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________________ ६. दानफलम् २ २४९ नीतं पटं विलोक्य जातिस्मरो भूत्वा पण्डितायाः पूर्वभववृत्तान्तं प्रतिपादयिष्यति । पण्डितापीमां शुद्धिं गृहीत्वागमिष्यतीति । त्वं कन्यामाटं गच्छात्मानं भूषयेति प्रतिपाद्य कन्या विसर्जिता । द्वितीयदिने वासवदुर्दन्ता[र्दान्ता] ख्यौ खेचरौ तं जिनगेहमागतो। विचित्रचित्रपटमालोक्य वासवो जनविस्मयोत्पादनार्थ मायया मूछितोऽभूत् । जनेन किमित्युक्ते उन्मूछितः सन् स्वमूर्छाकारणमाह-अच्युतेऽहं देवोऽभवमियं मम देवी, तस्मादागत्य क्वोत्पन्नेति न जाने, एतदर्शनेन पूर्वभवं स्मृत्वा मूर्छितोऽभवम् । पण्डिताच्युतस्वर्गनामग्रहणे उपहास्यं कृत्वा 'याहि, ते वल्लभयं न भवत्यन्यामवलोकयस्व' इति । तावद्वज्रबाहुरागत्य बहिः शिबिरं विमुच्य स्थितः। वज्रजङ्घस्तं जिनालयं द्रष्टुमियाय । तं पटं ददर्श, मूर्छितो जातिस्मरो बभूव । पण्डिताया हृदि स्थितमबबीत् । सापि तत्स्वरूपं तस्य निवेद्यागत्य श्रीमत्याः कुमारवृत्तान्तमकथयत् । वज्रदन्तचक्री संमुखं गत्वा वज्रबाहुं महाविभूत्या पुरं प्रवेशितवान् । प्राघूर्णकक्रियानन्तरं वजजङ्घश्रीमत्योर्विवाहं चकार । वनजङ्घानुजामनुंधरी श्रीमत्यग्रजायामिततेजसे ययाचे चक्रो । वजूबाहुस्तयोविवाहं कृतवान् इति । परस्परस्नेहेन कियन्ति दिनानि तत्र स्थित्वा वज बाहुः पुत्रेण स्नुषया पण्डितया च स्वपुरं जगाम । कियत्सु पण्डिताके द्वारा ले जाये गये चित्रपटको देखकर जातिस्मरण हो जावेगा। तब वह पण्डितासे अपने पूर्व भवोंके वृत्तान्तको कहेगा । पण्डिता भी उसकी इस खोजको लेकर वापिस आ जावेगी । तू कन्यागृहमें जाकर अपनेको सुसज्जित कर । यह कह कर वज्रदन्तने उसे वहाँसे विदा कर दिया। दूसरे दिन वासव और दुर्दान्त नामके दो विद्याधर उस महापूत जिनालयमें पहुँचे। उनमें वासव उस विचत्र चित्रपटको देखकर लोगों को आश्चर्यचकित करने के लिए कपटपूर्वक मर्छित हो गया । जब उसकी मूर्छा दूर हुई तब लोगोंने उससे इसका कारण पूछा । तब उसने अपनी मर्छाका कारण इस प्रकार बतलाया- मैं अच्युत स्वर्गमें देव हुआ था। यह मेरी देवी है । वह उस स्वर्गसे आकर कहाँपर उत्पन्न हुई है, यह मैं नहीं जानता हूँ। इसको देखकर पूर्वभवका स्मरण हो जानेके कारण मुझे मूर्छा आ गई थी। अच्युत स्वर्गका नाम लेनेपर पण्डिताने उसकी हँसी करते हुए कहा कि जा, यह तेरी प्रियतमा नहीं है; अन्य किसी स्त्रीको देख। इसी समय वज्रबाहुने आकर नगरके बाहर पडाव डाला। उसका पुत्र वज्रजंघ उस जिनालयका दर्शन करने के लिए गया। उसने जैसे ही उस चित्रपटको देखा वैसे ही उसे जातिस्मरण हो जानेसे मूर्छा आ गई। पण्डिताने उससे इस सम्बन्धमें जो कुछ भी पूछा उसका उसने ठीक-ठीक उत्तर दिया । तब पण्डिताने भी उससे श्रीमतीके वृत्तान्तको कह दिया। तत्पश्चात् पण्डिताने वापिस आकर श्रीमतीसे वज्रजंघके वृत्तान्तको सुना दिया । फिर वज्रदन्त चक्रवर्ती वज्रबाहुके सम्मुख जाकर उसे बड़ी विभूतिके साथ नगरके भीतर ले आया। उसने बनबाहुका खूब अतिथि-सत्कार किया । तत्पश्चात् उसने वज्रजंघके साथ श्रीमतीका विवाह कर दिया। फिर वज्रदन्तने श्रीमतीके बड़े भाई अमिततेजके लिए वज्र बाहुसे बज्रजंघकी छोटी बहिन अनुन्धरीको माँग।। तदनुसार वज्र वाहुने अमिततेजके साथ अनुन्धरीका विवाह कर दिया । इस प्रकार वज्रबाहु परस्पर स्नेहके साथ कुछ दिन वहाँपर रहकर पुत्र, पुत्रवधू और पण्डिता १. ज प दुईताख्यौ ब दुईत्ताख्यो । २. ब पटं विलोक्य । ३. ब देवोऽभूवं इयं । ४. ब मूछितो भूवं । ५. श माकथयन् । Jain Education InRational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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