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________________ पुण्यात्रवकथाकोशम् [ ६-११, ५२ : मृत्वोत्तमभोगभूमावुत्पन्नः, इति रागी सम्यक्त्वहीनो ऽपि मुनिदान फलेनोत्तमभोगभूमिजोऽभूत् सद्दष्टिः किं न स्यादिति ॥१०॥ ३१० [ ५२] देवी विष्णोः सुसीमा कथमपि भुवने रुद्रस्य तनुजा जाता यक्षादिदेवी वरगुणमुनये भक्तिप्रगुणतः । aar' दानात् सुभोगान कुरुषु दिवि भुवि प्रभुज्य विदितांस्तस्माद्दानं हि देयं विमलगुणगणैर्भव्यैः सुमुनये ॥११॥ अस्य कथा - अत्रैवार्यखण्डे सुराष्ट्रदेशे द्वारावतीनगर्या राजानौ पद्म कृष्णौ बलनारायणौ । तत्र कृष्णस्याष्टौ पट्टमहादेव्यः । ताश्च का इत्युक्ते सत्य आमा रुक्मिणी जाम्बवती लक्ष्मणा सुसीमा गौरी पद्मावती गान्धारी च । तौ नृपावूर्जयन्तगिरिस्थं श्री नेमिजिनं वन्दितुमातुस्तं समभ्यर्च्य वन्दित्वा स्वकोष्ठे उपविष्टौ धर्ममाकर्णयन्तौ तस्थतुः । तदा यथावसरे सुसीमादेवी वरदत्तगणधरं नत्वा स्वातीत भाविभवांश्च पृष्टवती । स श्राह - - धातकीखण्डे पूर्वमन्दरपूर्वविदेहमङ्गलावतीविषयरत्नसंचयपुरेशो विश्वसेनो देवी अनुंधरी, अमात्यः सुमतिः । राजा अयोध्याधिपपद्मसेनेन युधि निहतः । सुमतिना अनुंधरी प्रतिबोध्य व्रतं ग्राहिता मृत्यु हो गई । तब वह उपर्युक्त मुनिदान के प्रभावसे उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न हुआ । इस प्रकार विषयानुरागी च सम्यक्त्व से रहित होकर भी वह प्रभामण्डल मुनिदानके फलसे जब उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न हुआ तब भला सम्यग्दृष्टि जीव उस दानके फलसे कौन-सी विभूतिको प्राप्त नहीं होगा ? वह तो मोक्षसुखको भी प्राप्त कर सकता है ॥ १० ॥ लोकमें क्रूर यक्षिलग्रामकूटकी लड़की यक्षदेवी किसी प्रकार उत्तम गुणोंसे संयुक्त मुनिके लिये अतिशय भक्तिपूर्वक आहारदान देकर उस दान के प्रभावसे कुरुओं (उत्तम भोगभूमि) में, स्वर्गमें और पृथिवीपर उत्तम भोगोंको भोगकर कृष्णकी सुसीमा नामकी पट्टरानी हुई; यह सबको विदित है । इसीलिये उत्तम गुणोंसे युक्त भव्य जीवोंको उत्तम मुनिके लिये दान देना चाहिये ॥११॥ इसकी कथा इस प्रकार है - इसी आर्यखण्डके भीतर सुराष्ट्र देशके अन्तर्गत द्वारावती नगरी में पद्म और कृष्ण नामके क्रमशः बलदेव और नारायण राजा राज्य करते थे । उनमें कृष्ण के सत्यभामा, रुक्मिणी, जाम्बवती, लक्ष्मणा, सुसीमा, गौरी, पद्मावती और गान्धारी नामकी आठ पट्टरानियाँ थीं । वे दोनों राजा ऊर्जयन्त पर्वतके ऊपर विराजमान श्री नेमि जिनेन्द्र की वन्दना के लिये गये । वहाँपर उनकी पूजा और वन्दना करनेके पश्चात् वे दोनों अपने कोठे में बैठकर धर्मश्रवण करने लगे । उस समय अवसर पाकर सुसीमा रानीने वरदत्त गणधर को नमस्कार करते हुए उनसे अपने पूर्व व भावी भवों को पूछा । गणधर बोले- धातकीखण्ड द्वीप के भीतर पूर्वमेरु सम्बन्धी पूर्वविदेहमें मंगलावती नामका देश है । उसके अन्तर्गत रत्नसंचयपुर में विश्वसेन नामका राजा राज्य करता था । रानीका नाम अनुन्धरी और मन्त्रीका नाम सुमति था । विश्वसेन राजा युद्धमें अयोध्या के राजा पद्मसेनके द्वारा मारा गया । तच मन्त्री सुमतिने अनुन्धरीको सम्बोधित १. जप दत्ता श दाता । २. पफश विदितां तस्मा । ३. फ द्वारवती । ४. फ विदेहे । ५. फ विषये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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