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________________ 海口罩 परिशिष्ट २ १. कृत्स्न - सभी दृष्टियों से पूर्ण । २. प्रतिपूर्ण - आत्म-स्वरूप से परिपूर्ण । ३. निरवशेष – स्व स्वभाव से अन्यून | ४. एकग्रहणगृहीत -- एक शब्द से अभिधेय ।' काण (दे) काने व्यक्ति के लिए प्रयुक्त ये तीनों शब्द देशी हैं । काय ( काय ) 'काय' शब्द के पर्याय में तेरह शब्दों का उल्लेख है । काय का अर्थ है शरीर । शरीर की विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर ये पर्याय शब्द बने हैं । जैसे—शरीर पुष्ट होता है इसलिए काय, उपचय, संघात, उच्छ्रय, समुच्छ्रय, देह आदि शब्द इसके पर्याय हैं । यह जीर्ण-शीर्ण होता है, इसलिए शरीर कहलाता है । शरीर प्राण ग्रहण करता है इसलिए प्राणु तथा धोंकनी की तरह श्वास लेता है इसलिए भस्र ( भस्त्रा ) कहलाता है। बुंदी आदि शब्द इसी अर्थ में देशी हैं । -काल (काल) काल, अद्धा और समय- - ये तीनों शब्द पारिभाषिक दृष्टि से भिन्नार्थवाची हैं | समय काल का ही एक सूक्ष्मतम भेद है । व्यवहारिक नय से तीनों शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं । अद्धा शब्द इसी अर्थ में देशी है । काहापण ( कार्षापण ) 'काहापण' शब्द के पर्याय में चार शब्दों का उल्लेख है । कार्षापण भारत वर्ष का अत्यधिक प्रचलित सिक्का था । मनुस्मृति में इसे पुराण भी कहा है | चांदी के कार्षापण या पुराण का वजन ३२ रत्ती था । खत्तपक ( क्षत्रपक) राजाओं का प्रसिद्ध सिक्का होता था । ' कित्ति (कीर्ति) कीर्ति आदि शब्द प्रशंसा के अर्थ में एकार्थक हैं । उनका अर्थ१. भटी प १४६ : एकार्थाः वैते शब्दाः । २. मनु ८ / १३५-६३६ । ३. अंवि प्र पृ १३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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