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________________ जैन आगम प्राणी कोश 65 पुष्फबिंटिय [पुष्पवृन्तक] प्रज्ञा. 1/50 मा पोत्तिय [पोत्तिक] प्रज्ञा. 1/51, उत्त. 36/146 Trogoderma granarium Everts-खपरा कीट A Wasp-ततैया, टांटियों (राज.), वर्र, बीरड़ आकार-कुछ अंडाकार तथा लगभग 2.5 m.m.. (हरियाणा)। लम्बा कीट। आकार-लगभग 1-1/2 इंच लम्बा। लक्षण-लाल-भूरा रंग का शरीर । पूंछ के भाग पर रोएं लक्षण-शरीर पर पीले व काले रंग की धारियां होती गुच्छों में होते हैं। पौधे के फल, फूल, स्कंध आदि पर चिपक कर अपना आहार करते हैं। विवरण-गर्म एवं शुष्क प्रदेशों में इनकी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। विभिन्न प्रकार की दरारों, सुराखों, बोरों की सीवन आदि इनके निवास स्थान हैं। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-फसल पीड़क कीट] पूयण [पूतन] सू. 1/3/73 Sheep-गाड़र, भेड़। देखें-अमिल पोंडरीय [पौण्डरीक] सू. 2/1/1-10 ठाणं. 10/139 प्रज्ञा. 1/79 . Spotted-billed, Grey Pelican- हवासिल, कुरेर, बिंदुचंचु, घूसर- पेलिकन। आकार-गिद्ध से बड़ा। लक्षण-नाटी-मोटी एवं बड़े आकार का जलीय पक्षी। शरीर का रंग धूसर और धूसर सफेद होता है। टांगें छोटी एवं मजबूत होती हैं। विवरण - भारत, पाकिस्तान आदि देशों में झीलों, नदियों के किनारे पाया जाने वाला यह पक्षी झुंड में रहना पसन्द करता है। बृहद् आकार के बावजूद यह पानी से निकल कर आसानी से कुशलता पूर्वक उड़ सकता है। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N. Dave पृ. 210, 231] हैं। पूंछ के भाग पर एक जहरीला डंक होता है। विवरण-समूह में रहने का आदी यह एक सामाजिक प्राणी है। लकड़ी, मिट्टी आदि से अपना छत्ता बनाता है, जिसमें अनेक घर या छेद होते हैं। इसके शुष्क जहर में मौजद 0.4 प्रतिशत मैग्निशियम कई रोगों के लिए लाभकारी होता है। इसके काटने पर भयंकर दर्द तथा सूजन भी आ जाती है। अनेक बार डंक शरीर में रह जाता है। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जीव विचार प्रकरण] फलविंटिया [फलवृन्तका] प्रज्ञा. 1/50 Clerck or Materna (लिनायस)-फल चूस शलभ। आकार-1 से.मी. तक लम्बा कीट। लक्षण-शरीर का रंग हल्का भूरा तथा पीला सफेद। विवरण-भारत में इनकी लगभग 20 प्रजातियां पाई जाती हैं। यह फलों के बाह्य छिलके को क्षति पहुंचा कर रसपान करता है। इस क्षति से न केवल फल गिर जाते हैं वरन् अन्य कीटों द्वारा आक्रमण के लिए भी रास्ता प्रशस्त हो जाता है। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-फसल पीड़क कीट] बंसीमुह [बंशीमुख] प्रज्ञा. 1/49 A Kind of Worm-वंशीमुख, वसीमुहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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