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________________ ३३ अभिधानचिन्तामणि कोश की स्वोपज्ञवृत्ति में कहीं-कहीं शब्दों के देशी और संस्कृत — दोनों होने का स्पष्ट निर्देश भी किया गया है । यथा ( ( १३८ टी) । संस्कृतेऽप्येके संस्कृतेऽपि ( १४३ टी) । संस्कृतेऽपि (१०६० टी ) । गोसो देव्याम्; तुङ्गी देश्याम्; विस्कल्लो देश्याम्; इसी प्रकार दोहनपात्र के अर्थ में पारी शब्द का प्रयोग शिशुपालवध ( १२०४०) और देशीनाममाला ( ६१३७ ) – दोनों में है । कृश अर्थ के वाचक 'छात' शब्द की भी यही स्थिति है । इस शब्द के बारे में हेमचन्द्राचार्य ने स्वयं प्रश्न उपस्थित कर उस पर पर्याप्त विमर्श किया है । वे लिखते हैं 'महाकवि माघ ने अपने संस्कृत महाकव्य शिशुपालवध में 'छात' शब्द का प्रयोग कृश अर्थ में किया है । प्रश्न होता है फिर यह शब्द देशी कैसे ? संस्कृत में 'छोंच्' धातु अंतकर्म या छेदन अर्थ में प्रयुक्त है और लोक व्यवहार में भी इसी अर्थ में प्रचलित है । इस धातु मे निष्पन्न 'छात' शब्द कृश अर्थ का वाचक नहीं बन सकता । यद्यपि धातुएं अनेकार्थक होती हैं, किंतु उनका प्रयोग लोक व्यवहार या लोक-प्रसिद्धि पर निर्भर है । कृश अर्थ में 'छात' शब्द का प्रयोग माघकवि ने ही किया है । अन्यत्र छेदन अर्थ के अतिरिक्त इसका दूसरे अर्थ में प्रयोग देखने में नहीं आया । " देशीनाममाला में 'दुल्ल' शब्द वस्त्र के अर्थ में प्रयुक्त है। दुकूल शब्द भी वृक्ष तथा वृक्ष की छाल से निष्पन्न वस्त्र के अर्थ में देशी होना चाहिये । बाद में संस्कृत कोशों में यह शब्द सूक्ष्म रेशमी वस्त्र के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा हो – यह अधिक संभव लगता है। नालिकेर, ताम्बूल आदि शब्द भी देशी होने चाहिये । बाद में ये शब्द संस्कृत साहित्य में स्वीकृत कर लिए गये। ऐसे अनेक देशी एवं रूढ शब्द संस्कृत भाषा की सम्पत्ति बन चुके हैं जिन्हें आज देशी कहना कठिन लगता है । Jain Education International देशी धातुएं इस कोश में अनेक देशी धातुएं परिशिष्ट २ (देशी धातु चयनिका) में संगृहीत हैं । पाठक की सुविधा की दृष्टि से हमने इन धातुओं को मूल देशी १ देशीनाममाला ३ | ३३ वृत्तिः 'छाओ बुभुक्षितः कृशश्च । ननु 'छातोदरी युवदृशां क्षणमुत्सवोऽभूत् ' ( माघ सर्ग ५ श्लोक २३ ) इत्यादी 'छा' शब्दस्य कृशार्थस्य दर्शनात् कथमयं देश्यः ? नैवम्, छेदनार्थस्यैव 'छात' शब्दस्य साधुत्वात् । न च धात्वनेकार्थता उत्तरमत्र । अनेकार्थता हि धातूनां लोकप्रसिद्ध्या । लोके च 'छात' शब्दस्य छेदनार्थं मुक्त्वा अस्यैव कवेः प्रयोगः नान्येषाम् — इत्यलं बहुना ।' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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