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________________ :१-४] १. पूजाफलम् ४ गुहयते । तयोक्तम्-- गृहाण, मनुजानां प्रकाशयेति । तदनु पञ्चदिनानि पद्मावत्या' तथा चकार । गतेषु देवेषु पद्मावत्यानीय मृणालपुरे धृता सा । पुण्यप्रभावतः प्राणिनां किं किं न संपद्यते । ततः सा विप्रपुत्री भूतिलकजिनालयं प्रविष्टा देवमभिवन्द्य त्रिभुवनस्वयंभुवमृषि च तत्समीपे दीक्षां ययाचे। तेनोक्तम्--भद्रं कृतम्, त्रिदिनान्येव तवायुरिति । ततो दीक्षां विभृत्य पुष्पाञ्जलिविधि प्रकाशयन्ती स्थिता। इतो जनकेन सा क्व कथं तिष्ठतीत्यवलोकिनी प्रेषिता । तया स्वरूपे निरूपिते आत्मसमाना कर्तुं उपसर्गादिना तपोविनाशार्थ विद्याः प्रेषिता नयेन तपोविनाशं कर्तुमशक्ता उपसर्ग कर्तुं लग्नाः। तथाप्यचलचित्ता धर्मध्यानेन स्थिता । व्रतप्रभावेन धरणेन्द्रः पद्मावतीसमेतः समायातः। तमवलोक्य नष्टा विद्याः। समाधिना तनुं तत्याज, अच्युतकल्पे पद्मावर्तविमाने पद्मनाभनामा महर्द्धिको देवोऽजनि । स्वपितुः संबोधनार्थ जगदाश्चर्यविभूत्यागत्य पितरं संबोध्य स्वगुरोरन्ते दीक्षां ग्राहितवान् स्वगुरुं च पूजयित्वा स्वर्गलोकं च गत्वा विभूत्या स्थितः। श्रुतकीर्तिरपि समाधिना तत्रैव स्वर्गे प्रभासविमाने प्रभासनामा देवोऽभूत् । तत्र पद्मनाभस्य पट्टमहादेवीषु बहीषु गतासु काचित् पद्मिनीदेवी जाता। तस्मादागत्य पद्मनाभदेवस्त्वं जातोऽसि । प्रभासो मेघवाहनो यक्षीने कहा कि ग्रहण कर और मनुष्यों के मध्यमें उसे प्रकाशित कर। तत्पश्चात् पद्मावती के साथ उसने पाँच दिन तक वैसा ही किया । पश्चात् देवोंके चले जानेपर पद्मावतीने लाकर उसे (प्रभावतीको ) मृणालपुरमें पहुँचा दिया। ठीक है, पुण्यके प्रभावसे प्राणियोंको कौन कौन-सी सम्पत्ति नहीं प्राप्त होती है ? सब ही अभीष्ट सम्पत्ति प्राप्त होती है । पश्चात् वह ब्राह्मणकन्या भूतिलक जिनालयके भीतर गई। वहाँ उसने जिनेन्द्रदेव तथा त्रिभुवन स्वयम्भू ऋषिकी वन्दना करके उनके समीप दीक्षाकी प्रार्थना की । ऋषिने कहा- तूने बहुत अच्छा किया, अब तेरी तीन दिनकी ही आयु शेष है । तब वह दीक्षाको धारण करके पुष्पांजलिकी विधिको प्रकट करती हुई स्थित रही। इधर पिताने वह कहाँ और किस प्रकार है, यह ज्ञात करनेके लिए अवलोकिनी विद्याको भेजा । उस अवलोकिनी विद्यासे उसके वृत्तान्तको जानकर पुरोहितने उसे अपने समान करनेके लिए उपसर्ग आदिके द्वारा तपसे भ्रष्ट करनेके विचारसे विद्याओंको भेजा। किन्तु जब वे विद्यायें उसे नीतिपूर्वक भ्रष्ट न कर सकी तब उन सबने उसके ऊपर उपसर्ग करना प्रारम्भ कर दिया । फिर भी प्रभावती स्थिरचित्त रहकर धर्मध्यानसे स्थित रही। तब व्रतके प्रभानसे पद्मावतीके साथ वहाँ धरणेन्द्र आया । उसको देखकर विद्याएँ भाग गई। प्रभावती समाधिपूर्वक शरीरको छोड़कर अच्युत स्वर्गमें पद्मावत विमानके भीतर पद्मनाभ नामक महर्द्धिक देव हुई। तब वह ( पद्मावतीका जीव ) अपने पिताको सम्बोधित करनेके लिए संसारको आश्चर्यचकित करनेवाली विभूतिके साथ वहाँ आया। उसने पिताको सम्बोधित करके उसे अपने गुरुके पासमें दीक्षा ग्रहण करा दी। पश्चात् वह अपने गुरुकी पूजा करके स्वर्गलोक वापिस चला गया और वहाँ विभूतिके साथ रहने लगा । श्रुतकीर्ति भी समाधिके प्रभावसे उसी सोलहवें स्वर्गमें प्रभास विमानके भीतर प्रभास नामक देव हुआ। वहाँ पद्मनाम देवकी बहुत-सी अग्र देवियोंके मरणको प्राप्त हो जानेपर कोई पद्मिनी नामकी देवी उत्पन्न हुई। उक्त स्वर्गसे आकर पद्मनाभ देव तुम उत्पन्न हुए हो, प्रभास १. फ पद्मावत्यां। २. फ प्रकाशयती। ३. फ लोकिनीविद्यां प्रेषिता, शलोकनी प्रेषिता । ४. पश आत्मसमानं । ५. श पद्मनी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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