीपं नीता. अणतानि ग्राहिता। ततो बहत्पत्रीसमीपं गता। तया बौद्धभक्ता कृता । लघ्व्या वारत्रयमणुवतानि ग्राहिता। धनवत्या नाशितानि । चतुर्थवारे दृढा बभूव । कालान्तर मृत्वा तत्कौशाम्बीशवसुपालवसुमत्योः पुत्री जाता। कुदिने जातेति मञ्जूषायां स्वनामाङ्कितमुद्रिकादिभिर्निक्षिप्य यमुनायां प्रवाहितां गङ्गां मिलित्वा पनद्रहे हैं। इसे सुनकर ग्वालाने जिन भगवान्के आगे स्थित होकर 'हे सर्वोत्कृष्ट ! इस कमलको ग्रहण कीजिए' ऐसा निवेदन करते हुए उसे जिन भगवान्के ऊपर रख दिया और वहाँ से वापिस चला गया। यहाँ दूसरा एक वृत्तान्त घटित हुआ । वह इस प्रकार है- श्रावस्तीपुरीमें एक सागरदत्त नामक सेठ था। इसकी पत्नीका नाम नागदत्ता था। वह सोमशर्मा नामक ब्राह्मणसे अनुराग रखती थी। इस बातको ज्ञात करके सेठने जिनदीक्षा ले ली। वह मरकर स्वर्गमें देव हुआ। वहाँ से आकर वह चम्पापुरीमें राजा वसुपालके वसुमती रानीसे दन्तिवाहन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। इस प्रकारसे वह वसुपाल राजा जब तक सुखपूर्वक स्थित है तब तक कलिंग देशके भीतर स्थित दन्तिपुरके राजा बलवाहनने नर्मदातिलक नामक जिस हाथीको पकड़कर उपर्युक्त वसुपाल राजाके लिए भेंट किया था वह नागदत्ताका जार ( उपपति) सोमशर्मा ब्राह्मण था जो मर करके परिभ्रमण करता हुआ उस कलिंग देशके अन्तर्गत दन्तिपुरके गहन वनमें इस हाथीकी पर्यायमें उत्पन्न हुआ था। वह हाथी वसपाल राजाके यहाँ स्थित था। वह नागदत्ता मर करके संसारमें परिभ्रमण करती . हुई ताम्रलिप्त न ध्य वसुदत्तकी पत्नी नागदत्ता हुई। उसके धनवती और धनश्री नामकी दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। । वनवतीका विवाह नागालन्दपुरवासी वैश्य धनदत्त और उसकी पत्नी धनमित्राके पुत्र धनपालके साथ सम्पन्न हुआ तथा दूसरी धनश्रीका विवाह वत्स देशके अन्तर्गत कौशाम्बीपुरके निवासी वसुपाल और वसुमतीके पुत्र सेठ वसुमित्रके साथ सम्पन्न हुआ था । उसके संसर्गसे वह ( धनश्री ) जैन धर्मका पालन करनेवाली हो गई । नागदत्ता पुत्रीके मोहसे धनश्रीके पास गई। धनश्री उसे मुनिके समीप ले गई। वहाँ उसने उसको अणुव्रत ग्रहण करा दिये । तत्पश्चात् वह बड़ी पुत्रीके पास गई । उसने ( बड़ी पुत्रीने ) उसे बौद्धभक्त बना दिया। छोटी पुत्रीने उसे तीन बार अणुव्रत ग्रहण कराये, परन्तु धनवतीने उन्हें नष्ट करा दिया। चौथी बार वह अणुव्रतोंमें दृढ़ होती हुई कालान्तरमें मरणको प्राप्त होकर कौशाम्बी नगरीके स्वामी वसुपाल और रानी वसुमती १ ब दन्तपुरे । २. ५ श बलवाहनः अपुत्रीकस्तेन । ३. फ मारयित्वा । ब अतोऽग्रेऽग्रिम 'मृत्वा' पदपर्यन्तः पाठः स्खलितोऽस्ति । ४. प बलवाहने, श बलवाहनो। ५. शवणिज । ६.श धनवति । ७. फ नागनंदपुर । ८. ५ श धनश्री वत्स० । ९. फ गृहीतानि । १०. प श लध्वी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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