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परेवय- - प्रणिपात करना, चरण-स्पर्श करना (दे ६ | १८ ) ।
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परोहड --- घर का पिछला आंगन ( ओनि ४१७; पा ९३४) | पल - स्वेद, पसीना (दे ६।१) ।
पलंजी -- भूसा, छिलका - 'जहा धन्नेसु पलंजी' (उसुटी प १०९) । पलग - पात्र - विशेष (आचू पृ ३४४ ) |
पलस - १ कार्पास- फल । २ स्वेद, पसीना (दे. ६ | ७० ) ।
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पलसु - सेवा, भक्ति (दे ६१३) ।
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पलहिअ - १ विषम, असम (दे ६।१५) । २ चारदीवारी से घिरा हुआ ; मकान । (वृ) ।
पलही - कपास (दे ६।४) ।
पलाअ - चोर (दे ६८ ) ।.
पलाडीका - पक्षिणी - विशेष (अंवि पृ ६९ ) । पलाल - लेह्यभोज्य (अंवि पृ १८२ ) ।
पलासि - भल्ली, छोटा भाला (दे ६।१४ ) |
देशी शब्दकोश
पलासिया- -छाल की बनी हुई बांसुरी ( सू १|४ | ३८ ) ।
पलिगोव - कीचड़ - महया पलिगोवं जाणिया जा वि य वंदण - पूयणा इहं' ( सू १/२/३३) ।
पलिट्ठ- -१ फलक, तख्ता ( दजिचू पृ १७५) । २ उत्तम, अच्छा - 'पलिट्ठ पज्जत्तं दव्त्रं पलोएति' ( निचू २ पृ २०६ ) ।
पलिय - - १ कर्म - अणुवीइ पास णिक्खित्त दंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति' ( आ ४।२७) । २ निंदित आचरण - 'पलियं ति कर्म जुगुप्सित मनुष्ठानम्' (टीप २४१ ) ।
पलियट्ठाण - कर्मस्थान, कारखाना ( आ ध२२ ) । पलिहअ -- मूर्ख (दे ६।२० ) |
पलिहस्स - ऊर्ध्व दारु, काष्ठ- विशेष (दे ६।१६ ) |
प्रलिहाअ ऊर्ध्व दारु, काष्ठ- विशेष (दे ६।१६ ) ॥
* सलोट्टजीह - रहस्य-भेदी, रहस्य को प्रकट करने वाला (दे ६।३५) । पलोत्थित - उभरा हुआ, भरा हुआ (अंवि पृ २४३ ) |
पल्ल - धान्य भरने का कोठा (बूटी पृ ६२६ ) ॥
मल्लग - धान्य रखने का बडा कोठा- 'पल्लगत्ति पल्लको नाम लाटदेशे
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धान्याधारं भवति' (आवमटी प ६८ ) |
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