SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट २ । २८३ कारण में कार्य का उपचार कर उन्हें भी अलीकवाची शब्द मान लिया गया है। उनके अर्थबोध से यह सब स्पष्ट हो जाता है१. शठ-मायावी व्यक्ति का कार्य । २. अनार्य-अनार्य वचन । ३. मायामृषा-माया और मृषा से अनुगत असत्य वचन । ४. असत्क-अयथार्थ का वाचक । ५. कूट-कपट-अवस्तु-असत्य वचन में सत्य का अपलाप, भाषा का विपर्यय और अभिधेय का अप्रतिपादन । ६. निरर्थक-अपार्थ- अर्थहीन वचन। ७. विद्वेषगर्हणीय-सज्जन व्यक्तियों द्वारा गर्हणीय । ८. अनुजुक-वक्र वचन। ९-१०. कल्कना -माया युक्त व पापकारी वचन । वञ्चना ११. मिथ्यापश्चात् कृत-मिथ्या होने के कारण अनाश्रयणीय । १२. साति-असत्य वचन अविश्वास का कारण बनता है । १३. अपछन्न-अपने दोषों तथा दूसरों के गुणों को ढंकना। १४. उत्कूल-सन्मार्ग से च्युत करनेवाला (उन्मार्ग की ओर ले जाने वाला)। १५. आर्त-पीड़ित व्यक्ति द्वारा आश्रित । १६. अभ्याख्यान-झूठा आरोप । १७. किल्विष-पाप का हेतु । १८. वलय-वक्रता का उत्पादक । १६. गहन-सघन वचन जाल । २०. मन्मन-मेंमने की भांति अस्पष्ट भाषण । २१. नूम-माया युक्त वचन । २२. निकृति–माया को छिपाना । २३. अप्रत्यय-अविश्वसनीय भाषण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy