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________________ २७६ परेवय- - प्रणिपात करना, चरण-स्पर्श करना (दे ६ | १८ ) । --- परोहड --- घर का पिछला आंगन ( ओनि ४१७; पा ९३४) | पल - स्वेद, पसीना (दे ६।१) । पलंजी -- भूसा, छिलका - 'जहा धन्नेसु पलंजी' (उसुटी प १०९) । पलग - पात्र - विशेष (आचू पृ ३४४ ) | पलस - १ कार्पास- फल । २ स्वेद, पसीना (दे. ६ | ७० ) । 4: पलसु - सेवा, भक्ति (दे ६१३) । -- पलहिअ - १ विषम, असम (दे ६।१५) । २ चारदीवारी से घिरा हुआ ; मकान । (वृ) । पलही - कपास (दे ६।४) । पलाअ - चोर (दे ६८ ) ।. पलाडीका - पक्षिणी - विशेष (अंवि पृ ६९ ) । पलाल - लेह्यभोज्य (अंवि पृ १८२ ) । पलासि - भल्ली, छोटा भाला (दे ६।१४ ) | देशी शब्दकोश पलासिया- -छाल की बनी हुई बांसुरी ( सू १|४ | ३८ ) । पलिगोव - कीचड़ - महया पलिगोवं जाणिया जा वि य वंदण - पूयणा इहं' ( सू १/२/३३) । पलिट्ठ- -१ फलक, तख्ता ( दजिचू पृ १७५) । २ उत्तम, अच्छा - 'पलिट्ठ पज्जत्तं दव्त्रं पलोएति' ( निचू २ पृ २०६ ) । पलिय - - १ कर्म - अणुवीइ पास णिक्खित्त दंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति' ( आ ४।२७) । २ निंदित आचरण - 'पलियं ति कर्म जुगुप्सित मनुष्ठानम्' (टीप २४१ ) । पलियट्ठाण - कर्मस्थान, कारखाना ( आ ध२२ ) । पलिहअ -- मूर्ख (दे ६।२० ) | पलिहस्स - ऊर्ध्व दारु, काष्ठ- विशेष (दे ६।१६ ) | प्रलिहाअ ऊर्ध्व दारु, काष्ठ- विशेष (दे ६।१६ ) ॥ * सलोट्टजीह - रहस्य-भेदी, रहस्य को प्रकट करने वाला (दे ६।३५) । पलोत्थित - उभरा हुआ, भरा हुआ (अंवि पृ २४३ ) | पल्ल - धान्य भरने का कोठा (बूटी पृ ६२६ ) ॥ मल्लग - धान्य रखने का बडा कोठा- 'पल्लगत्ति पल्लको नाम लाटदेशे - धान्याधारं भवति' (आवमटी प ६८ ) | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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