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________________ जैन आगम प्राणी कोश 15 कंदलग [कंदलग] प्रज्ञा. 1/63 नीचे की ओर प्लास्ट्रोन । खोल में शल्की ढालों की एक Chestnut bullied Nuthatch-सिरि, कठफोड़िया, बाहरी परत होती है। अंदर की परत अस्थियों की पट्टियों कंदलग। से बनी होती है। शरीर खोल के अंदर रहता है तथा आकार-गौरेया से कुछ छोटा। गर्दन, पैर और पूंछ खोल के बाहर स्वतंत्र रूप से लक्षण-शरीर के ऊपर का रंग स्लेटी नीला, नीचे । गतिशील होते हैं। का रंग गहरा चैस्टनट (Chestnut)। छोटी दुम और विवरण-नदियों, समुद्रों आदि में रहने वाले कच्छुओं लम्बी भारी नुकीली चोंच। विवरण-रंग-भेद के आधार से इसकी 5 प्रजातियां पाई जाती हैं। यह शाखा की चिपकी सतह पर ऊपर नीचे की ओर तेजी से दौड़ता है। इसकी कुछ क्रियाएं तथा व्यवहार कठफोड़ा से कुछ वल्गुली तथा कुछ चूहे की तरह होती हैं। उत्तरी अमेरिका के जंगलों में लाल की विश्व भर में 300 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इनकी लंबाई 4 इंच से 8 फीट तक तथा शरीर का वजन 700 kg. तक होता है। कुछ कच्छुए अस्थि बहुल एवं कुछ मांस बहुल होते हैं। मुंह में दांतों के स्थान पर हड्डी के प्लेट से रहते हैं, जिसके द्वारा ये बड़ी आसानी से मांस तक काट सकते हैं। आंखों में दो की बजाय तीन पलकें होती हैं। ये अपने मुंह और गुदा से पानी खींचकर उसे बाहर निकालते हैं जिससे दोनों स्थानों की रक्त शिराएं पानी में घुली हुई थोड़ी बहुत हवा सोख सिर वाला कठफोड़वा पाया जाता है, जो सर्दी के मौसम में वंजुफल व बीचफल ही खाता है। बंजूफल के अभाव में यह अन्य क्षेत्रों में चला जाता है। विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-K.N. Dave पृ. 26] लें। मादा कच्छप अपने अंडे मिट्टी में गड्ढा खोद कर देती है। अधिकांश कछुए मांसाहारी होते हैं। कंबोय [कम्बोज] उत्त. 11/16 A Species of horse born in a Probince of Afghanistan-अफगानिस्तान के एक भाग में उत्पन्न घोड़ा। देखें-आइण्ण (आकीर्ण) और अस्स (अश्व) कट्ठाहार [काष्ठाहार] प्रज्ञा. 1/50 उत्त. 36/137 Wood Worm] Furniture beatle-काष्ठहारक, घुन। कच्छभ [कच्छप] प्रज्ञा. 1/55 Tortoise, Turtle-कच्छुआ, कच्छप। आकार-गोल डब्बे के समान। लक्षण-यह अस्थियों के खोल से पहचाना जाता है। जिसके दो भाग होते हैं- ऊपर की ओर केरापेस और आकार-लगभग 2 मिलीमीटर से 9 मिलीमी. तक लम्बा । लक्षण-शरीर का रंग सफेद-भूरा । प्रारम्भ में यह लट के आकार का होता है। इसका लार्वा या प्रारम्भिक दिन लकड़ी खाने में व्यतीत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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