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________________ (१७) “जिन शब्दों का एक ही अभिधेय/अर्थ हो, वे एकार्थक कहलाते हैं। इसके लिए अभिवचन शब्द का प्रयोग भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आवश्यक नियुक्ति में चार प्रकार की सामायिकों के पर्याय दिये हैं। उस प्रसंग में एकार्थक के लिए निरुक्ति' और 'निर्वचन' शब्द का उल्लेख मिलता है। जैसे-- सम्यक्त्व सामायिक के एकार्थक सम्मदिट्ठि अमोहो, सोही सब्भाव दंसणं बोही । अविवज्जओ सुदिट्ठि ति, एवमाइ निरुत्ताई ॥ श्रुत सामायिक के एकार्थक अक्खर सन्नी-संमं, सादियं खलु सपज्जवसियं च । गमियं अंगपविठं सत्त वि एए पडिवक्खा ॥ यहां नियुक्तिकार ने श्रुतसामायिक के भेदों को ही उसके पर्याय मान "लिये हैं। देश विरति सामायिक के एकार्थक विरयाविरई संवुडमसंवुडे बालपंडिए चेव । देसेक्कदेसविरई, अणुधम्मो अगारधम्मो य ॥ इसी प्रकार मर्वविरतिसामायिकनिरुक्तिमुपदर्शयन्नाह सामाइयं समइयं सम्मावाओ समास संखेवो । अणवज्जं च परिणा, पच्चक्खाणे य ते अट्ठ ।। (आवनि ८६१-६४) भारोपीय भाषा परिवार में संस्कृत व उसके समकक्ष प्राकृत, पालि आदि भाषाओं की विशेषता है कि उसमें एक शब्द को बताने के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग होता है । भाषाविदों के अनुसार कोई भी दो शब्द वस्तुतः एक अर्थ को व्यक्त नहीं करते । एकार्थवाची शब्दों का दूसरा नाम पर्यायवाची है। यह शब्द अधिक सार्थक प्रतीत होता है। जैन दर्शन में पर्याय शब्द पारिभाषिक शब्द के रूप में प्रयुक्त है। एक ही पदार्थ या व्यक्ति के लिए जब दो शब्दों का प्रयोग होता है तब वे प्रायः उस पदार्थ या व्यक्ति की दो भिन्नभिन्न पर्यायों को व्यक्त करते हैं। जैन दर्शन में इसे समभिरूढ़नय के द्वारा १. स्थाटी प ४७२ । २. भ २०/१५ । ३. आवहाटी पृ २४२ : चतुविधस्यापि सामायिकस्य निर्वचनम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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