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________________ परिशिष्ट २ । ३२९ तिसला (त्रिशला) महावीर की माता के लिए आचारचूला में तीन पर्याय शब्दों का उल्लेख है। त्रिशला उनका सर्वप्रसिद्ध नाम है। वे विदेह-जनपद से सम्बन्धित थीं इसलिए विदेहदत्ता तथा सबका प्रिय करने से उनका एक नाम प्रियकारिणी भी हो गया। तुलना (तुलना) __ जिससे आत्मा तोली जाये वह तुलना है। यहां तुलना, भावना और परिकर्म को एकार्थक माना है। विशिष्ट साधक (जिनकल्पी) की सहिष्णुता की कसौटी के लिए पांच तुलाएं मान्य हैं। जब साधक उन तुलाओं में उत्तीर्ण हो जाता है तब वह विशिष्ट साधना की ओर अग्रसर होता है । वे पांच तुलाएं ये हैं-तप, सत्व, सूत्र, एकत्व और बल ।। ___तप भावना से साधक क्षुधा पर विजय पा लेता है। सत्त्व भावना से भय और निद्रा को पराजित करता है। सूत्र भावना के अभ्यास से साधक श्रुत को अपने नाम की तरह परिचित कर लेता है और सूत्र परावर्तन के द्वारा कालज्ञान कर लेता है । एकत्व भावना से वह ममत्व का मूलत: नाश कर देता है और बल भावना से शारीरिक बल, मनोबल और धृतिबल का पूर्णतः विकास कर लेता है । इस प्रकार ये पांच भावनाएं साधक को जिनकल्प साधना के लिए सक्षम बनाती हैं।' 'पिल्लि (दे) ये चारों शब्द भिन्न-भिन्न आकार वाली पालकी के लिए प्रयुक्त हैं। लेकिन वाहन अर्थ की अभिव्यक्ति करने के कारण ये एकार्थक हैं१. थिल्लि-दो खच्चरों से वाहित यान विशेष, दो घोड़ों की बग्घी'। २. गिल्लि-दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली झोलिका । ३. सिबिका-कुटाकार तथा चारों ओर से आच्छादित पालकी। प्रश्न व्याकरण की टीका के अनुसार हजार पुरुषों द्वारा उठायी जाने वाली पालकी सिबिका है। ४. स्यंदमानिका-पुरुषप्रमाण पालकी। १. प्रसाटी पृ १२६, १२७ । २. पास पृ ४४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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