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________________ : ३-६, २३ ] ३. श्रुतोपयोगफलम् ६ १३१ नोक्तं महापापी त्वं सप्तमावनेरन्यत्र न तिष्ठसि, तत्र प्रयस्त्रिोत्सागरोपमकालं महादुःखानुभवनं करिष्यसि । तनिशम्य चौरस्तत्पादयोलग्नो दुःख निवारणं कथयेति । ततस्तेन धर्मः कथितः। तदनु स सम्यक्त्वमाददे । तत्प्रभावेन तपस्विघातकाले सप्तमावनौ बद्धमायुः संक्षिप्य प्रथमावनी चतुरशीतिलतवर्षायुर्नारकोऽभूत् ! चाण्डालो दिवं गतः। नारकस्तस्मादेत्यात्रैव पुण्डरीकिण्यां वैश्यसमुद्रदत्तसागरदत्तयोः सूनु मोऽभूत् । अक्षरादिविज्ञानवैरी प्रवृद्धः सन् चैकदा शिवंकरोद्यानं गतः। तत्र सुव्रतमुनिमपश्यदवन्दत । तेन धर्मे कथिते ऽणुक्तानि गृहीत्वा गृहं गच्छतो मुनिनोक्तम्-हे भीम, ते पिता व्रतानि त्याजयति चेन्मम समर्पयेति । 'ओं' भणित्वा गृहं गतो नृत्यन्तं विलोक्य पित्रा रे भीम, किं नृत्यसि इत्युक्तेऽनो जिनधर्मो लब्ध इति नृत्यामि । तच्छ्र त्वा पितावादीत्-रे विरूपकं कृतं त्वया, मदन्वये केनापि जिनधर्मो न गृह्यत इति त्वं त्यज, नोचेद्याहि । तनुजोऽब्रूत तर्हि तस्य समागच्छामि। ततस्तद्वान्धवाः सर्वे मिलित्वा तदर्पयितुं चलिताः। भीमोऽन्तराले शूले' प्रोत्तं पुरुषं वीक्ष्य मूच्छितो जातिस्मरो जातः । पित्रादीनां स्वरूपं कथितवान् । तदा तेषां और आर्यिकाका वध किया है। पश्चात् उसने चाण्डालसे पूछा कि हे चण्ड ! मुनि और आर्यिकाका वध करनेसे मेरी क्या अवस्था होगी ? चाण्डालने उत्तर दिया कि तुमने महान् पाप किया है, इससे तुम सातवे नरकको छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकते हो। तुम सातवें नरकमें जाकर वहाँ तेतीस सागरोपम काल तक महान् दुखको भोगोगे। यह सुनकर वह चोर चाण्डालके पाँवोंमें गिर गया और बोला कि मेरे इस दुखको दूर करनेका उपाय बतलाइए। तब उसने उसे धर्मका उपदेश दिया। इससे उसने सम्यग्दर्शनको ग्रहण कर लिया। उसके प्रभावसे उसने मुनिकी हत्या करनेके समयमें जो सातवें नरककी आयुका बन्ध किया था उसका अपकर्षण करके वह प्रथम पृथिवीमें चौरासी लाख वर्षकी आयुका धारक नारकी हुआ। वह चाण्डाल मरकर स्वर्गको गया। और वह नारकी उक्त पृथिवीसे निकलकर इसी पुण्डरीकिणी नगरीमें वैश्य समुद्रदत्त और सागरदत्ताका पुत्र भीम नामका हुआ। वह अक्षरादिज्ञानका शत्रु था--उसे अक्षरका भी बोध न था । वह वृद्धिको प्राप्त होकर किसी समय शिवंकर उद्यानमें गया था । वहाँ उसने सुव्रत मुनिको देखकर उनकी वंदना की। मुनिने उसे धर्मका उपदेश दिया, जिसे सुनकर उसने अणुव्रतोंको ग्रहण कर लिया। जब वह वहाँ से घरके लिए वापिस जाने लगा तब मुनिने उससे कहा कि हे भीम ! यदि तेरा पिता इन व्रतोंको छुड़ानेका आग्रह करे तो तू इन्हें मेरे लिये वापिस दे जाना। तब वह इसे स्वीकार करके घरको वापिस चला गया । घर जाकर वह नाचने लगा। तब उसे नाचते हुए देखकर पिताने पूछा कि रे भीम ! तू किसलिये नाच रहा है ? इसके उत्तरमें भीमने कहा कि मैंने आज अमूल्य जैन धर्मको प्राप्त किया है, इसीलिये हर्षित होकर मैं नाच रहा हूँ | इस बातको सुनकर पिताने कहा कि रे भीम ! तूने यह अयोग्य कार्य किया है। मेरे कुलमें किसीने भी जैन धर्मको धारण नहीं किया है। इसीलिये तू या तो इन व्रतोंको छोड़ दे या फिर मेरे घरसे निकल जा। यह सुनकर भीमने कहा कि तो मैं इन व्रतोंको उस मुनिके लिये वापिस देकर आता हूँ। तब उसके सब ही कुटुम्बी जन मिलकर उन व्रतोंको वापिस करानेके लिये चल दिये । मार्गमें भीम किसी पुरुषको शूलीके ऊपर चढ़ा हुआ देखकर मूर्छित हो गया । उसे उस ६. श तत्रयत्रिंश । १०. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श धर्म कथितं । ३. ब गतो नृत्यन् तं नृत्यंते । ४. बप्रतिपाठोऽयम् । श चेत्त्वं याहि । ५. ब सर्वेपि । ६. श 'शूले' नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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