SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 713
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट १ विषय कथा - संकेत राजा और तीन रक्षक अनवस्था प्रसंग का निवारण जानबूझकर बहु-प्रतिसेवना गंजा और सिपाही अनेक अपराधों का एक साथ कथन रथकार की भार्या अनेक अपराधों का एक दण्ड चोर दृष्टांत दोषों का एकत्व कब ? प्रायश्चित्तदानविधि आलोचना और विनयोपचार मूलोत्तरगुणप्रतिसेवना से अन्योन्यविनाश मूलगुण- उत्तरगुण प्रतिसेवना प्रायश्चित्त वहन और वैयावृत्त्य दुर्बल-सबल प्रायश्चित्तवाहक प्रायश्चित्तवृद्धि - हानि का हेतु आलोचनाई की गंभीरता परिहारतपस्वी को आश्वासन दोषशुद्धि न करने से चारित्र नाश आलोचक के प्रति व्यवहार निषद्याकरण का महत्त्व मोहक्षय असत् आत्मख्यापन से महामोहबंध प्रशास्तामारक शबल दोष गणी-गण पर्युषण पर्व ईर्यासमिति Jain Education International ६६६ वध्य मूलदेव राजा बना वणिक् । ब्राह्मण । निधि- प्राप्ति निधि-उत्खनन ताल वृक्ष दृति और शकट । एरंड - मंडप पुरस्कृत राजसेवक अग्नि दृष्टांत । चेट दृष्टांत वस्त्र और जलकुट दंतपुरवासी दृढ़मित्र 1 कूप, नदी और राजा का दृष्टांत नाली में तृण । मंडप और सर्षप । गाड़ी और पाषाण । वस्त्र पर कज्जल बिन्दु । लघु शकटिका व्याध । गाय । भिक्षुणी । निःश्मश्रु राजा और नापित दशा (दशाश्रुतस्कंध - निर्युक्ति - चूर्णि ) तल - सूची । सेनापति । निरिन्धन अग्नि । शुष्कमूल वृक्ष । दग्ध बीज गायों में गर्दभ का स्वर नागिन - अंडपुट खंडित सच्छिद्र घट । कम्मासपट गज-दंत आचार्य कालक ईर्यासमित मुनि । अरहन्नक । For Private & Personal Use Only आगम विषय कोश - २ सन्दर्भ ६४०८-६४१० ६४१२, ६४१३ ६५१३, ६५१४ ६५१५ ६५१७ चू ६५१८-६५२२ ६५२६ ६५३१ ६५३३ चू ६५४१ ६५५३ चू ६५६२-६५६७ ६५७५ चू ६५९२, ६५९९ ६६०१, ६६०२ ६६२४, ६६२५ ६६२८ चू ५/७/११-१५ ९/२/१३ ९/२/१८ नि १४ नि ३०, ३१ नि ६८ की चू प ५५ नि ९१ की चू प ५९ www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy