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________________ देशी शब्दकोश संखलि - कर्णभूषण - विशेष, शंखपत्र का बना हुआ ताडङ्क (दे ८|७) । संखाल - शंबर नाम का मृग (दे ८६ ) । संखिल्ल -- संख्येय - णरवसभा के वर्णतसं खिल्ल' ( कु पृ २०१) । संखेण - गोत्र - विशेष (अंवि पृ १५० ) । संगइ - मित्रता (ज्ञाटी प३८ ) | संगइय - मित्र - 'दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगइयं' (भ २।३२ ) । संगय-मसृण, चिकना (दे ८१७) | संगरिगा --- फली - विशेष ( प्रसा २२६ ) | सांगरी ( राजस्थानी ) । संगलिक - - फल- विशेष (अंवि पृ ७१ ) । संगलिग — फली ( अंवि पृ २४४ ) । संगलिया - फली - "एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति'. (भ १५।७२ ) । संगह - घर के ऊपर का तिरछा काष्ठ (दे ८१४)। संगा - वल्गा, घोड़े की लगाम (दे ८।२) । संगार - संकेत - एगंतमंते संगारं कुठवंति' (भ १५।१३४ ) | संगिल्ली -- समूह (ज्ञाटी प ६४ ) | संगिल्ल -- १ गायों का समूह - 'संगिल्लो नाम गोसमुदायः । ( व्यभा ४। २ टी प ७ ) । २ समूह ( व्यभा ४/४ टीप २९ ) । संगुलिया --- समूह ( आचू पृ ३२९) । संगेल्ल - समूह (दे ८४) । संगेल्लि - समूह - पिट्ठओ रहसंगेल्लि' (दश्रु १०।१६ ) । ३६६ संगेल्ली - १ परस्पर अवलम्बन - 'ते'''' हत्थसं गेल्ली ए... ' ( ज्ञा १।३।१६ ) । २ समूह - 'सं गेल्ली समुदायः देश्योऽयं शब्द:' ( जंबूटी प २६५) । संगोढण - व्रण-युक्त (दे ८७१) । संगोली - समूह (दे ८।४) । संघट्ट--- १ अर्ध जंघा प्रमाण जल - ' जंघद्धा संघट्टो' (ओभा ३४ ) । २ वल्लीविशेष (प्रज्ञा ११४०/३) । संघड -- निरन्तर ( आ ४।५२) । संघडिय - मित्र - 'संघडिय त्ति देशीपदमव्युत्पन्नमेव मित्राभिधायि' (उशाटी प ३६४) । संघयण - १ शरीर (आटी प ३६२; दे ८ । १४) । २ धृति - थिरसंघयणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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