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________________ : ओसारेति — कंत ओसारेति - फाड़ता है । ४२ ओसारेति पाटयति स्फाटयति । ओह - ओघ, संक्षेप | ओहः संक्षेपः स्तोकः । ओहे पिंड समासे संखेवे चैव होंति एगट्ठा । ओहबल ओहबले अइब्बले महब्बले । ओहय-पराजित | ओहय उद्धिय निज्जित पराजित । ओहयकंटय - उद्धृत कंटक । ओह कंटयं निहृतकंटयं मलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं । कखइ-आकांक्षा करता है । ias पत्थेइ पीइ अभिलसइ । कंखति पत्थंति गच्छति एगट्ठा' । कंची- करधनी । ओहricयं नियकंयं गलियकंटयं उद्धियकंटयं अकंटयं । कंत—कान्त । कंते पियदसणं सुरूवे पडिवे । कंते सोभंत रुइल रमणिज्ज । (अनुद्वाचू पृ ५६ ) ( निचूभा २१८८ ) ( ओनिभा १ ) कंची व रसणा व त्ति जंबूका मेखल त्ति वा । कंटक त्ति व जो बूया, तधा संपडिक त्ति वा ॥ १. देखें परि० ३ २. देखें - परि० ३ ३. देखें - परि० २ ( उपाटी पृ० १२६ ) ( आवचू १ पृ ४७६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only अप्प डिकंटयं ( आवचू १ पृ ४७९ ) (ज्ञाटी प ६० ) ( राज ६७७ ) ( आचू पृ २०५ ) ( अंवि पृ ७१ ) (भ १३ / १०२ ) (जंबू २ / १५) www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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