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________________ अनुयोग ३४ आगम विषय कोश-२ नहीं होते। इसलिए योग्यता की तरतमता के आधार पर इन एक पद के दो, तीन आदि अर्थ कहना विभाषा है। तीन अनुयोगविधियों में से किसी एक विधि का सात बार जैसे अश्व शब्द की व्याख्या करते समय कहनाप्रयोग किया जा सकता है।-नंदी १२७ का टि) जो खाता है, वह अश्व है। २. अनुयोग के पर्याय जो तीव्र गति से दौड़ता है, परन्तु श्रान्त नहीं होता, अणुयोगो य नियोगो, भास विभासायवत्तियं चेवा. वह अश्व है। अनुकूलः सूत्रस्यार्थेन योगोऽनुयोगः । निश्चितो योगो . वार्तिक (भाष्यकार) : मंखफलक दृष्टांत नियोगः।अर्थस्य भाषणंभाषा।विविधप्रकारैर्भाषणं विभाषा। सामाइयस्स अत्थं, पुव्वधर समत्तमो विभासेइ। वृत्तौ भवंवार्त्तिकम्, यदेकस्मिन् पदे यदर्थापन्नंतस्य सर्वस्यापि चउरो खलु मंखसुया, वत्तीकरणम्मि आहरणा॥ भाषणम्। (बृभा १८७ वृ) फलगिक्को गाहाहिं, बिइओ तइओ य वाइयत्थेणं। अनुयोग के पांच पर्याय हैं तिन्नि वि अकुडुंबभरा, तिगजोग चउत्थओ भरइ॥ १. अनुयोग-सूत्र के अनुरूप अर्थ का योग। जे जम्मि जुगे पवरा, तेसि सगासम्मि जेण उग्गहियं। २. नियोग-सूत्र के साथ अर्थ का निश्चित योग। ..."वत्तीकरो स खलु॥ ३. भाषा-सूत्र के अर्थ का कथन। (बृभा १९९-२०१) ४. विभाषा-एक सूत्र के विविध अर्थों का प्रतिपादन। चतुर्दशपूर्वी सामायिक आदि का समस्त अर्थ बता देते ५. वार्तिक-सूत्र के अर्थ का समग्रता से प्रतिपादन। हैं। उसके पश्चात कछ भी कहना शेष नहीं रहता। उन्हें ० भाषा: प्रतिध्वनि दृष्टांत व्यक्तिकर अथवा वार्तिककर कहा जाता है। पडिसहगस्स सरिसं, जो भासइ अस्थमेगु सुत्तस्स। मंखफलक-दृष्टांत-चार मंख (चित्रपट्ट आजीवी) थे। उनमें सामइय बाल पंडिय, साह जईमाइया भासा॥ से एक मंखफलक लेकर घूमता है, गाथा का उच्चारण नहीं समभाव: सामायिकम्, द्वाभ्यां-बुभुक्षया तृषा करता है और न उसका अर्थ बताता है। दूसरा मंखफलक वाऽऽगलितो बालः।पापात् डीनः-पलायितः पण्डितः। लेकर नहीं जाता, केवल गाथा पढ़ता हुआ घूमता है। तीसरा .... साधयति मोक्षमार्गमिति साधुः। यतते सर्वात्मना मंख न फलक ग्रहण करता है, न गाथा का उच्चारण करता संयमानुष्ठानेष्विति यतिः। (बृभा १९६ वृ) है, किन्तु किंचित् अर्थ बताता है। इन तीनों को कुटुम्बपोषण गुफा आदि में किए गए शब्द के सदश प्रतिशब्द के लिए कुछ भी धन प्राप्त नहीं होता है। होता है। वैसे ही सूत्र के अनुरूप उसका एक अर्थ बताना चौथा मंख फलक लेकर गाथा पढ़ता हुआ और उनका भाषा है। जैसे अर्थ बताता हुआ घूमता है। उसको अपने कुटुम्ब के भरणसामायिक-समभाव की साधना। पोषण के लिए पर्याप्त धन प्राप्त हो जाता है। बाल-क्षुधा-पिपासा से आकुल रहने वाला। (भाष्यकार चतुर्थ मंख के सदृश होता है। वह सूत्र पण्डित-पाप से पलायन करने वाला। और अर्थ को समग्रता से व्यक्त करता है।) साधु-मोक्षमार्ग को साधने वाला। जिस युग में जो प्रधान अनुयोगकृत होते हैं, उनके यति-सर्वात्मना संयमानुष्ठान में प्रयत्नशील रहने वाला। पास अध्ययन करने वाला ग्रहण-धारण में समर्थ जो शिष्य • विभाषा : अश्व दृष्टांत उनसे सम्पूर्ण श्रुत को ग्रहण कर अतिशय विशदता से अपने एगपए उ दुगाई, जो अत्थे भणइ सा विभासा उ। शिष्यों को बताता है, वह भाष्यकार है। असइ य आसु य धावइ, न य सम्मइ तेण आसो उ॥ ३. अनुयोग का प्रवेशद्वार : उपक्रम (बृभा १९८) उपोद्घातेनाभिहितेन सूत्रादयोऽर्था अतिव्यक्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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