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________________ २३४ पुण्यात्रवकथाकोशम् [५.८,४१ : वरः को भवेदिति । तैर्निरूपितं पूर्वमत्र पुरे चण्डाख्यश्चाण्डालोऽजनि यो विद्युद्वेगचौरेण समं वसुपालराजेन लाक्षागृहे निक्षिप्य मारितः। तत्सुतोऽर्जुनः उदुम्बरकुष्ठेन कुथितदेहो बन्धुभिर्वर्जितः सन् सुरगिरौ कृष्णगुहायां संन्यासेन तिष्ठति । स पञ्चमदिने वितनुभूत्वा भवतीनां पतिः स्यादिति । तच्छृ त्वा तास्तत्रेयुस्तस्य हे अर्जुन, पञ्चमदिने त्वमस्माकं पतिर्भविष्यसीति भीमभट्टारकै निरूपितमिति त्वं परीषहपीडितोऽपि संकलेशं मा कुर्विति संबोधयन्त्यस्तस्थुः । तदा तत्र क्रीडार्थ कुबेरपालनामा राजपुत्रः समागतस्ताः विलोक्य चुकोपो [ पा] यं चाण्डालः कुष्ठीत्यथो एनं निकृष्टं विहाय मयि रतिं कुरुत । ताभिरुक्तम्वयं देव्यस्त्वं मर्त्य इति कथमिदं ब्रूषे, यदि त्वं भोगार्थी धर्मपरो भव, वयं च किं सौधर्मादिष्वतिविशिष्टा बहवो [ बढ्यो ] हि देव्यो भविष्यन्ति । ततः स जगाम । ततो नागदत्ताख्यश्रेष्ठिन: पुत्रो भवदत्तास्यः आगतस्तेन तादृष्टास्तथा चोक्तम् । ताभिरपि तथोक्तम् । तदनु स कामज्वरेण मृत्वा तत्पित्रा कारितनागभवने उत्पलास्यो व्यन्तरोऽभूत् । सोऽर्जुनस्तासां वह्नीनां सुरदेवनामा देवोऽजनि, सपरिवारो भीमभट्टारकं वन्दितुमाययौ । तं दृष्ट्वा तद्वृत्तमवगम्य तस्समवसरणस्थाः प्रोषधरता अजनिषत । इत्यनेकप्राणिघाती चाण्डाल उपवासेन सुरो हमारा पति कौन होगा ? केवलीने कहा कि इसी नगरमें पहले एक चण्ड नामका चाण्डाल उत्पन्न हुआ था। उसे वसुपाल राजाने विद्यद्वेग चोरके साथ लाखके घरमें रखकर मार डाला था। उसके एक अर्जुन नामका पुत्र था। उसके शरीरमें उदुम्बर कुष्ठ रोग हो गया था। इससे कुटुम्बी जनोंने उसे घरसे निकाल दिया था। वह घरसे निकलकर इस समय सुरगिरि पर्वतके ऊपर कृष्ण गुफामें संन्यासके साथ स्थित है । वह पाँचवें दिन शरीरको छोड़कर तुम्हारा पति होगा। इसको सुनकर वे चारों व्यन्तर देवियाँ उस सुरगिरि पर्वतपर गई और उससे बोलीं कि हे अर्जुन ! तुम पाँचवे दिन शरीरको छोड़कर हम लोगोंके पति होओगे, यह हमें भीम केवलीने बतलाया है । इसलिए तुम परीषहसे पीड़ित हो करके भी संक्लेश न करना । इस प्रकारसे उसे सम्बोधित करती हुई वे चारों उसीके पास स्थित हो गई । उस समय कुबेरपाल नामका राजपुत्र वहाँ क्रीड़ाके लिये आया। उनको देखकर उसने क्रोधके आवेशमें कहा कि यह चाण्डाल कोढ़ी है, इसलिए इस निकृष्टको छोड़कर तुम मुझसे अनुराग करो । उनने उत्तर दिया कि हम देवियाँ हैं और तुम हो मनुष्य, इसलिए तुम यह असम्बद्ध बात क्यों बोलते हो ? यदि तुम भोगोंकी अभिलाषा रखते हो तो धर्ममें निरत हो जाओ । इससे हम लोगोंकी तो बात ही क्या, तुम्हें सौधर्मादि स्वर्गों में हमसे भी विशिष्ट देवियाँ प्राप्त हो सकेगी। तब वह वहाँसे चला गया। तत्पश्चात् वहाँ नागदत्त सेठका पुत्र भवदत्त आया । उसने भी उनको देखकर वैसा ही कहा। तब उन सबने उसे भी वही उत्तर दिया जो कि कुबेरपालके लिए दिया था। तत्पश्चात् वह कामज्वरसे मरकर अपने पिताके द्वारा बनवाये गये नागभवनमें उत्पल नामका व्यन्तर हुआ। वह अर्जुन उन बहुत-सी देवियोंका सुरदेव नामका देव उत्पन्न हुआ। वह परिवारके साथ भीमकेवलीकी वंदनाके लिये आया। उसको देखकर और उसके वृत्तान्तको जानकर भीमकेवलीकी समवसरण सभामें स्थित कितने ही जीव प्रोषधमें निरत हो गये । इस प्रकार अनेक प्राणियोंकी हिंसा करनेवाला वह चाण्डाल उपवासके प्रभावसे जब देव १. श पटं बदध्वा त्वद्वंशोग्रवंशो। २. श नृत्य एवं रंग। ३. शं पुरिमत्तारं० । ४. ज ०मुद्रूत फ मुद्धृत० ब मुवृत० ५. ब सुकुंतलान् उत्पादय श स्वकुलंतनुत्पाट्य । ६. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श प्रगाख्यं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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