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________________ : ६-९, ५० ] ६. दानफलम् ९ पत्ये वसुदेव सुदेवौ जातो, पात्रदानेन भोगभूमो संपन्नी, तस्मादीशानं गतौ, तत आगत्य लवाङ्कशौ जाती, इति सकृदपि सत्पात्रदानेन वसुदेव-सुदेवौ द्विजाबेवंविधौ चरमदेहिनौ जाते सदृष्टि-सच्छोलस्तथाविधः किं न स्यादिति ॥८॥ आसीद्यो धारणाख्यः क्षितिभृदनुपमश्चन्द्राख्यनगरे दत्त्वा दानं मुनिभ्यस्तदमलफलतो देवादिकुरुषु । भुक्त्वानूनं च सौख्यं नृ-सुरगतिभवं जातो दशरथ स्तस्मादानं हि देयं विमलगुणगणैर्भव्यैः सुमुनये ॥६॥ अस्य कथा- अत्रैवायोध्यायां राजा दशरथः। स चैकदा महेन्द्रोद्यानमागतं सर्वभूतहितशरण्यं मुनिं समभ्ययं नत्वोपविश्य स्वातीतभवान् पृच्छति स्म । मुनिराह- अत्रैवार्यखण्डे कुरुजाङ्गलदेशे हस्तिनापुरे राजा उपास्तिः मुनिदाननिषेधात्तिर्यग्गतो असंख्यातभवान् परिभ्रम्य चन्द्रपुरेशचन्द्रधारिण्योः पुत्रो धारणो जातो मुनिदानाद्धातकीखण्डपूर्वमन्दरदेवकुरुत्पन्नः, ततः स्वर्गे, ततो जम्बूद्वीपपूर्वविदेहपुष्कलावत्यां पुण्डरीकिण्यधीशाभयघोष-वसुंधर्योः पुत्रो नन्दिवर्धनो जातः, तपसा ब्रह्मे समुत्पन्नस्तत आगत्य जम्बूद्वीपापरऔर सुदेव नामके पुत्र हुए। तत्पश्चात् मृत्युको प्राप्त होकर वे पात्रदानके प्रभावसे भोगभूमि को प्राप्त हुए । वहाँ से फिर ईशान स्वर्गमें गये और फिर उससे च्युत होकर लव एवं अंकुश हुए। इस प्रकार एक बार सत्पात्र दानके प्रभावसे वे वसुदेव और सुदेव ब्राह्मण जब इस प्रकारके चरमशरीरी हुए हैं तब भला सुशील सम्यग्दृष्टि जीव क्या उक्त सत्पात्रदानके प्रभावसे वैसा नहीं होगा ? अवश्य होगा ॥ ८ ॥ चन्द्र नामके नगरमें जो धारण नामका अनुपम राजा था वह मुनियों के लिए दान देकर उससे उत्पन्न हुए निर्मल पुण्यके प्रभावसे देवकुरुमें उत्पन्न हुआ और तत्पश्चात् मनुष्यगति और देवगतिके महान् सुखको भोगकर दशरथ राजा हुआ है। इसलिए निर्मल गुणों के समूहसे युक्त भव्य जीवोंको निरन्तर मुनिके लिये दान देना चाहिये ॥९॥ इसकी कथा इस प्रकार है- यहींपर अयोध्या नगरीमें दशरथ नामका राजा राज्य करता था। एक समय उसने महेन्द्र उद्यानमें आये हुए सर्वभूत-हितशरण्य मुनिकी पूजा की और तत्पश्चात् नमस्कारपूर्वक बैठते हुए उसने उनसे अपने पूर्वभवोंको पूछा । मुनि बोले- इसी आर्यखण्डमें कुरुजांगल देशके अन्तर्गत हस्तिनापुरमें उपास्ति नामका राजा राज्य करता था। वह मुनिदानका निषेध करनेके कारण तिर्यंचगतिमें गया और वहाँ असंख्यात भवोंमें घूमा । पश्चात् वहाँसे निकलकर वह चन्द्रपुरके राजा चन्द्र और रानी धारिणीके धारण नामका पुत्र हुआ। फिर वह मुनिके लिये दान देनेसे घातकीखण्ड द्वीपके भीतर पूर्व मेरु सम्बन्धी देवकुरु ( उत्तम भोगभूमि)में उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् वहाँ से वह स्वर्ग में गया और फिर वहाँसे भी च्युत होकर जम्बूद्वीपके भीतर पूर्व विदेहके अन्तर्गत पुष्कलावती देशमें स्थित पुण्डरीकिणी पुरके राजा अभयघोष और वसुन्धरीके नन्दिवर्धन नामका पुत्र हुआ। इस पर्यायमें उसने दीक्षा लेकर तपश्चरण किया और उसके प्रभावसे ब्रह्म स्वर्गमें जाकर देव हुआ । पश्चात् वहाँ से च्युत होकर वह जम्बूद्वीपके १. ब संददृष्टिस्तछोल । २. श पुरेशधारिण्योः चन्द्रपुत्रो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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