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________________ परिशिष्ट १ ४४५ अणुत्तुण-निरभिमानी अप्पुण्ण-पूर्ण अणुदिव-प्रभात, प्रातःकाल अप्फरिअ-अधिक खाने से होने अणुमग्ग-पीछे-पीछे वाला पेट का उभार-आफरा अणुव्वाय--अखिन्न इति भाषायां-'अफरियपोट्टो' अणहंडिय-अनुभुक्त अप्फाहेत-संदेश देता हुआ अणोलिया-गिल्ली, डोली अबहिट-मैथुन अण्णसअ.-आस्तृत अब्बा-माता अण्णासय–विस्तृत, बिछाया हुआ अब्बो-माता का सम्बोधन अण्णोल-प्रभात अब्भडवंच-पहुंचाने जाना अत्तिल्ल--अत्यन्त अब्भहर--अभ्रक अत्तिहरी-दूती, समाचार पहुंचाने अभिट्ट-अभिगत वाली स्त्री अबिभद्र-संगत, सामने आकर अत्थक्क-.-अनवसर __ भिड़ा हुआ अत्थक्कि--अकस्मात् अभिड --संग्राम अत्याइया-गोष्ठी-मण्डप अभिडिअ--समागत अत्थोडिय- आकृष्ट, खींचा हुआ । अभिणिव्वागड-भिन्न परिधि अथक्क--अस्थिर वाला अद्दुमाअ-पूर्ण, भरा हुआ अभिमर--हत्या अद्धघरणी-नववधू अभुल्ल-अभ्रान्त-अभ्रान्त अद्धच्छिपेच्छिअ-इधर-उधर दृष्ट इत्यर्थे देशी अद्धच्छिपेच्छिरि-इधर-उधर अमयघडिय--चन्द्रमा, चांद देखना अमल -- तेजहीन अद्धद्धा-दिन अथवा रात्रि का एक | अमार-१ नदी के मध्य का द्वीप। २ कमठ अद्धर-प्रच्छन्न, गुप्त अम्मच्छ-असंबद्ध अन्नाहुत्त--पराङ्मुख अम्मण-कितना . अपंडिअ---विद्यमान अम्माहीरय-राग, ध्वनि-विशेष अपिट्ट-पुनरुक्त, फिर से कहा हुआ अम्हत्त-प्रमृष्ट, प्रमार्जित अपुण्ण-आक्रान्त अयंगम-शिथिल शरीर अप्पाअप्पि-उत्कण्ठा, औत्सुक्य अयडणा--कुलटा अप्पाण-निर्बल अयुजरेवइ-अचिर-युवति, नवोढा अप्पुण-स्वयं | अरणि-१ रास्ता । २ पंक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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