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________________ जैन आगम प्राणी कोश 75 महुयर [मधुकर] प्रज्ञा. 21 ज्ञाता. 1/1/33 महोरग [महोरग] प्रश्नव्या. 1/7 प्रज्ञा. 1/68 जम्बू.2/12 जम्बू.3/115 Purple sunbird-शकर खोरा। Very Large Snake-एक विशाल सर्प, महोरग। देखें-भिंग आकार-एक अंगुल से अनेक हजार योजन तक [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N. Dave पृ. 114] लम्बा। विवरण-मनुष्य क्षेत्र से बाहर के द्वीप समुद्रों में उत्पन्न महयर मधकरा प्रज्ञा. 21 ज्ञाता. 1/1/33 होने वाला यह सर्प जल. स्थल-दोनों में विचरण करता जम्बू. 2/12 Honey bee-मधुमक्खी आकार-लगभग 1/2 इंच से 1 इंच लम्बा। माइवाइया [मातृवाहका] प्रज्ञा. 1/49 उत्त. लक्षण-शरीर का रंग काला-लाल, जिस पर आर-पार 3/128 रेखाएं होती हैं। पूंछ के भाग वाले स्थान पर एक डंक Matri-Vahaka-मातृवाहक, र Vahaka-मातृवाहक, चुडैल (गुज.) होता है। आकार-केंचुए के समान। विवरण-शहद के छत्तों में परिवार या कालोनी बना लक्षण-शरीर का रंग मटमैला। कर रहने वाली मधुमक्खियां सामाजिक प्राणी हैं। विवरण-यह गुजरात में अधिक पाया जाता है। एक-एक छत्ते में 75000 या इससे भी अधिक स्थानीय भाषा में इसे मातृवाहक, चुडैल आदि कहते मधुमक्खियां रहती हैं। हर छत्ते में मजदूर, सिपाही, नर, हैं। मादा एवं रानी मक्खी होती है। अंडे देने का कार्य केवल विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जीव-विचार-प्रकरण] रानी मक्खी ही करती है। मधुमक्खियां अपनी साथियों को विशेष नृत्य द्वारा मायंग, मातंग मातंगा औ. 26 जी. 3/118 ठा. शहद या पराग पाने नर 10/113/1 विवा. 1/4/33 की सूचना देती हैं। Elephant-Eteft ढेर सारा शहद मिलने देखें-कुंजर (हाथी) पर ये मंडल नृत्य (राउंड डांस) करती रानी मालि [मालिन्] प्रज्ञा. 1/71 हैं। आपस में रगड़ना AKindof VenomousBlack Snake-मांडलीसर्प या मिलना पराग की एक जाति। पाने का सूचक है। देखें-मंडलि (मण्डलिन्) इनके और सांप के जहर में कई मजदूर मालूया [मालुका] प्रज्ञा. 1/50 उत्त. 36/137 समानताएं हैं। दोनों Lipaphis erysimi kaltenbach-मालूका, माहू से ही श्वसन तंत्र को आकार-छोटे (लगभग 2 M.M.) और सामान्यतया लकवा मार जाता हैं, गोलाकार कीट। जिससे मौत हो लक्षण-मुखांग वेधक और चूसने वाले होते हैं। इनकी सकती है। हालांकि मधुमक्खी के शुष्क जहर में मौजूद पीठ पर नितंब प्रदेश से निकली एक जोड़ी नलिका जैसी 0.4 प्रतिशत मैग्नेशियम फास्फेट बड़ा रोग नाशक होता बनावट मिलती है जिसे साइफन (नाल), कोर्निकल (छोटे सींग) आदि से जाना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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