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________________ देशी शब्दकोश २७५ परिवच्छ-अवधारण, निश्चय-परिवच्छि त्ति देशीशब्दोऽयं निर्णयार्थे वर्तते (बृटी पृ ६१५) । परिवारिअ-घटित (दे ६।३०) । परिवास-खेत में सोने वाला पुरुष (दे ६।२६) । परिवाह-दुविनय, अविनय (दे ६।२३) । परिसित्तिय-पानक-विशेष (निभा १६६३)। परिसिल्ल-परिषद् वाला-'परिसिल्लस्स तु परिसा' (निचू ४ पृ ७७)। परिह-रोष, क्रोध (दे ६१७) । परिहच्छ-१ पटु, निपुण । २ क्रोध (दे ६.७१) । परिहट्रि-आकृष्टि, आकर्षण (दे ६।२१)। परिहण--परिधान, वेश (दे ६।२१)। परिहत्थ-१ जलजन्तु-विशेष (प्र ३१२३) । २ दृप्त (ज्ञा १।१३।१७) । ३ परिपूर्ण- परिहत्थशब्दो देश्यः परिपूर्णतार्थे' (राजटी पृ १२४)। परिहत्थग–जलजंतु-विशेष-'जलचर-पहगर-परिहत्थग-मच्छ....' (दश्रु ८।३०)। परिहत्थत्तण-दक्षता, निपुणता-'अहो, पेच्छ पेच्छ वणिय-धूयाए परिहत्थत्तणं' (कु पृ २३२)। परिहरण-परिधान (स्था ५॥१३१) । परिहलाविम-जल-निर्गम, मोरी, नाला (दे ६।२६) । परिहाअ-क्षीण, दुर्बल (दे ६।२५) । परिहार-परिभोग (भटी पृ १२२७) ।। परिहारइत्तिआ-ऋतुमती स्त्री, रजस्वला नारी (दे ६।३७) । परिहारिणी-चिरकाल से व्याई हुई भैंस (दे ६।३१) । परिहाल-जल-निर्गम, मोरी, नाला (दे ६।२६)। परिहेरक--१ जंघा का आभरण-विशेष-'जंघासु गंडूपयकं णीपुराणि परिहेरकाणि' (अंवि पृ १६३) । २ पांव का आभरण-विशेष (औपटी पृ १०३)। परीयल्ल–वेष्टन (ओनि ७०६) । परीसह–नापित (व्यमा ४।३ टी प २१)। परेअ-पिशाच (दे ६।१२) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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