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________________ : ५-१,३४] ५. उपवासफलम् १ १७३ जिनमभ्यर्च्य स्तुत्वोपविष्टो यावदास्ते तावत्तदाक्रोशरवमवधार्य तमाह्वाप्यापृच्छंदाक्रोशकारणम् । सोऽवोचद्देवात्रैव भिल्लेशोऽहं रम्यकाख्यो मद्भार्या हठान्नीत्वा भीमराक्षसः कालगुफायां तिष्ठतीति ममाक्रोशः । कुमारेण तां गुफां दर्शयेत्युक्ते तेन दर्शिता । तत्र व्यालेन समं प्रविष्टस्तं विलोक्य भीमराक्षसः संमुखमाययो। प्रणिपत्य चन्द्रहासोऽसि गशय्या निधिः कामकरण्डकश्च तदने व्यवस्थाप्योक्तवानेतेषां त्वमेव योग्यस्त्वं चात्र भिल्लाकोशवशात्प्रवेक्ष्यसीति केवलिभाषितादत्रेयं मयानीतेति भणित्वा सापि तस्य समर्पिता। स चन्द्रहासादिकं मत्स्मरणे आनयेति तस्यैव समर्प्य निर्गतः । तां भिल्लस्य समर्प्य तं पृष्टवानर अत्र वसता त्वया किमपि कौतुकं दृष्टमस्ति । स आह काञ्चनाख्यगुफास्ति । तत्र त्रिसंध्यं तूर्यनिनादो भवति, कारणं न जाने। तां दर्शयेत्युक्ते दर्शितवान् । तदा स तत्र व्यालेन सह प्रविष्टम्तं दृष्ट्वा सुदर्शना यक्षी संमुखमाययौ । नत्वा दिव्यासने उपवेश्य विज्ञप्तवती नार्थ, विजयार्धदक्षिणश्रेण्यामलकानगरेशविद्युत्प्रभविमलप्रभयोर्नन्दनो जितशत्रुश्चतुःसहस्रास्मत्प्रभृतिविद्या अत्र स्थित्वा द्वादशाब्दैः ससाध । वह वहाँ भूतिलक जिनालयमें जिनेन्द्रकी पूजा व स्तुति करके बैठा ही था कि इतनेमें उसे चिल्लानेकी ध्वनि सुनायी दी। इससे नागकुमारने उसका निश्चय करके उसे बुलवाया और उससे इस प्रकार आक्रन्दन करनेका कारण पूछा । वह बोला-- हे देव ! मैं रम्यक नामका भीलोंका स्वामी हूँ और यहीं पर रहता हूँ। मेरी स्त्रीको भीमराक्षस बलपूर्वक ले गया है और कालगुफामें स्थित है । मेरे आक्रन्दन करनेका यही कारण है । तब नागकुमारने उससे कहा कि वह गुफा मुझे दिखलाओ। तदनुसार उसने वह गुफा नागकुमारको दिखला दी। तब वह व्यालके साथ उस गुफाके भीतर गया । उसको देखकर भीम राक्षसने सामने आते हुए उसे प्रणाम किया। फिर वह चन्द्रहास खड्ग, नागशय्या और कामकरण्डक निधिको उसके आगे रखकर बोला कि इनके योग्य तुम ही हो । मुझे केवलीने कहा था कि तुम भीलके करुणाक्रन्दनको सुनकर यहाँ प्रवेश करोगे। इसीलिये मैं उस भीलकी स्त्रीको यहाँ ले आया था। यह कहकर उस राक्षसने उस भीलकी स्त्रीको भी नागकुमारके लिए समर्पित कर दिया । तत्पश्चात् नागकुमारने 'मेरे स्मरण करनेपर इन चन्द्रहासादिकों को लाना' यह कहते हुए उन्हें उस राक्षसको ही दे दिया। फिर गुफासे बाहर निकलकर नागकुमारने भीलकी स्त्रीको उसके लिए देते हुए उससे पूछा कि यहाँ रहते हुए तुमने क्या कोई आश्चर्य देखा है ? इसके उत्तरमें वह बोला--- यहाँ एक काँचनगुफा है। वहाँ तीनों सन्ध्याकालोंमें वादित्रोंका शब्द होता है । वह कैसे होता है, मैं उसके कारणको नहीं जानता हूँ। तत्पश्चात् नागकुमारके कहनेपर उसने उसे वह गुफा भी दिखला दी। तब नागकुमार व्यालके साथ उस गुफाके भीतर गया। उसे देखकर सुदर्शना नामकी यक्षी उसके सामने आयी। उसने दिव्य आसनपर बैठाते हुए नागकुमारसे निवेदन किया-- हे नाथ ! विजयाध पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें अलका नामका नगर है। वहाँ विद्युत्प्रभ राजा राज्य करता था। उसकी पत्नीका नाम घिमलप्रभा था। इनके एक जितशत्रु नामका पुत्र था। उसने इस गुफामें स्थित होकर मुझको आदि लेकर चार हजार विद्याओंको बारह वर्षों में १. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श तमाह्वाह्यपृच्छ। २. श रम्यकाक्ष्यो। ३. पहासोसि शफ हासोऽसिनाग । ४. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श केवल । ५. ब भाषिता तत्रेयं । ६. ब मत्स्मरणा। ७. ब सा भिल्लस्य समप्पितां पृष्टवान् रे। ८. प उपविश्य विज्ञप्तवती नाथ श उपविज्ञप्तवती नाहथ । ९. ब विद्याधरा। -- -.--..- --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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