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________________ ३२ अधिकृत विद्वानों ने प्राकृत (अशिक्षितों की ) भाषा कहा है । इस बात का समर्थन पतंजलि और भरत भी करते हैं । पाणिनि के धातु पाठ में कई धातुएं ऐसी आई हैं जिनका प्रयोग उनके पूर्व की साहित्यिक भाषा में नहीं मिलता । इनका विकास आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक आर्य भाषाओं, विशेषतया हिंदी में मिलता है । जैसे -- बाड बाढ जिमु जीमना, भोजन करना संस्कृत में घोड़े के लिए घोटक और अश्व - ये दो शब्द मिलते हैं । स्थिति के अनुसार प्रथम लोकभाषा से आया हुआ शब्द रहा होगा और द्वितीय शिक्षितों की भाषा का शब्द रहा होगा । शिक्षितों का अश्व शब्द आज हिंदी में भी उसी वर्ग के लोगों का शब्द है, जबकि घोटक घोडअ - घोड़ा आदि रूपों में परिवर्तित होता हुआ सामान्यजनों द्वारा व्यवहृत होता है । इसी प्रकार कुत्ते के लिए कुक्कुर और श्वान, बिल्ली के लिए बिलाड़ी और मार्जारी शब्द व्यवहृत होते रहे हैं । " गोसर्ग १।४।३ जलनीली १|१०|३८ डुल १।१०।२४ संस्कृत अड्ड कड्डु वामन के मतानुसार ' जो देशी शब्द बहुत व्यापृत हों, उन्हें संस्कृत काव्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है ।" यही कारण है कि सैंकड़ों शब्द संस्कृत कोशों एवं देशी कोशों— दोनों में हैं । जैसे— अमरकोश अभिधानचिन्तामणि कङ्केल्लि ११३५ तरस २।६।६३ तुङ्गी २।४।१३६ दाक्षाय्य २|५|२१ हिंदी अड़ना कड़ा Jain Education International गोस १३८ टी गोसर्ग १३८ टी जलनीलिका ११६७ दुलि १३५३ तम्पा, तरस ६२२ तुङ्गी १४३ टी दाक्षाय्य १३३५ प्रखर, प्रक्षर १२५१ प्रतिसीरा ६८० तंवा १२६६ देशीनाममाला अंकेल्लि १७ कंकेल्लि २०१२ गोस २।६६ गोसग्ग २६६ जलणीली ३।४२ दुलि ५।४२ तंवा ५१ तरस ५३४ तुंगी ५।१४ दक्खज्ज ५|३४ पक्खरा ६।१० पडसारी ६।२२ प्रतिसीरा २६ । १२० १. देशी नाममाला का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन, पृष्ठ १७०-१७४ । २. काव्यालंकार ५।१।१३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016051
Book TitleDeshi Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages640
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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