SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० : परिशिष्ट २ है-यथार्थ । यथार्थ ऋजु ही होता है। बौद्धसूत्रों में ऋजुता के पर्याय में उजुता, उजुकता, अजिम्हता, अवता अकुटिलता आदि शब्दों का उल्लेख हुआ है। उट्ठाण (उत्थान) 'उठाण' आदि पांचों शब्द विभिन्न प्रकार के पुरुषार्थ के द्योतक हैं, जैसे१. उत्थान-उठना, चेष्टा करना आदि । २. कर्म-प्रवृत्ति । ३. बल-शारीरिक-सामर्थ्य । ४. वीर्य-जीवनी-शक्ति, आन्तरिक सामर्थ्य । ५. पराक्रम-कार्य-निष्पत्ति में प्रबल प्रयत्न । ६. पुरुषकार-अभिमान से उत्पन्न पुरुषार्थ । उत्तरकरण (उत्तरकरण) 'उत्तरकरण' आदि चारों शब्द भिन्न भिन्न अर्थ के द्योतक होते हुए भी समवेत रूप से सभी विशुद्धीकरण के अर्थ को व्यक्त करते हैं। अतः चूर्णिकार ने इनको एकार्थक माना है। इनका अर्थ-बोध इस प्रकार १. उत्तरकरण--व्रत आदि को और अधिक उत्कृष्ट बनाना । २. प्रायश्चित्तकरण-अतिचार लगने पर उसकी आलोचना करना। . ३. विशोधीकरण-- अतिचार आदि दोषों को विशुद्ध करना। ४. विशल्यीकरण-तीनों शल्यों से आत्मा को मुक्त करना। उद्दिट्ट (उद्दिष्ट) 'उहिट्ट' आदि शब्द वर्णन की विविध पद्धतियों के वाचक हैं --- १. उद्दिष्ट- सामान्य रूप से कथन करना। २. गणित-संख्या द्वारा वर्ण्य विषय को निर्दिष्ट करना । ३. व्यजित-नामोल्लेखपूर्वक कथन करना । १.धसं पृ७८ । २. आवचू २ पृ २५१ ।। *... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy