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________________ देशी शब्दकोष वातंसु-बिल में रहने वाला जंतु-विशेष-कसका वातकुरीला वातंसु कुतिपि एवमादयो ."एतेसु बिलासया भवंति' (अंवि पृ २२६)। वातकुरील -बिल में रहने वाला जंतु-विशेष (अंवि पृ २२६) । वातकोणय-क्षुरप्र, अस्त्र-विशेष-'वातकोणएण णक्काणि छिण्णाणि' (आवहाटी १ पृ २६४) । वातिगण-बैंगन (दअचू पृ २०३)। वातोली—आंधी (तंदु पृ ५८) । वाधुज्ज-१ विवाह से संबंधित (अंवि पृ ४०) । २ विवाह (वि पृ १९३) । वाधेज्ज-विवाह (अंकि पृ १३४) । वाम–१ मृत (दे ७।४७) । २ आक्रान्त । वामणि-खोई हुई वस्तु को पुनः प्राप्त करने वाला (दे ७५९)-'तुह __ वासवारवाला वामणि मा हुन्ति कुमारवाल णिव !' (व)। वामणिआ–दीर्घ काष्ठ की बाड (दे ७१५८)। वामपार-गोत्र-विशेष (अंवि पृ १५०)। वामरि—सिंह (दे ७।५४) । वामी-महिला (दे ७।५३) । वाय-१ वनस्पत्ति-विशेष (सू २।३।२२ पा) । २ गन्ध (दे ७५३) । ३ शुष्क (से ५१५७) । वायउत्त-१ विट, भडुआ। २ जार, उपपति (दे ७८८ )।. . वायंगण-बैंगन (प्रसा २४६) । वायडघड-वाद्य-विशेष, दर्दुर नामक वाद्य (दे ७।६१)-वायडघडो दर्दुरकाख्यो वाद्यविशेषो भरते प्रसिद्धः' (वृ)। वायडाग-सर्प की एक जाति (प्रज्ञाटी प ५१)।। वायण–१ बुनना—'तन्तुवायनं शिल्पमस्य इति तान्त्रिकः' (अनुद्वाहाटी पृ ७४) । २ भोज्योपायन, खाद्य पदार्थ का उपहार (दे ७।५७) । वायणय --भोज्य पदार्थों की भेंट (पा ६१३) । वायलिय-सपेरा (प्रटी प ३७) । वायाड-शुक, तोता (दे ७।५६) । वायार-शिशिर ऋतु का पवन (दे ७।५६) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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