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________________ ( १६) एकार्थक शब्दों का प्रयोग होता है । जैसे-भाव-क्रिया के प्रसंग में 'तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदभवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए' ये सभी शब्द भावक्रिया की महत्ता को व्यक्त कर रहे हैं ।' इस प्रकार प्रसंगवश एक ही अर्थ के वाचक अनेक शब्दों का प्रयोग पुनरुक्ति दोष नहीं है। एकार्थक शब्दों से व्युत्पन्न मति छात्र एक प्रसंग के साथ अनेक शब्दों का ज्ञान कर लेते थे और मंद बुद्धि छात्र विभिन्न शब्द पर्यायों से अर्थ समझ लेते थे। इस प्रकार एकार्थक का कथन दोनों प्रकार के शिष्यों के लिए लाभप्रद होता था। और पदार्थ विषयक कोई मूढता नहीं रहती थी। देखें"पिंड', 'उग्गह', 'दुम', 'आगासत्थिकाय' आदि । ___ छंद-रचना में रिक्तता की पूर्ति के लिए भी एकार्थक शब्दों की आवश्यकता होती है, जिससे उसी अर्थ का वाचक दूसरा शब्द प्रयुक्त किया जा सके।' अनुप्रास अलंकार का प्रयोग वही कर सकता है जिसका एकार्थक शब्दज्ञान समृद्ध होता है। एकार्थक कोश क्या ? क्यों ? एकार्थक शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए स्थानांग टीका में लिखा है कि १. (क) भटो प १४ : समानार्थाः प्रकर्षवृत्तिप्रतिपादनाय स्तुतिमुखेन __ग्रन्थकृतोक्ताः। (ख) अंत टी प १६ : एकार्थशब्दोपादानं तु प्राधान्यप्रकर्षख्यापनार्थम् । . (ग) ज्ञाटी प १७ : ..... एकार्थशब्दत्रयोपादानं चात्यन्तशुक्लताख्याप नार्थम् । २. अनुद्वामटी प २७ : एकाथिकानि वा विशेषणान्येतानि प्रस्तुतोपयोग प्रकर्षप्रतिपादनपराणि । ३. भटो प ११६ : एकार्थशब्दोच्चारणं च क्रियमाणं न दुष्टम् । ४. नंदीटो पृ ५८ : विनेयजनसुखप्रतिपत्तए मतिज्ञान. ... ५. अनुद्वाहाटी २० : असम्मोहाथ पर्यायनामानि । ६. विभाकोटी प ६३८ : एतदनेकपर्यायाख्यानं प्रदेशान्तरेषु सूत्रबन्धानु लोम्यार्थम् ........। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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