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________________ आगम विषय कोश-२ ३३ अनुयोग राग-द्वेष से मुक्त (मध्यस्थ) रहकर समभाव का अनुचिन्तन १. अनुयोग की परिपाटी : कुंभजल दृष्टांत करते हुए समाधि मृत्यु को प्राप्त हुए। सुत्तत्थो खलु पढमो, बिइओ निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। * इत्वरिक-यावत्कथिक अनशन द्र श्रीआको १ अनशन तइओ य निरवसेसो, एस विही भणिय अणुयोगे॥ निरवयवो न हु सक्को, सयं पगासो उ संपयंसेउ। अनागाढ योग-नंदी, उत्तराध्ययन आदि श्रुतग्रंथों के कुंभजले वि हु तुरिउज्झियम्मि न हु तिम्मए लिट्ठ॥ अध्ययन काल में किया जाने वाला द्वितीयस्यां परिपाट्यां 'नियुक्तिमिश्रितः' पीठिउपधान। द्र स्वाध्याय कया सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्या च समन्वितः""तृतीयस्यां अनुद्घात-गुरु प्रायश्चित्त, जिसमें भाग या परिवर्तन परिपाट्यामनुयोगो निरवशेषो वक्तव्यः, पद-पदार्थनहीं किया जाता। द्र प्रायश्चित्त चालना-प्रत्यवस्थानादिभिःसप्रपञ्चसमस्तं कथयित-व्यमिति भावः । एष विधिरनुयोगे ग्रहणधारणादिसमर्थान् शिष्यान् अनुप्रेक्षा-मन की मूर्छा को तोड़ने वाले विषयों का प्रति वेदितव्यः । 'मन्दमेधसां श्रवणपरिपाट्या अनुचिन्तन। द्र भावना विवक्षिताध्ययनार्थावगमः ततस्तान् प्रति सप्तवारान् अनुयोग-सूत्र के अनुरूप अर्थ की योजना। अनुयोगो यथाप्रतिपत्ति कर्त्तव्यः। (बृभा २०९, २१३ वृ) १. प्रथम अनुयोग-सूत्र के अर्थमात्र का प्रतिपादन। १. अनुयोग की परिपाटी : कुंभजल दृष्टांत २. द्वितीय अनुयोग-दूसरी परिपाटी में पीठिका और सूत्रस्पर्शी २. अनुयोग के पर्याय नियुक्ति से समन्वित अर्थ का प्रतिपादन। • भाषा : प्रतिध्वनि दृष्टांत ३. ततीय अनयोग-तीसरी परिपाटी में निरवशेष अर्थ का ० विभाषा : अश्व दृष्टांत प्रतिपादन-पद, पदार्थ, चालना, प्रत्यवस्थान आदि द्वारा प्रसंग० वार्तिक : मंखफलक दृष्टांत अनुप्रसंग सहित समग्रता से व्याख्या। ३. अनुयोग का प्रवेशद्वार : उपक्रम यह अनुयोगविधि ग्रहण-धारणा आदि की शक्ति ० द्रव्य-क्षेत्र-काल उपक्रम से सम्पन्न शिष्यों के लिए है। ४. भाव उपक्रम : गणिका आदि दृष्टांत ५. सर्वश्रुत का अनुयोग : कल्प-व्यवहार अनुयोग सूत्र का अर्थ संपूर्ण रूप से एक बार में प्रकाशित भी ___ * निशीथ का अनुयोग द्र छेदसूत्र नहीं किया जा सकता और सूत्रार्थ को ग्रहण और धारण ६. अनुयोगकृत् (आचार्य) के छत्तीस गुण करने में समर्थ शिष्य भी उसको एक बार में ग्रहण नहीं कर ___* श्रुतविनय : निःशेष वाचना द्र आचार्य पाता। जैसे-जल से परिपूर्ण घट का पूरा पानी भी यदि ७. अनुयोग की प्रवृत्ति : गौ दृष्टांत अतिशीघ्रता से पत्थर के टुकड़े पर गिराया जाए तो भी वह ० वीर-गौतम दृष्टांत सर्वात्मना गीला नहीं हो पाता। इसलिए तीन परिपाटियों में ८. प्रमादी शिष्य : आर्य कालक का स्वर्णभूमिगमन अनुयोग के कथन का प्रतिपादन है। ० धूलि दृष्टांत मन्दमति शिष्यों को श्रवणपरिपाटी द्वारा विवक्षित * अनुयोग ( वाचना) के योग्य-अयोग्य द्र अंतेवासी| अध्ययन का अर्थबोध होता है, अतः उनके प्रति सात बार * छेदसूत्र की अर्थवाचना के योग्य द्र छेदसूत्र अनुयोग किया जाता है। * अर्थमण्डली व्यवस्था द्र वाचना * अनुयोग विधि द्र श्रीआको १ अनुयोग * आचार्य अर्थ के उत्प्रेक्षक द्र सूत्र * श्रवणविधि के सात अंग द्र श्रीआको १ शिक्षा * आचार्य अर्थवाचक द्र संघ (अनुयोग विधि के तीन प्रकार और श्रवण विधि के * वाचना सम्पदा द्र गणिसम्पदा सात प्रकार बतलाए गए हैं। सब शिष्य समान योग्यता वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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