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________________ १६२ पुण्यात्रकथाकोशम् [ ५-२,३५ : अयं महापापी कदाचिद्बलात्कारेण शीलखण्डनं करोति तदा विरूपमिति चिन्तयन्ती समुद्र' निक्षेपणं दध्यौ । तदासनकम्पेन जलदेवतागत्य वहित्राणि निमज्जितुं लग्ना । तदा स भीतस्तूष्णीं स्थितोऽन्यवणिग्भिः हे महासति, क्षमस्व क्षमस्वेति क्षमिता । सैव यथा शृणोति तथा जलदेवतयोक्तं हे सुन्दरि, तव पतिना मासद्वयेन संयोगो भविष्यति, मा दुःखं कुर्विति । ततः सा मूकीभूय तस्थौ । कतिपयदिनैः स्वपुरं प्रविश्य बन्धुदत्तः पितरं प्रत्यवददहं तिलकद्वीपमाम् । तत्र हरिपुरेश भूपाल सुरूपयोरुत्पन्नेयं कन्या । राजा सपरिवारो वनक्रीडार्थमटवीमैदहमपि तेन गतः । तत्रातिरौद्रः सिंहो राशः संमुखमागतः । तं दृष्ट्वा नष्टः परिजनो मया स हत इति' राजा तुष्टः कन्यां मह्यम् अदत्त । मया परिणयनार्थं तवान्तिकमानीता । इयं पित्रोर्वियोगेन मूकीभूत्वा तिष्ठति । यज्जानासि तत्कुरु । ततो धनपत्यादयो नानाप्रकारैस्तां संबोधयन्तस्तस्थुः । सा कथमपि न वक्ति । कमलश्रीरागत्य बन्धुदत्तस्याशिषां' निक्षिप्यापृच्छद्भविष्यदत्तस्य शुद्धिम् । स बहुधान्यखेटे प्रभावतीगृहे तिष्ठतीति ववाद । ततोऽतिदुःखिता बभूव । तत्रैकदागतं विनयंधर केवलिनं पप्रच्छ भविष्यदत्तः कदागमिष्यति । तेनोक्तं मासे आगमिष्यति, ततः कमलश्रीः संतुतोष । · यह देखकर भविष्यानुरूपा मूच्छित हो गई। उस समय उसने बहुत पश्चात्ताप किया। इस अवसरपर जब बन्धुदत्तने अनेक प्रकारके विकारोंको करके उसके ऊपर उपसर्ग करना प्रारम्भ किया तब भविष्यानुरूपा बन्धुदत्तके द्वारा अपने प्रति किये जानेवाले इस दुर्व्यवहारको देखकर बहुत दुखी हुई। उसने विचार किया कि यह महा पापी है, यदि कदाचित् इसने बलात्कार करके मेरे शीलको खण्डित कर दिया तो यह अयोग्य होगा; यह सोचते हुए उसने अपने आपको समुद्र में डाल देनेका विचार किया । तब आसनके कम्पित होनेसे जलदेवताने आकर उन नावोंको डुवाना प्रारम्भ कर दिया । तब बन्धुदत्त भयभीत होकर खामोश रहा । परन्तु अन्य वैश्योंने हे सती ! क्षमा कर क्षमा कर, यह कहते हुए उससे क्षमा कराई। फिर वह जलदेवता केवल वही जिस प्रकारसे सुन सके इस प्रकारसे बोला कि हे सुन्दरी ! तेरा पतिके साथ संयोग दो मास में होगा, तू दुःख मत कर । तबसे भविष्यानुरूपाने मौन ले लिया । कुछ दिनों में जब वह बन्धुदत्त अपने नगरके भीतर पहुँचा तब वह पिता से बोला कि मैं तिलक द्वीपको गया था । उस द्वीपमें स्थित हरिपुरके राजा भूपाल और रानी सुरूपाकी यह कन्या है । राजा परिवार के साथ वनक्रीड़ाके लिए वनमें गया था, उसके साथ मैं भी गया था । वहाँ राजाके सामने अतिशय भयानक सिंह आया । उसे देखकर परिवार के लोग भाग गये । तत्र मैंने उस सिंहको मार डाला । इससे राजाने सन्तुष्ट होकर मुझे यह कन्या दी है। मैं उसे विवाह के निमित्त आपके पास लाया हूँ । इसने माता-पिता के वियोग में मौन ले लिया है। अब आप जैसा उचित समझें, करें । तत्र धनपति सेठ आदिने उसे अनेक प्रकार से समझानेका प्रयत्न किया । किन्तु वह किसी भी प्रकारसे नहीं बोली । कमलश्रीने आकर बन्धुदत्तको आशीर्वाद देते हुए उससे भविष्यदत्तके विषय में पूछा । उत्तर में उसने कहा कि वह बहुधान्यखेटमें प्रभावती वेश्या के घर में स्थित है । यह सुनकर कमलश्रीको भारी दुख हुआ । एक समय वहाँ विनयंधर केवली आये । तब कमलश्रीने उनसे पूछा कि भविष्यदत्त कच आवेगा ? केवलोने उत्तर दिया कि वह एक मासमें आ जावेगा । इससे कमलश्रीको सन्तोष हुआ । 1, १. ज प क शन्ती सात्मनः समुद्रे । २ ज 'मायम् प फ श मायाम् । ३. ज ब स हतं इति श सह स्थित इति । ४. जप बश मह्यं दत्त [ मह्यमदात् ] । ५. फ 'न' नास्ति । ६. ज स्याशेषां । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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