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________________ : ६-१, ४२ ] जज्ञेऽन्यो भव्यः किं न स्यादिति ॥ ८ ॥ ६. दानफलम् १ उपवासफलाख्यक पद्यमिदं वसुसंख्यमितं प्रपठेदिहे यः । स भवेदमरो वरकीर्तिधरो नरनाथपतिश्च स मुक्तिपतिः ॥५॥ इति पुण्यास्रवाभिधानग्रन्थे केशवनन्दिदिव्यमुनिशिष्यरामचन्द्रमुमुक्षुविरचिते उपवासफल व्यावर्णनो नामाष्टकं समाप्तम् ॥५॥ [ ४२ ] श्रीश्रीषेण नृपालः सुरमरगतिजं दाता सुतनुकस्तजाये चानुमोदाद् द्विजवरतनुजा दानस्य सुमुनेः । भुक्त्वा दीर्घ हि सौख्यं वितनुस्वगुणका जाताः सुविदितास्तस्माद्दानं हि देयं विमलगुणगणैर्भव्यैः सुमुनये ॥१॥ अस्य कथा - अत्रैव भरते आर्यखण्डे मलयदेशे रत्नसंचयपुरेशः श्रीषेणो देव्यौ सिंहनन्दितानिन्दिताख्ये । तयोः क्रमेण पुत्राविन्द्रोपेन्द्रौ । तत्रैव विप्रः सात्यको भार्या जम्बू पुत्री सत्यभामा । एवं सर्वे सुखेन तस्थुः । श्रत्र कथान्तरम् । तथाहि - मगधदेशे अचलग्रामे विप्रो धरणीजडो भार्या अग्निला पुत्रौ चन्द्रभूत्यग्निभूती । तद्दासीपुत्रः कपिलोऽतिप्राशो उत्पन्न हुआ है तब अन्य भव्य जीव क्या उसके फलसे समृद्धिको प्राप्त नहीं होगा अवश्य होगा ||८|| जो जीव उपवासके फलकी प्ररूपणा करनेवाले इस आठ संख्यारूप पद्य (आठ कथामय प्रकरण ) को पढ़ेगा वह देव और उत्तम कीर्तिका धारक चक्रवर्ती होकर मुक्तिको प्राप्त होगा ||५|| २३५ इस प्रकार केशवनन्दी दिव्य मुनिके शिष्य रामचन्द्र मुमुक्षुके द्वारा विरचित पुण्यास्रव नामक ग्रन्थ में उपवास के फलको बतलानेवाला अष्टक समाप्त हुआ ||५| मुनके लिये आहार देनेवाला श्री श्रीषेण राजा सुन्दर शरीरसे संहित होता हुआ देव और मनुष्य गतिके लम्बे सुखको भोगकर शरीर से रहित सिद्धों के आठ गुणोंसे संयुक्त हुआ है - मुक्त हुआ है | तथा उसकी दोनों पत्नियों और उस ब्राह्मणपुत्री (सत्यभामा) ने भी उक्त मुनिदानकी अनुमोदन से देव व मनुष्य गतियोंके सुखको भोगा है । यह भली-भाँति विदित है । इसलिये निर्मल गुणोंके धारक भव्य जीवोंको उत्तम मुनिके लिये दान देना चाहिये ॥ १॥ Jain Education International इसकी कथा इस प्रकार है - इसी जम्बूद्वीप के भीतर भरतक्षेत्रगत आर्यखण्ड में मलय नामका देश है । उसके अन्तर्गत रत्नसंचयपुर में श्रीषेण नामका राजा राज्य करता था। उसके सिंहनन्दिता और अनिन्दिता नामकी दो पत्नियाँ थी । उन दोनोंके क्रमसे इन्द्र और उपेन्द्र नामके दो पुत्र हुए । उसी नगर में एक सात्यक नामका ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नीका नाम जम्बू और पुत्रीका नाम सत्यभामा था । ये सब वहाँ सुखपूर्वक स्थित थे । यहाँ एक दूसरी कथा है जो इस प्रकार है- मगध देशके अन्तर्गत अचल गाँवमें धरणीजड़ नामका एक ब्राह्मण रहता था उसकी पत्नीका नाम अमिला था। इनके चन्द्रभूति और अभिभूति नामके दो पुत्र थे । उसके एक कपिल नामका दासीपुत्र भी था जो अतिशय बुद्धिमान् और । १. ब प्रपवेदिह । २. फ सुमुक्तिपतिः व स मुक्तिपति । ३. ज वर्णनाष्टकं समाप्तं व वर्ण नाष्टकं समाप्तः: पश वर्ण नामाष्टकं । ४. ब श्रीश्रीषेणनृ । ५. फ सात्यकी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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