SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुच्चच्छंव (उच्चच्छंद) जैसे— १. उच्चच्छंद २. अनिग्रह - स्वच्छन्दचारी । ३. अनियत - अव्यवस्थित । " यहां संगृहीत तीनों शब्द स्वच्छंद व्यक्ति के अर्थ में एकार्थक हैं । आत्मश्लाघा में प्रवण । - उज्जल ( उज्ज्वल ) 'उज्जल' आदि शब्द वेदना के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हैं । समवेत रूप में एकार्थक होते हुए भी इन शब्दों में अवस्थाकृत भेद है ।' कुछ शब्दों की अर्थवत्ता इस प्रकार है प्रचण्ड उज्ज्वल - वह वेदना जिसमें सुख का अंश भी नहीं हो । विपुल -- सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त । त्रितुल - मन, वचन और काया तीनों की कसौटी करने वाली । परिशिष्ट २ प्रगाढ --- मर्म प्रदेशों में व्याप्त होने वाली । कर्कश – कर्कश पत्थर के स्पर्श की तरह आत्मप्रदेशों को प्रभावित करने वाली । • कटुक — कटुक द्रव्य की भांति व्याकुल करने वाली । निष्ठुर - प्रतीकार करने में अशक्य । चण्ड } तीव्र- - अतिशय वेदना | दुःख - दुःख देने वाली । बीहणग — भयोत्पादक । दुरहियास -- असह्य वेदना । - उज्जुय (ऋजुक) - रौद्र, शीघ्र ही सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होने वाली । : २६६ Jain Education International १. प्रदीप ३१ । २. विपाटी प ४१ : उज्जला ऋजु, अकुटिल और भूतार्थं ये तीनों एकार्थक हैं । भूतार्थ का अर्थ 'दुरहियास त्ति एकार्था एव । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy