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________________ 12 जैन आगम प्राणी कोश मक्कड़ [मर्कट] आ. चू. 1/2 मगरमच्छों की बनावट विशेष रूप से जलीय जीवन के Monkey-बंदर अनुकूल होती है। नथुने और आंखें ऊपर की ओर देखें-कवि (कपि) काफी उभरी रहती हैं। आंखों के ऊपर एक विशेष प्रकार का पर्दा सा लगा रहता है, जिसे यह पानी के भीतर मक्कड़ा [मर्कटा] आ.चू. 1/2 निसि. 7/75 जाते ही चढ़ा लेता है। इसमें सूंघने की शक्ति, दृष्टि Spider-मकड़ी और सुनने की शक्ति बहुत तीव्र होती है। पाचन शक्ति देखें-कोली (मकड़ी) इतनी तीव्र होती है कि निगले हुए जानवरों की हड्डियां मामी. तक को गला डालती है। अपने हाजमें की तेज करने मक्कोड़ग [मक्कोडग] आ.चू. पृ. 290 के लिए यह अक्सर पत्थर के गोल-मटोल टुकड़ों को A Big black Ant.-मकोड़ा, चींटा। वानिय निगल जाता है। आकार-चींटी से बड़ा। मछलियों की तरह ये पानी के भीतर श्वास नहीं लेते लक्षण-चींटी की अपेक्षा इनके जबड़े बड़े एवं मजबूत और इन्हें श्वास लेने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर बाद सतह होते हैं। कई बार ये प्राणी के शरीर को इतनी तेजी पर आना पड़ता है लेकिन आवश्यकता होने पर ये पांच से जबड़ों के द्वारा पकड़ लेते हैं किछुड़ाने पर नहीं छूटते। छह घंटे पानी के भीतर रह सकते हैं। ये अपने अण्डे अपितु दो टुकड़े हो जाते हैं। किनारे की रेत में गड्ढ़े खोद कर देते हैं और घास-पात, विवरण-इनकी अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं। मिट्टी या बालू से ढक देते हैं। इनके दांत जीवन भर इनकी आदत भी चींटियों से काफी मिलती-जुलती है। गिरते रहते हैं और उनके स्थान पर नए दांत आ जाते (शेष विवरण के लिए देखें-कीड़ी) [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जानवरों की दुनिया, मगर [मकर] प्रज्ञा. 1/59 Indian Reptiles] Alligator-मगरमच्छ । आकार-लगभग 3 मी. से 10 मी. लम्बा सरीसृप मग्गरिमच्छ [मकरीमत्स्य] प्रज्ञा. 1/56 प्राणी। Octopus-अष्टापद, आठ भुजाओं वाला जलीय लक्षण-शरीर एक प्रकार की मोटी खाल से ढका होता जंतु। है, जिस पर चौकोर खाने-खाने से कटे रहते हैं। सिर आकार-भुजाएं फैलाने पर एक सिरे से दूसरे सिरे की बड़ा और चपटा। जबड़े मजबूत और तेज दांतों की लम्बाई 20 फीट तक। पंक्ति वाले। पूंछ लम्बी और पैर छोटे। लक्षण-आक्टोपस की आठ भुजाएं होती हैं जिनमें विवरण-यह नदियों, झीलों और समुद्रों में पाया जाने दो कंटीली पंक्तियां बनी होती हैं। इनसे यह जानवरों को खाने के लिए पकड़ता है। वाला एक जलचर प्राणी है। भारत आदि गर्म देशों में इसकी अनेक जातियां पाई जाती हैं। सभी प्रकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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